घर न ग्रामीण और वोटें मात्र तीन
खड़ालवा कैथल जिले के 700 वर्ष पुराने गांव में आबादी नहीं मगर नाम बरकरार
ललित शर्मा/हप्र
कैथल, 11 दिसंबर

खड़ालवा गांव में शताब्दियों पुराना शिव मंदिर है। इस मंदिर की प्रतिष्ठा दूर-दूर तक फैली है। मंदिर में प्रतिष्ठित स्वयंभू शिवलिंग अद्वितीय है। इस स्थान पर भगवान शिव को पातालेश्वर या खट्वांगेश्वर के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहां पर बना शिवलिंग हजारों वर्ष पहले स्वयं प्रकट हुआ था। यह मंदिर एक टीले के ऊपर बना है। मान्यता है कि यहां किसी समय में कोई विकसित संस्कृति रही होगी, जो शकों तथा हूणों के हमलों से तबाह हो गई। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, खट्वांगेश्वर भगवान शिव का संबंध भगवान राम की वंशावली से जुड़ा हुआ है। इक्ष्वाकु वंश में भगवान राम से दस पीढ़ी पूर्व उनके अग्रज हुए हैं परम प्रतापी राजा खड्वांग। देव दानवों के युद्ध में राजा खट्वांग ने देवों की ओर से युद्ध किया तथा दानवों को पराजित किया। जब उन्हें उनके जीवन के तीन ही पल शेष रहने का पता चला तो वे राज-काज त्यागकर इस स्थान पर तपस्या के लिए आ गए थे। बताया जाता है कि भगवान शिव ने कहा था कि इस स्थान पर उनकी पूजा खट्वांगेश्वर के नाम से होगी। समय के साथ सभ्यता लुप्त होती गई, लेकिन इस पौराणिक शिवलिंग का अस्तित्व नहीं मिटा। शिवभक्त महाराजा पटियाला भूपेंद्र सिंह ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। गांव के पटवारी विकास कहते हैं खड़ालवा के नाम से करीब 800 एकड़ भूमि का रकबा है। इस बेचिराग गांव में कोई नहीं रहता है। साधुओं के ही कुछ वोट हैं। मंदिर, गौशाला व स्कूल भी गांव खड़ालवा के नाम से है।
प्राकृतिक आपदा में लुप्त हो गया था गांव


