पुरुषोत्तम शर्मा/हप्र
सोनीपत, 8 फरवरी
राजधानी दिल्ली के चारों ओर घेरेबंदी को मजबूत करने के बाद किसान नेताओं ने अन्य राज्यों का रुख कर लिया है। किसान नेता दूसरे राज्यों में किसान संगठनों से बैठक कर वहां आंदोलन खड़ा करने की रणनीति तैयार कर रहे हैं, जिससे केंद्र सरकार और कृषि मंत्री को जवाब दिया जा सके कि यह एक राज्य का आंदोलन नहीं है।
किसान नेता अब पूर्वी उत्तर प्रदेश, हिमाचल, गुजरात, बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र के किसानों पर फोकस कर रहे हैं, जिससे बड़ी संख्या में आंदोलन के लिए किसान सड़क पर निकल कर आएं और मददगार बनें। अब तक संयुक्त किसान मोर्चा आंदोलन की ज्यादातर रणनीति कुंडली बॉर्डर पर रह कर बनाता था। वहीं, अब दिल्ली की सीमाओं कुंडली, गाजीपुर व टिकरी पर दोबारा से आंदोलन खड़ा करके किसान नेता मैदान में उतर गए हैं, क्योंकि हरियाणा, पंजाब व पश्चिमी यूपी में आंदोलन को मजबूती मिल गई है और अब वह उत्तर भारत के साथ-साथ अन्य राज्यों में आंदोलन को मजबूत करने में जुटे हैं। किसान नेताओं को लगता है कि पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आंदोलन पहले से ज्यादा मजबूत हो गया है, लेकिन अन्य राज्यों के किसान दोबारा आंदोलन से जोडक़र सरकार के खिलाफ माहौल तैयार किया जाए। यही वजह है कि किसान नेता अब मैदान में उतरकर किसानों के बीच पहुंच रहे हैं।
भाकियू नेता गुरनाम चढ़ूनी ने कहा कि पीएम ने कई दिन पहले बातचीत करने की बात कही थी, लेकिन हमारे पास सरकार की ओर से बातचीत का कोई प्रस्ताव नहीं आया। अगर सरकार को बातचीत करनी है तो हम दिल्ली की सीमा के पास हैं और सरकार प्रस्ताव भेजकर बुला सकती है। जिस तरह के हालात हैं, उससे लग रहा है कि सरकार ही बातचीत नहीं करना चाहती। उन्होंने कहा कि हम पहले भी कह चुके हैं और अब भी कह रहे हैं कि हमारी तरफ से बातचीत का रास्ता कभी बंद नहीं हुआ है। अब हम अलग-अलग राज्यों में लगातार किसानों के बीच जा रहे हैं और उनको कृषि कानूनों के नुकसान के बारे में बताकर आंदोलन में जोड़ा जा रहा है। इधर, संयुक्त मोर्चा के सदस्य अभिमन्यु कोहाड़ का कहना है कि सरकार को बातचीत करनी होती तो पीएम के बयान के बाद अभी तक प्रस्ताव भेजकर बातचीत कर चुकी होती। सरकार के लोगों का चेहरा सार्वजनिक तौर पर कुछ अलग होता है और इसके बाद चेहरा बदल जाता है।