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सीट एक पर इलाके दो, भिवानी-महेंद्रगढ़ भी भिड़ रहे आपस में

ग्राउंड रिपोर्ट /भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट
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धर्मबीर सिंह , राव दान सिंह
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दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू

भिवानी, 23 मई

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भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस में कांटे की टक्कर बनी हुई है। जिस तरह से इन दोनों पार्टियों में मुकाबला है, उसी तरह से ओल्ड भिवानी और महेंद्रगढ़ जिले के मतदाताओं में भी जीत को लेकर प्रतिद्वंद्विता दिख रही है। मुकाबला भी आमने-सामने का इसलिए हुआ है, क्योंकि कांग्रेस ने लम्बे अरसे के बाद यहां सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अपनाया है। भाजपा के जाट उम्मीदवार धर्मबीर सिंह के मुकाबले कांग्रेस ने यादव कोटे से राव दान सिंह को मैदान में उतार कर मुकाबले को रोचक बना दिया है। भिवानी जिले के लोहारू, बाढड़ा, तोशाम व भिवानी शहर तथा दादरी जिले के दादरी व बाढ़डा हलके इस सीट के तहत आते हैं। इसी तरह से महेंद्रगढ़ जिले के चार हलकों – नारनौल, महेंद्रगढ़, नांगल-चौधरी व अटेली को इसमें शामिल किया हुआ है। लोकसभा क्षेत्र में चुनाव कांटे का दिख रहा है, लेकिन दोनों ही पार्टियों की टेंशन ‘मौन मतदाताओं’ ने बढ़ाई हुई है। मतदाताओं की चुप्पी से उम्मीदवार सहमे हुए हैं।

परिसीमन के बाद यह पहला चुनाव है, जब इतना कड़ा मुकाबला नजर आ रहा है। 2019 के चुनावों में भाजपा प्रत्याशी धर्मबीर सिंह कांग्रेस की उम्मीदवार श्रुति चौधरी के मुकाबले सहज थे। उन्होंने सभी नौ हलकों में अपने चुनावी कार्यालय तक नहीं खोले थे। वहीं इससे पहले 2009 और 2014 के चुनावों में इस लोकसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला बना था। 2009 में कांग्रेस टिकट पर पहली बार श्रुति चौधरी ने चुनाव जीता था। इनेलो के अजय सिंह चौटाला और हजकां (बीएल) के राव नरेंद्र सिंह ने उन्हें टक्कर दी थी।

त्रिकोणीय मुकाबले में श्रुति चौधरी 55 हजार 577 मतों के अंतर से चुनाव जीती थीं। अजय चौटाला को 2 लाख 47 हजार 240 और राव नरेंद्र सिंह को 2 लाख 14 हजार 161 वोट मिले थे। हालांकि 2014 के त्रिकोणीय मुकाबला कांग्रेस पर भारी पड़ा। इनेलो के राव बहादुर सिंह ने कांग्रेस की श्रुति चौधरी को तीसरे पायदान पर पहुंचा दिया। ऐसे में धर्मबीर सिंह अपना पहला ही चुनाव 1 लाख 29 हजार 394 मतों से जीतने में कामयाब रहे। राव बहादुर सिंह को 2 लाख 75 हजार 148 और श्रुति चौधरी को 2 लाख 68 हजार 115 वोट मिले।

2019 में इनेलो और चौटाला परिवार में पड़ी फूट का असर इस संसदीय सीट पर भी पड़ा। भिवानी बेल्ट में अच्छा प्रभाव रखने वाला चौटाला परिवार हाशियेे पर जा पहुंचा। श्रुति चौधरी का यह लगातार तीसरा चुनाव था। उन्हें 2 लाख 92 हजार 236 वोट मिले और वे भाजपा के धर्मबीर सिंह के हाथों 4 लाख 44 हजार 463 मतों के बड़े अंतर से चुनाव हारीं। इनेलो से अलग होकर बनी जननायक जनता पार्टी की स्वाति यादव को महज 84 हजार 956 वोट मिले। वहीं इनेलो प्रत्याशी बलवान सिंह का 8 हजार 65 मतों के साथ सबसे शर्मनाक प्रदर्शन रहा। 2008 के परिसीमन से पहले भिवानी और महेंद्रगढ़ अलग-अलग लोकसभा क्षेत्र थे। बाद में इन्हें मिला दिया गया। भिवानी में महेंद्रगढ़ जिले को शामिल करके नई सीट भिवानी-महेंद्रगढ़ बनाई गई। 2009 के चुनाव में कांग्रेस की श्रुति चौधरी इसलिए आसानी से चुनाव जीत गईं, क्याेंकि वे पूर्व सीएम चौ. बंसीलाल के परिवार हैं और पहला चुनाव लड़ रही थीं। इसके बाद के दोनों चुनावों में अहीरवाल बेल्ट यानी महेंद्रगढ़ जिले से श्रुति को रिस्पांस नहीं मिला। इसी को भांपते हुए कांग्रेस ने इस बार श्रुति का टिकट काटकर यादव कोटे से राव दान सिंह को चुनाव लड़वाने का फैसला लिया।

इसलिए मुकाबला हुआ दिलचस्प

भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा क्षेत्र में चुनावी मुकाबला कांटे का बनने के पीछे सबसे बड़ा कारण महेंद्रगढ़ जिला बना हुआ है। यादव बहुल इस जिले में इसी जाति के दान सिंह के उम्मीदवार बनने से भाजपा के इस वोट बैंक में सेंधमारी की संभावना बढ़ गई है। वहीं दस वर्षों की एंटी-इन्कमबेंसी भी एक बड़ा कारण है। बेशक, भाजपा के धर्मबीर सिंह जाट हैं, लेकिन गैर-जाट मतदाताओं में भी उनके प्रभाव को कम नहीं आंका जा सकता। धर्मबीर सिंह पर कभी जातपात की राजनीति करने के आरोप भी शायद, इसलिए नहीं लग सके।

साल 2004 में हुई थी सबसे बड़ी जंग

भिवानी लोकसभा सीट पर सबसे बड़ी और रोचक चुनावी जंग 2004 में हुई थी। इस चुनाव में तीनों लाल परिवारों के ‘युवराज’ एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़े थे। कांग्रेस टिकट पर भूतपूर्व सीएम चौ़ भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नाेई, हविपा टिकट पर बंसीलाल के पुत्र सुरेंद्र सिंह और इनेलो टिकट पर पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला के बेटे व चौ़ देवीलाल के पोते अजय चौटाला चुनाव लड़ रहे थे।

कुलदीप बिश्नोई ने सुरेंद्र सिंह और अजय चौटाला को चुनाव में पटकनी दी। 2009 में श्रुति ने जीत हासिल की। वहीं 2014 और 2019 में भाजपा के धर्मबीर सिंह जीत चुके हैं। इस बार वे हैट्रिक के लिए चुनावी मैदान में डटे हैं।

यह है भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट की दलीय स्थिति

भिवानी के गांव गोलागढ़ स्थित प्राथमिक पाठशाला और बाबा दरियानाथ धाम का लगा बोर्ड, नीचे गोलागढ़ का किला।

भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट के 9 विधानसभा हलकों में से पांच पर भाजपा का कब्जा है। लोहारू से विधायक जेपी दलाल प्रदेश सरकार में वित्त मंत्री हैं। सिंचाई मंत्री अभय सिंह यादव नांगल-चौधरी से विधायक हैं। भिवानी शहर से घनश्याम सर्राफ, अटेली से सीताराम और नारनौल से पूर्व मंत्री ओमप्रकाश यादव भाजपा विधायक हैं। कांग्रेस उम्मीदवार राव दान सिंह महेंद्रगढ़ से विधायक हैं। वहीं पूर्व मंत्री किरण चौधरी तोशाम से कांग्रेस विधायक हैं। बाढ़डा से जजपा की नैना चौटाला विधायक हैं और चरखी दादरी से सोमबीर सिंह निर्दलीय विधायक हैं। सोमबीर सिंह कांग्रेस को समर्थन दे चुके हैं। दादरी से विधायक रहे और पूर्व सहकारिता मंत्री सतपाल सांगवान भी इस बेल्ट के हेवीवेट नेता हैं। वे भी भाजपा ज्वाइन कर चुके हैं। धर्मबीर सिंह को उनके प्रभाव से उम्मीद है।

गोलागढ़ का इतिहास

तोशाम हलके का यह गांव भूतपूर्व सीएम चौ. बंसीलाल का गांव है। बंसीलाल चार बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। पहली बार वे 21 मई, 1968 में सीएम बने और 14 मार्च, 1972 तक सीएम रहे। लगातार दूसरी टर्म में उन्होंने मार्च-1972 से 30 नवंबर, 1975 तक प्रदेश की बागडोर संभाली। इसके बाद वे 5 जून, 1986 से 20 जून, 1987 तक मुख्यमंत्री रहे। कांग्रेस छोड़कर हरियाणा विकास पार्टी बनाने वाले बंसीलाल 11 मई, 1996 से 24 जुलाई, 1999 तक हविपा-भाजपा गठबंधन सरकार के सीएम रहे। 1975 में वे रक्षा मंत्री और 1985 में केंद्रीय रेल मंत्री भी रहे। उनके बड़े बेटे रणबीर सिंह महेंद्रा विधायक रह चुके हैं। वहीं छोटे बेटे और राजनीतिक उत्तराधिकारी रहे स्व. सुरेंद्र सिंह सांसद भी रहे और विधायक भी। वे दो बार प्रदेश के कृषि मंत्री बने। सुरेंद्र सिंह की पत्नी किरण चौधरी दिल्ली में भी विधायक रह चुकी हैं और हरियाणा में दो बार मंत्री रही हैं। वर्तमान में वे तोशाम से विधायक हैं। बंसीलाल की पोती श्रुति चौधरी भिवानी-महेंद्रगढ़ से सांसद रही हैं। गौरतलब है कि यहां पर लोहारू का किला स्थित है, जिसे 1803 में नवाब अहमद बख्श खान द्वारा बनवाया गया था। इसे शेखावटी मिट्टी के किले के स्थान पर बनवाया था। राजपूत, मुगल और ब्रिटिश वास्तुकला का इसमें मिश्रण है।

बंसीलाल परिवार भी चुनाव से बाहर

गौरतलब है कि पिछले चालीस से भी अधिक वर्षों में यह पहला मौका है जब पूर्व सीएम चौ.बंसीलाल का परिवार लोकसभा चुनाव से बाहर है। अभी तक या तो खुद बंसीलाल परिवार या फिर उनके नजदीकी चुनाव लड़ते रहे हैं। 1977 में खुद बंसीलाल ने भिवानी से चुनाव लड़ा था लेकिन वे जनता पार्टी की चंद्रावती के हाथों चुनाव हार गए। 1980 और 1984 में उन्होंने जीत हासिल की। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने संसदीय सीट से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि उनके भतीजे एडवोकेट दयानंद चुनाव नहीं जीत सके। 1991 में बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी से उनके करीबी जगबीर सिंह ने चुनाव जीता। 1996 में बंसीलाल के बेटे सुरेंद्र सिंह भिवानी से सांसद बने। 1998 में भी उन्होंने जीत हासिल की। 1999 में इनेलो-भाजपा गठबंधन में इनेलो के अजय चौटाला ने भिवानी से सुरेंद्र सिंह को शिकस्त दी।

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