“सद्भाव यात्रा” से पहले कांग्रेस में बिखराव!
यह यात्रा जहां एक तरफ चौधरी बीरेंद्र सिंह के समर्थकों में उत्साह पैदा कर रही है, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस संगठन ने इससे किनारा करते हुए इसे बृजेंद्र सिंह की “निजी पहल” करार दिया है। पार्टी की इस दूरी ने न केवल सियासी गलियारों में सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि हरियाणा कांग्रेस के भीतर गुटबाज़ी की तस्वीर भी उजागर कर दी है। बृजेंद्र सिंह ने अपनी यात्रा से पहले मीडिया से बातचीत में कहा, “मैं कांग्रेस का सिपाही हूं, और यह यात्रा कांग्रेस को आगे बढ़ाने के लिए है। मैं कांग्रेस का झंडा लेकर सड़क पर उतर रहा हूं—जो जुड़ना चाहें, स्वागत है; जो न जुड़ें, वो अपनी राह।”
उन्होंने यह भी कहा कि इस यात्रा के बाद कांग्रेस की एकजुटता का मूल्यांकन किया जा सकेगा। हालांकि पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने उनके इस बयान को “राजनीतिक संकेत” के तौर पर देखा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बृजेंद्र इस यात्रा के ज़रिए न सिर्फ अपने पिता चौधरी बीरेंद्र सिंह और मां प्रेम लता के समर्थकों को फिर से सक्रिय करना चाहते हैं, बल्कि खुद को राज्य-स्तरीय नेता के रूप में स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं।
यात्रा में कांग्रेस के प्रतीक, लेकिन संगठन ने दिखाई दूरी
दिलचस्प बात यह है कि बृजेंद्र सिंह की “सद्भाव यात्रा” वाली बस पर राहुल गांधी और बृजेंद्र सिंह की बड़ी तस्वीरें लगी हैं, साथ ही सोनिया गांधी, भूपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राव नरेंद्र सिंह के चित्र भी लगाए गए हैं। इसके बावजूद कांग्रेस संगठन ने इस कार्यक्रम से स्पष्ट दूरी बना ली है। पहले पूर्व प्रदेशाध्यक्ष चौधरी उदयभान ने साफ कहा कि “यह कांग्रेस का अधिकृत कार्यक्रम नहीं है।” अब नए प्रदेशाध्यक्ष राव नरेंद्र सिंह ने भी यही रुख अपनाया। उन्होंने कहा, “बृजेंद्र सिंह ने मुझे फोन किया था, लेकिन मैं अन्य कार्यक्रमों में व्यस्त हूं, इसलिए यात्रा में शामिल नहीं हो पाऊंगा।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि कांग्रेस के किसी भी कार्यक्रम से पहले हाईकमान से चर्चा आवश्यक है।
बीरेंद्र-हुड्डा गुटों की पुरानी खटास, असर बेटे की यात्रा पर भी
हरियाणा कांग्रेस की राजनीति में चौधरी बीरेंद्र सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बीच वर्षों से खींचतान रही है। दोनों ही जाट राजनीति के बड़े चेहरे माने जाते हैं, लेकिन आपसी मतभेदों के कारण संगठन में बार-बार विभाजन की स्थिति बनी रहती है। बृजेंद्र की यह यात्रा इस परंपरा को तोड़ने की कोशिश मानी जा रही थी, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व के रुख ने यह साफ कर दिया है कि दल में पुरानी खटास अभी खत्म नहीं हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि बृजेंद्र अपने समर्थकों को एकजुट करने में सफल रहते हैं, तो वे आने वाले विधानसभा चुनावों से पहले राज्य की सियासत में एक मजबूत स्वतंत्र चेहरा बन सकते हैं।
यात्रा से ज्यादा ‘राजनीतिक संदेश’ पर नजरें
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि “सद्भाव यात्रा” का असली उद्देश्य कांग्रेस की एकजुटता से ज्यादा स्वयं बृजेंद्र की राजनीतिक पुनर्स्थापना है। बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आए बृजेंद्र सिंह अब उस राजनीतिक स्पेस को फिर से हासिल करना चाहते हैं, जो उनके पिता की सक्रिय राजनीति के दौरान मजबूत हुआ था। अगर यह यात्रा जनसंपर्क और मीडिया का ध्यान खींचने में सफल रहती है, तो बृजेंद्र कांग्रेस के अंदर एक स्वतंत्र ताकत के रूप में उभर सकते हैं—भले ही पार्टी फिलहाल इसे उनका “निजी कार्यक्रम” कहकर नकार दे।