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अंबाला की 4 में से एक कोस मीनार गायब, 2 ढहीं, 1 सीना तानकर बता रही अपना इतिहास

स्पेशल स्टोरी: मीनारों को भी नहीं बचा पा रहा पुरातत्व विभाग, कैसे बचेगी धरोहरें?
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अम्बाला शहर के गांव कांवला में पूरी तरह क्षतिग्रस्त कोस मीनार। -हप्र
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जितेंद्र अग्रवाल/ हप्र

अम्बाला शहर, 7 जुलाई

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जिले की मध्यकालीन मील स्तंभों यानी कोस मीनारों को पुरातत्व विभाग संभाल नहीं पा रहा है। अम्बाला में स्थित 4 कोस मीनारों में से 2 ढह चुकी हैं जबकि 1 क्षतिग्रस्त हो गई है।

शेष एक स्तंभ आज भी सीना तानकर अपने वजूद का अहसास करवा रहा है। कोस मीनार या मील पत्थर या आधुनिक भाषा के टॉवर, मध्ययुगीन मील के पत्थर माने जाते हैं। पुराने समय में कोस मीनार की मदद से लोग दूरी का अंदाजा लगाते थे। इन्हें 16वीं शताब्दी के अफगान शासक शेर शाह सूरी और बाद में मुगल सम्राटों द्वारा बनवाया गया था।

क्या कहते हैं इतिहासकार

इतिहासकार डॉ. चांद सिंह ने कोस मीनारों पर किए गए अपने शोधपत्र के माध्यम से बताया कि 21 गुना 21 फुट के प्लेटफॉर्म पर इन मीनारों को प्रत्येक एक कोस पर शेरशाह सूरी राजमार्ग पर बनाया गया था। जहां यात्री कुछ समय के लिए विश्राम हेतु रुका करते थे।

विरासत संरक्षक मंच के अध्यक्ष एवं पूर्व प्राचार्य डॉ. प्रदीप शर्मा स्नेही की माने हाल ही में विश्व विरासत दिवस के अवसर भी विरासत प्रेमियों ने लुप्त होती इन धरोहरों का आंकलन किया था। वह सभी इनकी वर्तमान अवस्था से काफी दुखी और स्तब्ध हैं। अम्बाला के विरासत प्रेमियों ने इन मीनारों को बचाने के लिए शीघ्र पुरातत्व विभाग को लिखकर इनके संरक्षण का मुद्दा मजबूती से उठाने का निर्णय लिया है।

दूरी नापने के लिये बनी थीं कोस मीनारें

कोस यानी मीनार यानी स्तंभ, दूरी नापने के लिए भारतीय माप ईकाई हैं। आजकल यह 2 मील यानी 3.22 किलोमीटर माना जाता है। इन्हें आगरा से अजमेर, आगरा से लाहौर और आगरा से दक्षिण मांडू तक शाही मार्गों पर बनवाया गया था। वास्तव में यही मीनारें कभी राहगीरों को आगरा से लाहौर तक ले जाती थीं। इतिहासकारों की माने तो वर्तमान में कुल 110 कोस मीनारें बची हुई हैं। भारतीय पुरातत्व विभाग के अनुसार हरियाणा राज्य में 49 कोस मीनार, जालंधर में 7 और लुधियाना में 5 कोस मीनार हैं। इनके अलावा कुछ कोस मीनारें लाहौर में भी देखने को मिलती हैं। इनमें से 4 जिला अम्बाला जिला में हैं जिनकी निशानियां आज भी देखी जा सकती हैं। लेकिन हम अपनी इन ऐतिहासिक विरासतों को भी बचा नहीं पा रहे हैं।

जर्जर हालत में हैं धरोहरें

अम्बाला में स्थित 4 कोस मीनारों में से एक रेलवे स्टेशन अम्बाला शहर के थोक कपड़ा मार्केट में स्थित है। इसे ही संरक्षण मिला हुआ है लेकिन इसके आसपास भी अवैध कब्जे किए जा चुके हैं। इससे एक कोस दूर पर गांव कांवला के पास दूसरी मीनार जमीं पर औंधे मुंह पड़ी है। यदि इसके रखरखाव के लिए तुरंत उचित कदम न उठाए गए तो संभवतया यह भी गायब हो जाएगी। अगली मीनार मछौंड़ा गांव के पास खेतों में मौजूद है। यह मीनार क्षतिग्रस्त होने के कारण कभी भी गिर सकती है। गांव कोटकछुआ में स्थापित की गई ऐसी 1 मीनार के वहां केवल अवशेष नजर आते हैं।

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