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बुजुर्ग दंपत्ति का अपनों ने छोड़ा साथ, मानवाधिकार आयोग बना सहारा

गुरुग्राम जिला प्रशासन को मेडिकल टीम भेजने के निर्देश
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चंडीगढ़, 31 मई (ट्रिन्यू)गुरुग्राम की पॉश सोसायटी में रहने वाले बुजुर्ग दंपत्ति को उनके खुद के बेटे ने ही ‘बेसहारा’ छोड़ दिया। 96 वर्षीय बुजुर्ग और उनकी 86 वर्षीय पत्नी का यह दर्द रिजवुड एस्टेट कंडोमिनियम एसोसिएशन के निवासियों द्वारा हरियाणा राज्य मानवाधिकार आयोग तक पहुंचाया गया। रक्त संबंधों की उपेक्षा से जुड़े इस मामले पर कड़ा नोटिस लेते हुए आयोग ने गुरुग्राम जिला प्रशासन को बुजुर्ग दंपत्ति के उपचार व पुनर्वास आदि का प्रबंध करने के आदेश दिए हैं।

आयोग ने जिला प्रशासन को एक कमेटी का गठन भी करने को कहा है। मानवाधिकार आयोग अब 3 जुलाई को इस मामले में फिर से सुनवाई करेगा। इस दौरान गुरुग्राम जिला प्रशासन द्वारा विस्तृत रिपोर्ट आयोग के सामने रखनी होगी। आयोग के पास पहुंची शिकायत में एसोसिएशन ने आरोप लगाया कि बुजुर्ग दंपत्ति को उनके ही बेटे द्वारा उपेक्षित किया जा रहा है। बेटे ने अपने माता-पिता को अकेला ही छोड़ दिया। वृद्ध दंपत्ति दो अप्रशिक्षित महिला सहायिकाओं के भरोसे है।

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एसोसिएशन प्रतिनिधियों ने कहा कि दोनों को प्रभावी चिकित्सकीय देखरेख नहीं मिल रही। वृद्ध पिता अकसर दर्द और पीड़ा में चिल्लाते रहते हैं। इससे उनकी पत्नी को गंभीर मानसिक आघात पहुंच रहा है। आसपास रहने वाले अन्य वरिष्ठ नागरिकों को भी मानसिक पीड़ा हो रही है। इस संदर्भ में एसोसिएशन ने कई बार उनके पुत्र व जिला प्रशासन के अधिकारियों से बात की लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद उन्होंने आयोग का दरवाजा खटखटाया।

आयोग चेयरमैन जस्टिस (सेवानिवृत्त) ललित बत्रा ने अपने आदेश में कहा कि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन की गरिमा के साथ जीने के उनके मौलिक अधिकार का गंभीर उल्लंघन है। वृद्ध पिता की लगातार पीड़ा की पुकार न केवल उनके लिए बल्कि आस-पास के वरिष्ठ नागरिकों की मानसिक स्थिति को भी प्रभावित कर रही है। आदेश में कहा है कि दिन-रात उस फ्लैट से सुनाई देने वाली दर्द और निराशा की आवाजों को मात्र ‘निजी मामला’ बताकर नजर अंदाज नहीं किया जा सकता।

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