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गांव में फेरों पर घूंघंट की प्रथा तोड़ी, 7 किमी. पैदल चल मैट्रिक की की, आज ज्वॉइंट डायरेक्टर के पद पर सेवाएं दे रहीं राजबाला

महिला दिवस पर सशक्तीकरण का सशक्त उदाहरण हैं गांव गणियार की राजबाला
राजबाला कटािरया
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मनोज बुलाण/ निस

मंडी अटेली, 7 मार्च

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अनुसूचित जाति परिवार में जन्म लेकर 7 किमी. पैदल चल कर मैट्रिक की परीक्षा पास की। उसके बाद 150 किमी. दूर हिसार कृषि विश्वविद्यालय से एमएससी पास कर ज्वॉइंट डायरेक्टर के पद पर महिला व बाल विकास विभाग में अपनी उत्कृष्ट सेवाए दे रहीं राजबाला कटारिया ने महिला सशक्तीकरण का बेहतरीन उदाहरण पेश किया है। अटेली खंड के गांव गणियार में 17 दिसंबर 1969 को मास्टर रघुवीर सिंह व चंपा देवी के घर में जन्मीं राजबाला अपने गांव की पहली एमएससी व यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली लड़की बनीं। गांव के प्राइमरी स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा हासिल कर 7 किमी. दूर अपने पैतृक गांव गणियार से पैदल चल कर गोकलपुर हाई स्कूल से 1985 में मैट्रिक पास की। उसके बाद गांव से 150 किमी. दूर लड़कियों को घर से दूर पढ़ाने की मान्यता को छोड़ कर पिता मास्टर रघुवीर सिंह ने हिसार स्थित कृषि यूनिवर्सिटी में होम साइंस में एमएससी उच्च शिक्षा हासिल करवाई। उसके बाद महिला एवं बाल विकास विभाग में 1992 में सीडीपीओं के पद नियुक्ति हुईं तथा विशेष सेवाओं व दक्षता के बल पर 2 साल में ही विभाग में ही कार्यक्रम अधिकारी बनी। विभाग में कुपोषण, महिलाओं व विभाग में उत्कृष्ट सेवाओं के बल पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा व मनोहर लाल खट्टर समेत अनेक संस्थाओं से सम्मानित हो चुकी हैं। कार्यक्रम अधिकारी के रूप में प्रदेश के रोहतक, कैथल, जींद, पंचकूला में विभाग की सेवाओं के चलते कार्यक्रम अधिकारी से डिप्टी डायरेक्टर की पदोन्नति के बाद 1 साल बाद ही विभाग में पिछले 3 साल से ज्वाॅइंट डायरेक्टर पर अपनी सेवाएं दे रही हैं। जब गांव में आती हैं तो गांव की दूसरी लड़कियों के लिए भी प्रेरणा बनती हैं।

बोलीं- मुकाम तक पहुंचने में माता-पिता ने दिया साथ

राजबाला कटारिया कहती हैं कि इस मुकाम तक पहुंंचाने के लिए उनके पिता मास्टर रघुवीर सिंह व माता चंपा देवी का बहुत साथ मिला। विवाह होने के बाद उनके पति रामफल कटारिया जो रिटायर्ड डीआरओ हैं, ने हर कदम पर सहयोग किया। बताती हैं कि समाज में गरीबी, अशिक्षा व गैर बराबरी को खत्म करने के लिए वह अपनी तरफ से बेस्ट करती हैं। बाबा साहेब अंबेडकर का आदर्श मान कर आडंबर, अंधविश्वास, मूर्ति पूजा से दूर रह कर अपने कार्यो को शुद्ध अंतकरण व ईमानदारी से करने पर यह मुकाम हासिल हुआ।

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