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सामाजिक क्रांति और समानता के अग्रदूत

पुस्तक समीक्षा

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राजकिशन नैन

महात्मा फुले के विचारों तथा दर्शन के बारे में इतना अध्ययन पहले कभी नहीं हुआ, जितना मोहनदास नैमिशराय के ताजा उपन्यास ‘क्रांति पुरुष ज्योतिराव फुले’ में पढ़ने को मिला। आज देश- समाज को फुले के विचारों की जरूरत है। धर्मान्धता के चंगुल से देश का छुटकारा कराना जरूरी है। क्योंकि सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव बिना न तो हम लोकतंत्र, समाजवाद, धर्मनिरपेक्ष समाज और शासन की स्थापना कर पायेंगे, न धर्म-जन्य मूल्यों को आगे बढ़ा सकेंगे। शायद हिन्दी में यह पहला उपन्यास है, जिसमें ज्योतिराव फुले और सावित्री बाई के जीवन-संघर्ष समेत दलितों-पिछड़ों व महिलाओं को शिक्षित करने के चुनौतीपूर्ण कार्य चित्रित किया गया है। फुले दम्पति को संघर्ष करते हुए अपमान सहने पड़े, किन्तु उन्होंने सेवाभाव धर्म नहीं छोड़ा। ज्योतिराव ने सैकड़ों वर्षों से जारी वर्णवादी व्यवस्था की मुखालफत करके, समानता एवं बंधुभाव आधारित एक नए समाज की स्थापना हेतु अपना जीवन लगाया। दुखी-जनों, शूद्रों और दलितों की तरक्की तथा उनकी इनसानी गरिमा को बनाये रखने के लिए अनथक कार्य किए।

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ज्योतिराव का जन्म 11 अप्रैल, 1827 के दिन गोविन्द राव माली के घर पूना में हुआ। जन्म के नौ माह बाद इनकी मां चिमनाबाई चल बसी। इनको इनकी बाल विधवा मौसेरी बहन सगुनाबाई ने पाल पोसकर बड़ा किया। उन्हीं ने ज्योति को अंग्रेजी शिक्षा दिलाई। ज्योतिबा का विवाह तेरह साल की उम्र में सावित्री के साथ हुआ था। इनकी पत्नी भी खेलने की उम्र में ससुराल आ गई थी। सावित्रीबाई व ज्योतिराव संतानहीन थे। ज्योतिराव ने पुनर्विवाह से मना कर दिया था। फुले दम्पति ने एक उच्च वर्ण की विधवा द्वारा त्याग दिए गए कथित अवैध शिशु को गोद लिया था। इस कदम से फुले दम्पति ने जाति, मातृत्व, पितृत्व व वंशावली से जुड़ी बातों को खुलकर चुनौती दी थी।

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ज्योतिराव अन्तरजातीय विवाह को जातिप्रथा तोड़‌ने का जरिया बताते थे। समाज के विरोध के बावजूद उन्होंने अनेक विधवाओं का पुनर्विवाह करवाया था। फुले दम्पति ने अठारह स्कूल खोले। पाठशालाएं चलाईं तथा एक ऐसा अनाथालय खुलवाया जहां गर्भवती विधवाएं प्रसव करा सकती थी। मकसद भ्रूण हत्या रोकना व विधवाओं को आत्महत्या से बचाना था। पेशवाओं द्वारा निर्मित पानी के होदों में से शूद्र लोग पानी नहीं ले सकते थे। ऐसे में ज्योतिराव ने अपने घर में बना पानी का हौदा अछूत भाइयों के लिए खुलवाया। मिल मजदूरों की समस्याओं के हल और किसानों को संगठित-जाग्रत करने हेतु ज्योतिराव ही उनके ‘अगुआ’ बने। किसानों, शूद्रों एवं अतिशूद्र जातियों के उत्थान हेतु बहुउपयोगी पुस्तकों-ग्रन्थों की रचना की। फुले की पहली साहित्यिक कृति ‘तृतीय रत्न’ नामक नाटक था। सन‍् 1890 ई. में 63 साल की वय में महात्मा ज्योतिराव की जीवन ज्योति विलीन हो गई।

पुस्तक : क्रांति पुरुष ज्योतिराव फुले लेखक : मोहनदास नैमिशराय प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 149 मूल्य : रु. 250.

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