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24 लाख में से सिर्फ 97 हजार ने चुनी यूपीएस

कर्मचारियों ने फिर उठाई ओपीएस बहाली की मांग

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केंद्र सरकार की नई यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) को लेकर कर्मचारियों में असंतोष देखने को मिल रहा है। करीब 24.6 लाख एनपीएस (एनपीएस) कर्मचारियों में से अब तक केवल 97 हजार 94 ने ही यूपीएस को चुना है। यानी महज 3.9 प्रतिशत। कर्मचारी संगठनों का कहना है कि सरकार के तमाम प्रचार और तिथि बढ़ाने के बावजूद कर्मचारी इस नई पेंशन व्यवस्था से दूरी बनाए हुए हैं।

अधिकांश कर्मचारी एक सुर में कह रहे हैं – ‘हमें एनपीएस या यूपीएस नहीं, केवल ओपीएस (पुरानी पेंशन स्कीम) चाहिए।’ दरअसल, केंद्र सरकार ने पहली अप्रैल, 2025 से यूपीएस लागू करने की घोषणा की थी और एनपीएस कर्मियों को 30 जून तक इस योजना में शिफ्ट होने का विकल्प दिया गया। लेकिन जब कर्मचारियों ने कोई खास रुचि नहीं दिखाई तो यह अवधि 30 सितंबर और बाद में 30 नवंबर तक बढ़ा दी गई।

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पेंशन बहाली संघर्ष समिति हरियाणा के प्रदेश अध्यक्ष और एनएमओपीएस के राष्ट्रीय मुख्य संगठन सचिव विजेन्द्र धारीवाल ने केंद्र सरकार की नई स्कीम को पूरी तरह फेल बताया है। उनका कहना है कि यूपीएस, एनपीएस की तरह ही कर्मचारियों की जीवनभर की जमा पूंजी को शेयर बाजार में निवेश करने का तरीका है। उन्होंने कहा कि सरकार खुद मान चुकी है कि एनपीएस सामाजिक सुरक्षा नहीं दे पा रही। अब यूपीएस के नाम पर कर्मचारियों को गुमराह किया जा रहा है। यह पेंशन नहीं, निवेश योजना है। धारीवाल ने चेतावनी दी कि यदि हरियाणा सरकार पुरानी पेंशन नीति को बहाल नहीं करती, तो राज्यभर के कर्मचारी बड़े आंदोलन के लिए मजबूर होंगे।

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वहीं अखिल भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुभाष लांबा ने कहा कि यूपीएस कर्मचारियों की नहीं, बल्कि कार्पोरेट सेक्टर की मांग थी। इस स्कीम में कर्मचारी के वेतन का 10 प्रतिशत और सरकार का 18.5 प्रतिशत हिस्सा मिलाकर 28.5 प्रतिशत राशि निजी कंपनियों में निवेश की जाएगी। लाम्बा ने कहा कि ओपीएस में सरकार जीपीएफ के जरिए विकास कार्यों में धन खर्च कर सकती है, लेकिन यूपीएस में यह पैसा निजी हाथों में चला जाता है। सरकार ने पीएफआरडीए एक्ट रद्द करने की मांग को अनदेखा कर कर्मचारियों के साथ अन्याय किया है। उन्होंने कहा कि जब तक पीएफआरडीए एक्ट रद्द कर पुरानी पेंशन बहाल नहीं की जाती, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।

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