मात्र गीता में ही है मन की खुराक : स्वामी ज्ञानानंद
कुरुक्षेत्र, 12 जून (हप्र)
स्वामी ज्ञानानंद ने 7बी कॉलोनी में आयोजित मासिक दिव्य गीता सत्संग में व्यासपीठ से आशीर्वचन देते हुए कहा कि विश्व में कहीं भी मन की खुराक नहीं है, केवल मात्र पवित्र ग्रंथ गीता में ही मन की खुराक है, गीता को जीवन में उतारने से मन स्थिर होता है और मनोबल बढ़ता है। आज युवाओं में बढ़ती जा रही नशे की प्रवृत्ति को भी गीता को जीवन में उतारकर रोका जा सकता है। इस अवसर पर गीता मनीषी द्वारा गाए गए श्रीमन नारायण, नारायण, नारायण के भजन से सारा वातावरण भक्तिमय हो गया। दिव्य गीता सत्संग का शुभारंभ भाजपा के जिलाध्यक्ष सरदार तेजेंद्र सिंह गोल्डी ने दीप प्रज्वलित करके किया।
इस अवसर पर ब्रह्मचारी शक्ति जी, जिप के पूर्व चेयरमैन गुरदयाल सुनहेड़ी, मायाराम चंद्रभानपुरा, धर्मपाल शर्मा, संजीव मित्तल सिकरी, आरएसएस के प्रांत कार्यवाह डॉ. प्रीतम, विजय नरूला, सुनील वत्स, प्रदीप झांब, प्रेस क्लब के वरिष्ठ उपाध्यक्ष अशोक यादव, गीता ज्ञान संस्थानम के मीडिया प्रभारी रामपाल शर्मा, मंगतराम जिंदल, हंसराज सिंगला, पवन गुंब्बर सहित अनेक गणमान्य लोगों ने आरती में भाग लिया और स्वामी ज्ञानानंद से आशीर्वाद प्राप्त किया।
उन्होंने कहा कि गीता विश्व का एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसे भगवान ने अपने मुखारविंद से गाया है। गीता के माध्यम से ही नशे की प्रवृत्ति को रोका जा सकता है। गीता के सूत्र को जीवन में अपनाने से व्यक्ति को जहां अपने कर्तव्य का बोध होता है तो वहीं उसका मनोबल भी बढ़ता है। अर्जुन जब डावांडोल हो गया और उसका मनोबल गिर गया तो भगवान श्री कृष्ण ने सारथी की भूमिका में उसका मनोबल बढ़ाया और उसे कर्तव्य का बोध कराया।