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हरियाणा के सरकारी स्कूलों में अब पढ़ाई का ‘स्वास्थ्य परीक्षण’

कमजोर बच्चों की होगी स्क्रीनिंग, सीखने की कठिनाइयों पर रहेगा फोकस
सांकेतिक फोटो
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हरियाणा सरकार अब शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा और संवेदनशील कदम उठाने जा रही है। पहली से पांचवीं कक्षा तक के उन बच्चों की पहचान की जाएगी, जो पढ़ाई में पिछड़ रहे हैं या जिनमें सीखने की कठिनाइयां हैं। उद्देश्य साफ है—किसी भी बच्चे को उसकी क्षमता या कमी के कारण पीछे न छोड़ना। 14 और 15 नवंबर को राज्यभर के सभी सरकारी स्कूलों में दो दिवसीय विशेष कार्यक्रम ‘सबका बाल दिवस – एक दिन बचपन के नाम’ के रूप में मनाया जाएगा, जिसमें बच्चों के साथ अभिभावक भी भाग लेंगे।

राज्य के मौलिक शिक्षा निदेशालय ने इस दिशा में आदेश जारी करते हुए सभी जिला मौलिक शिक्षा अधिकारियों और परियोजना समन्वयकों को निर्देश दिए हैं कि विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थियों की स्क्रीनिंग अनिवार्य रूप से की जाए।

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इन बच्चों में अक्सर पठन-पाठन की बुनियादी समझ विकसित करने में दिक्कत होती है—जैसे अक्षर पहचानना, वाक्य बनाना, गणितीय अवधारणाओं को समझना या ध्यान केंद्रित करना।

ऐसे में, उन्हें जल्दी पहचानना और आवश्यक सहयोग देना बेहद जरूरी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ऐसी पहचान प्रारंभिक कक्षाओं में हो जाए, तो इन विद्यार्थियों को आगे चलकर मुख्यधारा में लाना बहुत आसान हो जाता है।

14 और 15 नवंबर को होगी राज्यव्यापी स्क्रीनिंग

पूरे हरियाणा के सरकारी स्कूलों में 14 और 15 नवंबर को पठन-पाठन क्षमता जांच अभियान चलाया जाएगा। इसमें पहली से पांचवीं कक्षा तक के सभी विद्यार्थियों की स्क्रीनिंग की जाएगी। शिक्षक “निपुण हरियाणा टीचर एप” की मदद से हर बच्चे का मूल्यांकन करेंगे।

इस प्रक्रिया में स्कूल के विशेष शिक्षक, मेंटर्स तथा जिला और खंड स्तर के अधिकारी भी शामिल रहेंगे। लक्ष्य यह है कि किसी भी बच्चे की सीखने की दिक्कत अनदेखी न रह जाए और उसे तुरंत समुचित शैक्षणिक सहायता मिले।

‘सबका बाल दिवस’, खेल के साथ सीखने का नया तरीका

इस पहल को बच्चों के लिए रोचक बनाने के उद्देश्य से इसे बाल दिवस के अवसर पर “सबका बाल दिवस – एक दिन बचपन के नाम” के रूप में मनाया जाएगा। दोनों दिन सुबह 8:30 बजे से 11:30 बजे तक स्कूलों में विभिन्न समावेशी गतिविधियाँ कराई जाएंगी ताकि बच्चे खेल-खेल में सीखें और आपसी सहयोग की भावना विकसित करें। इन गतिविधियों में शामिल होंगे:

‘हौसलों के रंग’, ‘सपनों की उड़ान’, ‘भरोसे के कदम’, ‘बूझो तो जाने’, ‘इशारों-इशारों में’, ‘जब अक्षर न दिखें साफ’ और ‘सबके रंग, सबकी चमक’।

हर गतिविधि का मकसद बच्चों में आत्मविश्वास जगाना और यह एहसास दिलाना कि हर बच्चा अपनी गति से आगे बढ़ सकता है।

अभिभावक भी होंगे इस मिशन का हिस्सा

14 नवंबर को सुबह 11 बजे से अभिभावकों को भी इस कार्यक्रम में शामिल किया जाएगा। उन्हें यह बताया जाएगा कि बच्चों की सीखने की यात्रा में घर की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है।

अभिभावकों को प्रोत्साहित किया जाएगा कि वे बच्चों के साथ मिलकर सीखने के खेल खेलें, उनकी प्रगति पर ध्यान दें और उन्हें भावनात्मक सहयोग दें।

शिक्षकों की भूमिका – ‘पढ़ाओ नहीं, समझाओ’ की भावना

अक्सर पाठ्यक्रम पूरा करने की जल्दी में शिक्षक उन बच्चों को नजरअंदाज कर देते हैं जो सीखने की रफ्तार में पीछे रह जाते हैं। अब यह कार्यक्रम शिक्षकों के दृष्टिकोण में भी बदलाव लाएगा, जहाँ शिक्षा का लक्ष्य सिलेबस खत्म करना नहीं, बल्कि बच्चे को समझाना और सशक्त बनाना होगा। प्रत्येक शिक्षक को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह अपने स्कूल के कमजोर विद्यार्थियों की व्यक्तिगत सीखने की प्रोफ़ाइल बनाए और आगे के महीनों में सुधार पर नज़र रखे।

 

 

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