दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 27 जुलाई
पंडित भगत दयाल शर्मा यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसिज यानी पीजीआई रोहतक खुद ही ‘आईसीयू’ में है। उसे तुरंत ‘उपचार’ की जरूरत है। अब चूंकि बात बीमारी की है तो उपचार डॉक्टर ही करेंगे। संकट यह है कि पीजीआई में डॉक्टर नहीं हैं। इसी कारण से यह स्वास्थ्य संस्थान इस स्थिति में पहुंचा है। स्टाफ की कमी के चलते यूनिवर्सिटी ने साफ कहा है कि ऐसे में एमबीबीएस तथा एमडी/एमएस की पढ़ाई करवा पाना बहुत मुश्किल है।
दरअसल, यूनिवर्सिटी में लंबे समय से डॉक्टरों के बड़ी संख्या में पद खाली हैं, लेकिन उन्हें भरने की इजाजत सरकार से नहीं मिल रही है। अब चूंकि पीजीआई को यूनिवर्सिटी बनाया जा चुका है तो रोहतक मेडिकल यूनिवर्सिटी ने भी स्वायत्तता की डिमांड उठाते हुए सरकार से कहा है कि दूसरे विश्वविद्यालयों की तरह उन्हें भी खाली पदों को भरने की मंजूरी दी जाए।
विश्वविद्यालय के कुलपति ने इसके लिए चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को पत्र लिखा है। करीब 45 प्रतिशत डॉक्टरों के पद खाली होने से यूनिवर्सिटी की मुश्किलें बढ़ी हैं। इतना ही नहीं, मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी को लिखे पत्र में वाइस चांसलर ने खाली पदों का ब्योरा दिया है। 15 जुलाई को यूनिवर्सिटी की ओर से यह चिट्ठी भेजी गई थी, लेकिन सरकार ने अब तक इस पर कोई कदम नहीं उठाया है।
मेडिकल यूनिवर्सिटी में मेडिकल कॉलेज भी है और इसमें एमबीबीएस की पढ़ाई होती है। इसी तरह से यूनिवर्सिटी में एमडी/एमएस भी करवाई जा रही है, लेकिन फैकेल्टी नहीं होने की वजह से पढ़ाई प्रभावित हो रही है।
यूनिवर्सिटी में सीनियर प्रोफेसर के कुल 86 स्वीकृत पद हैं और इनमें से 63 भरे हुए हैं। 23 पद खाली हैं। इसी तरह से टीचर (असिस्टेंट प्रोफेसर) के 412 पदों में से 168 खाली हैं। केवल 244 ही टीचर (असिस्टेंट प्रोफेसर) यूनिवर्सिटी के पास हैं।
सीनियर रेजिडेंट/डेमोस्ट्रेटर्स की स्थिति और भी खराब है। कुल 858 स्वीकृत पदों में से 427 भरे हुए हैं और 431 पद खाली हैं। इन तीन पदों के कुल 1356 स्वीकृत पदों में से 45 प्रतिशत के लगभग यानी 622 पद खाली हैं। साफ-साफ लिखा गया है कि यूनिवर्सिटी और इसके कॉलेजों को पचास प्रतिशत स्टॉफ से ही चलाया जा रहा है, जो व्यवहारिकता में संभव नहीं है। रोहतक यूनिवर्सिटी तो क्या किसी भी मेडिकल इंस्टीट्यूट के लिए इस स्थिति में रिजल्ट दे पाना संभव नहीं है।
मरीज भी हो रहे प्रभावित
यूनिवर्सिटी प्रशासन ने यह भी साफ कर दिया है कि स्टाफ की कमी से एमबीबीएस, एमडी/एमएस की पढ़ाई ही नहीं बल्कि यहां उपचार के लिए आने वाले मरीज भी प्रभावित हो रहे हैं। उपचार के लिए डॉक्टर ही नहीं होंगे तो मरीजों की बीमारियां को दूर कैसे किया जाएगा।
सभी पद भरने की मांग
वाइस चांलसर ने यूनिवर्सिटी में खाली सभी पदों के लिए विज्ञापन जारी करने और भर्ती करने की अनुमति मांगी है। साथ ही, यह भी कहा गया है कि यूनिवर्सिटी लेवल पर ही भर्ती की मंजूरी दी जाए ताकि इसे जल्द पूरा किया जा सके। इसके लिए यूनिवर्सिटी एक्ट का भी हवाला पत्र में दिया गया है।