कानोड और सोहना किले सहित छह ऐतिहासिक स्थल ‘राज्य संरक्षित’
मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की मंजूरी के बाद पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग ने इन स्थलों की प्रारंभिक अधिसूचना जारी कर दी है। विरासत एवं पर्यटन मंत्री डॉ़ अरविंद शर्मा ने बृहस्पतिवार को यहां बताया कि यह पहल प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहरों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की दिशा में बड़ा कदम है। उन्होंने कहा कि कानोड किला (महेन्द्रगढ़ किला) मराठा सेनापति तात्या टोपे के कालखंड की वीरता का प्रतीक है।
यह किला उत्तर भारत में मराठा प्रभाव के विस्तार का ऐतिहासिक साक्ष्य है। वर्ष 1860 में अंग्रेजी शासनकाल के दौरान यह इलाका पटियाला रियासत में शामिल किया गया। पटियाला के महाराजा नरेंद्र सिंह ने अपने पुत्र महेंद्र सिंह के नाम पर इस किले का नाम बदलकर ‘महेंद्रगढ़’ रखा। राजपूत, मुगल और मराठा स्थापत्य शैली का संगम इस किले को स्थापत्य कौशल का अनूठा नमूना बनाता है।
मध्यकालीन सामरिक शक्ति का प्रतीक सोहना किला
दिल्ली से सटे गुरुग्राम जिले में स्थित सोहना किला हरियाणा के सबसे प्राचीन किलों में से एक है। यह किला कभी राजपूतों और मुगलों की रणनीतिक शक्ति का केंद्र रहा करता था। भरतपुर के शासकों ने इसे मध्यकाल में सामरिक चौकी के रूप में विकसित किया था। कैबिनेट मंत्री ने बताया कि सोहना किला न केवल स्थापत्य दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह क्षेत्र की राजनीतिक उठापटक और युद्धक रणनीतियों का जीवंत साक्ष्य भी है।
रेवाड़ी की पांच छतरियां: शौर्य और शिल्प का संगम
रेवाड़ी रियासत के गौरवशाली इतिहास की झलक पांच छतरियों के समूह में देखने को मिलती है। इनका निर्माण राव नंदराम के वंशजों ने करवाया था। महान स्वतंत्रता सेनानी राजा राव तुलाराम के दादा राव तेज सिंह ने इस स्थल को उद्यान के रूप में विकसित करवाया था। ये छतरियां न केवल स्थापत्य दृष्टि से उत्कृष्ट हैं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी रियासत की शौर्यगाथा का प्रतीक भी हैं। इनकी कलात्मक बारीकियां और स्थापत्य अखंडता इन्हें विशेष पहचान देती हैं।
पलवल यानी सभ्यता की जड़ों का ठिकाना
इतिहास की परतें पलवल जिले की तीन प्राचीन बस्तियों - अहरवां, आशा खेड़ा और कोडला खेड़ा में गहराई तक बसी हैं। आशा खेड़ा में पांडव काल से लेकर कुषाण, गुप्त और मध्यकालीन युग तक के अवशेष मिले हैं। अहरवां क्षेत्र में प्राचीन धूसर मृदभांड संस्कृति से भी पुराने बसाव के संकेत हैं। वहीं कोडला खेड़ा में प्रारंभिक लौह युग (1200–600 ई.पू.) की मिट्टी के बर्तन और आवासों के निशान मिले हैं। ये सभी साक्ष्य हरियाणा के उस गौरवशाली इतिहास की गवाही देते हैं, जो आधुनिक काल में भी जीवंत बना हुआ है।
अभी तक 66 राज्य संरक्षित स्थल घोषित
डॉ़ अरविंद शर्मा ने बताया कि राज्य में अब तक 66 राज्य संरक्षित स्थल घोषित किए जा चुके हैं। इनमें से 26 स्थल वर्ष 2022 से अब तक इस सूची में जोड़े गए हैं, जबकि 20 और प्रस्ताव प्रक्रिया में हैं। उन्होंने कहा कि हरियाणा की धरोहरें अब केवल इतिहास की कहानियों में नहीं, बल्कि पर्यटन के नक्शे पर भी चमकेंगी। हमारा लक्ष्य है कि हर जिला अपने एक विशिष्ट विरासत स्थल के लिए पहचाना जाए।
 
 
             
            