Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

HSVP की निजी संपत्ति नीति पर उठे सवाल, मुख्यमंत्री से मिले सलाहकार

HSVP हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (एचएसवीपी) की हालिया नीति और पोर्टल को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। हाल ही में एचएसवीपी ने आदेश जारी कर कहा था कि राज्य में निजी संपत्ति की बिक्री-खरीद अब पोर्टल के ज़रिये भी...
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

HSVP हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (एचएसवीपी) की हालिया नीति और पोर्टल को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। हाल ही में एचएसवीपी ने आदेश जारी कर कहा था कि राज्य में निजी संपत्ति की बिक्री-खरीद अब पोर्टल के ज़रिये भी की जा सकेगी। हालांकि यह प्रणाली अनिवार्य नहीं है और पूरी तरह स्वैच्छिक रखी गई है, फिर भी प्रॉपर्टी कारोबार से जुड़े संगठनों ने इसका कड़ा विरोध शुरू कर दिया है।

इसी कड़ी में मंगलवार को हरियाणा प्रॉपर्टी कंसलटेंट्स फेडरेशन का प्रतिनिधिमंडल चंडीगढ़ में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी से मिला। फेडरेशन के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल और महासचिव गुरमीत सिंह देओल ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपते हुए मांग की कि इस नीति को तुरंत वापस लिया जाए। संपत्ति सलाहकारों का तर्क है कि यह व्यवस्था धीरे-धीरे अनिवार्य बनाने की दिशा में कदम हो सकती है, जिससे प्रदेश का पारंपरिक बाजार ढांचा प्रभावित होगा।

Advertisement

फेडरेशन ने अपने ज्ञापन में कहा कि एचएसवीपी का गठन नगरों में योजनाबद्ध विकास और नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए किया गया था। लेकिन अब प्राधिकरण खुद को निजी संपत्ति की खरीद-फरोख्त का मध्यस्थ बनाने की कोशिश कर रहा है। इससे न केवल पारदर्शिता पर सवाल खड़े होंगे बल्कि हजारों लोगों का रोजगार भी प्रभावित होगा।

फेडरेशन पदाधिकारियों का कहना है कि यदि सरकार ने इस नीति को लागू रखा तो यह न केवल संपत्ति कारोबार बल्कि प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर भी प्रतिकूल असर डालेगी। उन्होंने मुख्यमंत्री से अपील की कि तुरंत हस्तक्षेप कर इस नीति को वापस लिया जाए और एचएसवीपी को उसके मूल कार्य—योजनाबद्ध विकास और नागरिक सुविधाओं तक सीमित रखा जाए।

पत्र में उठाई गई प्रमुख आपत्तियां

  • पोर्टल से लेन-देन में अस्पष्टता और पारदर्शिता की कमी रहेगी, जिससे खरीदार और विक्रेता दोनों को जोखिम होगा।
  • विक्रेता अग्रिम धनराशि (बयाना) मनमानी रकम पर मांग सकता है, खरीदार को बातचीत का अवसर नहीं मिलेगा।
  • एचएसवीपी ने खुद को इस जिम्मेदारी से अलग कर लिया है कि वह विक्रेता को पूरा भुगतान सुनिश्चित करे या क्रय-विक्रय विलेख (सेल डीड) निष्पादित कराए।
  • यदि विक्रेता सौदे से पीछे हटता है तो खरीदार को आर्थिक नुकसान होगा, और यदि खरीदार पीछे हटता है तो विक्रेता को कोई कानूनी उपाय नहीं मिलेगा।
  • तहसील स्तर की कानूनी प्रक्रिया अप्रभावी हो जाएगी, जिससे राज्य का राजस्व ढांचा भी प्रभावित होगा।

स्वैच्छिक होने पर भी असर गहरा

फेडरेशन का कहना है कि भले ही यह व्यवस्था अनिवार्य न होकर स्वैच्छिक रखी गई है, लेकिन एचएसवीपी के शामिल होने से बाजार में असमान प्रतिस्पर्धा पैदा होगी। निजी संपत्ति सलाहकारों के अनुसार, हजारों पंजीकृत सलाहकार अब तक राज्य सरकार को सीधा राजस्व देते आए हैं, लेकिन यह नई व्यवस्था उनके योगदान को नज़रअंदाज़ कर रही है।

Advertisement
×