दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 28 जुलाई
तकनीकी शिक्षा विभाग में अजा छात्रों की कोचिंग में हुआ फर्जीवाड़ा अधिकारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं था। बड़े स्तर के अधिकारियों की मिलीभगत इसमें साफ दिख रही है। मास्टर माइंड्स नाम की जिस कंपनी को कोचिंग की जिम्मेदारी दी गई, वह न तो विभाग द्वारा तय शर्तों को पूरा करती थी और न ही वह चंडीगढ़ बेस्ड थी। ग्वालियर की इस कंपनी ने फर्जी तरीके से दस्तावेज तैयार किए और अधिकारियों ने इसकी अनदेखी की।
जिस तरह से इस पूरे फर्जीवाड़े को अंजाम दिया गया है, उससे साफ है कि इसकी नींव यह योजना बनाते समय ही पड़ गई थी। बेशक, कोचिंग के लिए टेंडर जारी करते समय कई तरह की शर्तें तय की गई थी, लेकिन जब टेंडर खोले गए और मास्टर माइंड्स को इसका ठेका दिया गया तो खुद की बनाई गई शर्तों को ही विभाग ने अनदेखा कर दिया। कैग ने भी अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि विभाग ने नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए ऐसी कंपनी के साथ एमओयू किया, जो इस लायक थी ही नहीं।
8 दिसंबर, 2007 को विभाग ने अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों को कोचिंग देने की इच्छुक कंपनियों के लिए विज्ञापन जारी किए। इसके लिए शर्त तय की गई कि संबंधित फर्म के पास कम से कम तीन साल का अनुभव होना अनिवार्य था। साथ ही, कम से कम पांच सौ विद्यार्थियों को कोचिंग का अनुभव चाहिए था। कंपनी के पास कोचिंग के लिए एक्सपर्ट स्टाफ होना चाहिए और उसका सालाना टर्नओवर 25 लाख रुपये हो। इसी तरह से फर्म का चंडीगढ़, हरियाणा के जिलों या नयी दिल्ली में ट्रेनिंग सेंटर होना चाहिए था। टेंडर में भाग लेने वाली सभी कंपनियों को टेक्निकल और फाइनेंशियल बिड देनी थी। कैग की रिपोर्ट में टेंडर की गड़बड़ को पकड़ लिया। मास्टर माइंड्स क्लासेज (एमएससी) चंडीगढ़ जिस कंपनी के साथ तकनीकी शिक्षा विभाग ने एमओयू किया उसके पास न तो तीन साल का अनुभव था और न ही फर्म की बैलेंस सीट साथ में लगाई गई।
टर्नओवर की शर्तों पर कंपनी खरा नहीं उतरती थी। इतना ही नहीं, कंपनी के साथ सर्विस टैक्स नंबर तक नहीं था। टेंडर फार्म में कंपनी ने लिखा था कि सर्विस टैक्स नंबर के लिए अप्लाई किया हुआ है। इससे ही यह साफ हो गया था कि एमएमसी एक नई बनाई गई कंपनी है, लेकिन फिर भी विभाग ने इसकी अनदेखी की। एमएमसी ने जिस कंपनी का टर्नओवर दिखाया, वह मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर की थी। चंडीगढ़ में कंपनी का न तो कोई कार्यालय था और न ही हरियाणा में कोचिंग का उसके पास अनुभव था।
कंपनी के पास एक्सपर्ट स्टाफ भी नहीं था। विभाग के साथ एमओयू होने के बाद कंपनी ने राज्य के कई जिलों में कोचिंग सेंटर खोले, वह भी सरकारी स्कूलों में।
विभाग ने एग्रीमेंट भी कर दिया रिवाइज
इस पूरे मामले में एक और गड़बड़ यह की गई कि तकनीकी शिक्षा विभाग ने जून-2008 में एमएमसी के साथ हुए एग्रीमेंट को रिवाइज करके इसे एक की जगह दो साल का कर दिया। दो साल के कोर्स के लिए छात्रों को न तो सूचना दी गई और न ही कंपनी ने इसके लिए कोई विज्ञापन जारी किया। इसके बावजूद कंपनी के बिल पास हो गए।