शाहाबाद मारकंडा, 14 अक्तूबर (निस)
आधुनिकता के साये ने मिट्टी के बर्तनों की चमक भले ही फीकी कर दी हो पर कुम्हार अपने काम में पूरी मेहनत से जुटे हैं। दर्जनों कारीगर रात दिन मिट्टी के बर्तनों को फैंसी लड़ियों व मोमबत्तियों से मुकाबले के लिए उन्होंने नया हथियार निकाल लिया है। अब कुम्हार दीये, कुजियां, हटड़ी, लक्ष्मी, गणेश की मूर्तियां, राज दरबार व फ्लावर पोट पर रंग-बिरंगी चित्रकारी कर रहे हैं।
कई वर्षों से पुश्तैनी धंधे में लगे कुम्हार फूल सिंह व महाजन का परिवार इस काम में रात-दिन जुटा है। बिजली की लड़ियां नागरिक खरीदते जरूर हैं, परंतु दीयों की तरफ रुझान कम नहीं हुआ है। ग्राहकों की पंसद को ध्यान में रखते हुए वे बर्तनों को फैंसी रूप देने में लगे हैं। फूल सिंह ने कहा कि लोग चाहे त्योहारों की परंपरा को भूल गए हों, लेकिन वे अपने पुश्तैनी धंधे को लुप्त नहीं होने देंगे। मिट्टी के बर्तन भी में पकाने का खर्च बढ़ने से कुम्हार वर्ग परेशान है।