ताऊ देवी लाल जयंती : देशवाली बेल्ट में इनेलो का होगा शक्ति प्रदर्शन
राजनीतिक विश्लेषण
इनेलो सुप्रीमो अभय सिंह चौटाला 25 सितंबर को रोहतक में सम्मान दिवस रैली के ज़रिये अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने जा रहे हैं। यह आयोजन केवल पूर्व उपप्रधानमंत्री दिवंगत चौ़ देवीलाल की जयंती तक सीमित नहीं है, बल्कि हरियाणा की राजनीति में इनेलो की पुनर्स्थापना की बड़ी कोशिश माना जा रहा है। यह रैली खास इसलिए भी है क्योंकि यह पूर्व मुख्यमंत्री चौ़ ओमप्रकाश चौटाला के निधन के बाद अभय चौटाला का पहला बड़ा शक्ति प्रदर्शन होने जा रहा है। इनेलो नेता पिछले महीनों में प्रदेशभर का दौरा कर चुके हैं और कार्यकर्ताओं को एकजुट करने में जुटे हैं। अब उनकी नजरें इस रैली पर टिकी हैं, जिसे इनेलो की वापसी का मंच कहा जा रहा है। रोहतक लंबे समय से कांग्रेस के दिग्गज और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गढ़ माना जाता है। जाटलैंड की इस धरती पर पैर जमाना किसी भी राजनीतिक दल के लिए भविष्य की राजनीति का दरवाजा खोल सकता है।
अभय चौटाला यहां रैली आयोजित कर न केवल कांग्रेस को सीधी चुनौती देने का संकेत कर रहे हैं, बल्कि यह भी दिखाना चाहते हैं कि इनेलो अब फिर से जाट बेल्ट में पैठ बनाने की तैयारी में है। इनेलो के लिए पिछले कुछ साल बेहद कठिन रहे। 2019 में परिवार में फूट पड़ी और बड़े भाई डॉ़ अजय सिंह चौटाला ने जजपा बनाकर अलग राह पकड़ ली। इस बिखराव का असर पहले 2019 और फिर 2024 के विधानसभा चुनावों में साफ दिखाई दिया, जब इनेलो का प्रदर्शन उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा। अब अभय चौटाला एक बार फिर संगठन को खड़ा करने और कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने की कोशिश कर रहे हैं। रोहतक की सम्मान दिवस रैली अभय चौटाला के लिए सिर्फ एक राजनीतिक आयोजन नहीं बल्कि इनेलो के पुनर्जीवन का ऐलान है। हुड्डा के गढ़ में पांव जमाने की कोशिश, ताऊ देवीलाल की विरासत का सहारा और ‘राइट टू रिकॉल’ जैसे मुद्दे को हथियार बनाकर वे यह संदेश देना चाहते हैं कि चौटाला परिवार की राजनीति अब भी जिंदा है। 2029 की ओर बढ़ती रणनीति में यह रैली उनका पहला बड़ा दांव होगी, और शायद सबसे अहम भी।
2029 की राह पर लंबी तैयारी
विश्लेषकों का मानना है कि अभय चौटाला का असली लक्ष्य 2029 है। उनका फोकस फिलहाल संगठन को मजबूत करने और धीरे-धीरे जनता के बीच भरोसा जीतने पर है। वे जाट बेल्ट में पकड़ बनाकर इनेलो को भाजपा और कांग्रेस दोनों के विकल्प के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं। रोहतक की रैली इस मिशन का पहला बड़ा पड़ाव है।
‘राइट टू रिकॉल’ भी बनेगा मुद्दा
पूर्व उपप्रधानमंत्री चौ़ देवीलाल ने सबसे पहले संविधान में संशोधन कर ‘राइट टू रिकॉल’ लागू करने की आवाज उठाई थी। अभय चौटाला ने घोषणा की है कि 25 सितंबर की रैली में इस मुद्दे को फिर से जोर-शोर से उठाया जाएगा। इस अधिकार का मतलब है कि जनता किसी भी विधायक या सांसद को जो वादे पूरे न करे, बीच कार्यकाल में वापस बुला सके और नया प्रतिनिधि चुन सके। अभय का कहना है कि यह अधिकार लागू होते ही झूठे वादों पर रोक लगेगी और कुर्सी जाने के डर से नेता ईमानदारी से जनता की सेवा करेंगे।
इसलिए अलग हैं अभय
अभय अपनी बेबाकी और बोल्डनेस के लिए जाने जाते हैं। उनकी राजनीति में सीधी और सख्त बात करने का अंदाज अक्सर समर्थकों को आकर्षित करता है। हालांकि, उनका यह रुखा व्यवहार कभी-कभी लोगों को खलता भी है। लेकिन उन्हें करीब से जानने और समझने वाले मानते हैं कि अभय अपने वचनों के पक्के हैं और कमिटमेंट निभाने में पीछे नहीं हटते। यही आदत उन्हें बाकी नेताओं से अलग करती है। यही छवि वे अब रोहतक की रैली में पेश करना चाहते हैं।
चुनौतियां
अभय चौटाला की रोहतक और आसपास की जाट बेल्ट में एंट्री आसान नहीं होने वाली। कांग्रेस में हुड्डा का मजबूत संगठन और भाजपा की रणनीतिक पैठ उनके सामने बड़ी चुनौती है। साथ ही, इनेलो की पिछली पराजयों ने कार्यकर्ताओं का मनोबल कमजोर किया है, जिसे दोबारा जगाना आसान नहीं होगा।
संभावनाएं
इसके बावजूद अभय के पास मौका है। जनता पारंपरिक दलों से निराश है और नए विकल्प की तलाश में है। चौटाला परिवार की विरासत और अभय का सीधा, बेबाक अंदाज उन्हें इस क्षेत्र में लोकप्रिय बना सकता है। यदि वे संगठन को मजबूत कर पाए और जनता को यह विश्वास दिला पाए कि इनेलो वादों पर खरी उतरेगी, तो यह रैली उनके लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हो सकती है।
विश्लेषण : समझिए क्यों अहम है रोहतक
जाटलैंड की कुंजी : हरियाणा की राजनीति में ओल्ड रोहतक यानी देशवाली जाट बेल्ट का खास महत्व है। इसमें रोहतक, सोनीपत और झज्जर जिले आते हैं। इस क्षेत्र को लंबे समय से सत्ता की कुंजी माना जाता रहा है।
हुड्डा का दबदबा : कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का इस बेल्ट पर वर्षों से दबदबा रहा है। भाजपा ने भी पिछले कुछ वर्षों में यहां पैठ जमाने की कोशिश की है, लेकिन जाट वोटों में हुड्डा का असर अभी भी गहरा है।
अभय की एंट्री : अगर अभय चौटाला इस बेल्ट में अपनी एंट्री दर्ज कराने में सफल रहते हैं तो यह इनेलो के लिए बड़ी उपलब्धि होगी। उनकी मौजूदगी कांग्रेस और
भाजपा दोनों के लिए चुनौती बनेगी।
2029 पर असर : यदि इनेलो ओल्ड रोहतक बेल्ट में मजबूत पैठ बना पाती है तो इसका सीधा असर 2029 के चुनावों में दिखेगा। यहां पकड़ बनने से इनेलो फिर से तीसरी ताकत के रूप में उभर सकती है।