जींद(जुलाना),30 अप्रैल(हप्र)
अक्षर भवन जींद में अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस की पूर्व संध्या पर मंगलवार को जनवादी लेखक संघ जींद द्वारा काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता राममेहर ‘कमेरा’ ने की। संगोष्ठी में कवियों ने मौजूदा दौर की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक हालात पर व्यंग्य कसती व मजदूरों के जीवन संघर्षों को रेखांकित करती कविताएं पढ़ी।
संगोष्ठी में बोलते हुए कमेरा ने अपने दोहों में कहा ‘सत्ता तूने बना दिए, कैसे कैसे योग, बड़े-बड़े घर में मिले छोटे-छोटे लोग। चार बरस की नौकरी, चिंतित पिता किसान, अग्निवीर जीवन तेरा, लगता बीयाबान।’
राजेश भेंट ने अपने गीत में पढ़ा ‘कैसा आया रै जमाना, ना है कोई अन्जाना, ये तो सबने है माना, हुई कैश प्रोबलम। हर किसी को, हर किसी को, कैश प्रोबलम।’
जलेस के सचिव मंगतराम शास्त्री ने ‘मैं श्रमजीवी’ नामक कविता में कहा ‘श्रम की चोरी का दर्द सहा है मेरी पुश्तों ने, पर नीले गृह को बसने लायक मैंने ही बनाया है, मैं श्रमजीवी हूं, जग को संस्कृति व सभ्यता का पाठ मैंने ही पढ़ाया है।’
उनकी हरियाणवी गजल के दो शे’र देखिए -’सारा जीवन बीत गया इस आशा म्हं, सुख के तो बस ढाई सांस भतेरे सैं। रोज तलाश करो अपणै बरगे मन की, बिन साथी तो हारे भले भलेरे सैं।’ विक्रम राही ने हरियाणवी रचना पेश करते हुए कहा ‘त्यार रहया कर त्यारां गेल्यां, अपणे मित्तर प्यारां गेल्यां, तज लाठ्ठी बुड़के बन्दूख लडऩा सीख विचारां गेल्यां।
जो घाट घाट का पाणी छाणैं तूं मे? राख बणजार्यां गेल्यां।’ कपिल भारद्वाज ने ‘तानाशाह’ शीर्षक से कविता प्रस्तुत की। प्रवेश कुमार ने मजदूर आंदोलन पर लिखी अपनी कविता में कहा ‘भूखे मरें बच्चे सर्द बुखारों से, जुल्म सहें कब तक ये गद्दारों से, फूटेगा इनका ज्वाला इनके औजारों से, तभी चलेगा सही आंदोलन लाखों हजारों से।’
अंत में अध्यक्षीय संबोधन के साथ राममेहर कमेरा ने संगाेष्ठी का समापन किया।