दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 11 जून
बरसों तक संघ में सक्रिय रहे सीएम मनोहर लाल खट्टर की ‘मास्टरी’ राज्यसभा चुनावों में देखने को मिली है। उनकी मैनजमेंट के सामने कांग्रेस के तमाम प्रयास बौने साबित हुए। यह लगातार दूसरा मौका है जब राज्यसभा की दो सीटों के लिए चुनाव हुआ और दोनों पर ही पार्टी और उसके समर्थित उम्मीदवार ने जीत हासिल की। इससे पहले वर्ष 2016 में भी ऐसे ही हालात बने थे।
मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में दोनों सीटों पर जीत हासिल करके सीएम ने न केवल कांग्रेस को करारा झटका दिया है बल्कि विधायकों पर अपनी मजबूत पकड़ और भरोसे को साबित करने में भी वे कामयाब रहे हैं। इस पूरे घटनाक्रम के बाद केंद्र के सामने उनका राजनीतिक कद भी बढ़ा है। स्वाभाविक है कि राज्यसभा चुनाव के नतीजों से पार्टी वर्करों का मनोबल भी बढ़ेगा और निकाय चुनावों में भी पार्टी को इसका लाभ मिल सकता है। यह पहला मौका नहीं है जब सीएम मनोहर लाल ने अपनी बेहतर मैनेजमेंट का प्रदर्शन किया है। पिछले आठ वर्षों में ऐसे कई मौके आए हैं, जब उनकी सरकार द्वारा लिए गए फैसलों पर केंद्र से शाबासी मिली है। कई नीतियों को दूसरे राज्यों सहित केंद्र ने भी अपनाया है। अक्तूबर-2014 में जब पहली बार उन्होंने मुख्यमंत्री के तौर पर प्रदेश की कमान संभाली तो उन्हें राजनीतिक तौर पर इतना परिपक्व नहीं माना जाता था लेकिन लगातार दूसरी बार भाजपा को सत्ता में लाकर उन्होंने इस भ्रम को तोड़ा।
पीएम नरेंद्र मोदी की ‘गुड-बुक’ में शामिल मनोहर लाल को हिसाब-किताब का बड़ा पक्का माना जाता है। शायद, यहीं कारण है कि वे अपने गणित का उपयोग सियासी गुणा-भाग में भी करते हैं। यह स्पष्ट नजर आ रहा था कि राज्यसभा की दो सीटों में से एक भाजपा और दूसरी कांग्रेस के खाते में जाना लगभग तय है, लेकिन सीएम शुरू से ही दूसरी सीट को लेकर भी आश्वस्त नजर आ रहे थे। कार्तिकेय शर्मा को जब निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतारने का निर्णय लिया गया तो उसी समय तय हो गया था कि अब मुकाबला रोचक होगा।
यह मनोहर का ही फार्मूला था कि पहले प्रत्याशी यानी कृष्ण लाल पंवार के लिए भाजपा के 31 विधायकों के वोट डलवाने की बजाय छह निर्दलीयों और 25 भाजपा विधायकों के वोट डलवाए गए। शुरुआती दौर में इसे कम ही लोग समझ पाए थे लेकिन जब बात समझ में आई तो उनकी दाद भी दी गई। चुनाव में जीत के लिए अंदरखाने बिछाई गई उनकी बिसात पर जब गोटियां पड़ी तो वे वैसे ही पड़ी, जैसा की सरकार चाहती थी।
मंझे हुए खिलाड़ी हैं विनोद शर्मा
पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा ने भी अपने बेटे कार्तिकेय शर्मा को राज्यसभा भेजकर साबित कर दिया है कि वे राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। हुड्डा सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान वे कैबिनेट मंत्री भी रहे। हुड्डा के साथ उनके पारिवारिक रिश्ते भी रहे, लेकिन बाद में दोनों में दूरियां भी देखने को मिली। कांग्रेस छोड़ने के बाद उन्होंने खुद की पार्टी बनाई। विधानसभा में बेशक उनकी पार्टी खाता नहीं खोल पाई, लेकिन अपनी पत्नी शक्ति रानी को उन्होंने अम्बाला सिटी की मेयर बनवा कर साबित कर दिया था कि उनकी पकड़ अभी कम नहीं हुई है।
पंवार, कार्तिकेय की जीत हरियाणा वासियों की जीत : सीएम
चंडीगढ़ (ट्रिन्यू): हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने राज्यसभा चुनाव जीतने वाले भाजपा के सांसद कृष्ण लाल पंवार और निर्दलीय चुनकर आए सांसद कार्तिकेय शर्मा को बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह हरियाणा की जनता की जीत है। दोनों सांसद राज्यसभा में जाकर हरियाणा के हितों को उठाएंगे। मुख्यमंत्री ने अल सुबह करीब 3 बजे खुद हरियाणा विधानसभा पहुंचकर दोनों नवनिर्वाचित सांसदों को बधाई देते हुए लड्डू खिलाए। एक सवाल का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि विधायक कुलदीप बिश्नोई ने खुला वोट दिया। उन्होंने अपनी अंतर आत्मा की आवाज सुनकर वोट दिया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की नीतियों से प्रभावित होकर ही ऐसा किया होगा। कुलदीप बिश्नोई ने राष्ट्रीय विचार से जुड़ने का एक अवसर अपनी अंतरआत्मा के साथ मजबूत किया है। मुख्यमंत्री ने कहा, कांग्रेस का एक वोट कैसे रद्द हुआ यह उन्हें नहीं पता है लेकिन हमारी पार्टी के पूरे वोट पड़े हैं।