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‘संस्थाओं के देश के विकास पर प्रभाव’ शोध पर मिला नोबेल

वानप्रस्थ संस्था परिसर में नोबेल पुरस्कार 2024 शृंखला पर व्याख्यान का आयोजन
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हिसार, 29 नवंबर (हप्र)।

इस वर्ष का अर्थशास्त्र नोबेल पुरस्कार डारोन ऐसमोग्लू, साइमन जॉनसन और जेम्स ए. रॉबिन्सन को संयुक्त रूप से इस बात के अध्ययन के लिए दिया गया कि संस्थाएं कैसे बनती हैं और समृद्धि को कैसे प्रभावित करती हैं।

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यह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आरके खटकड़ ने सीनियर सिटीजन क्लब में आयोजित नोबेल पुरस्कार शृंखला में अपने व्यक्तव्य में कहा। उन्होंने बताया कि यह पुरस्कार उनके ऐतिहासिक शोध देशों के बीच आय के भारी अंतर को समझना व मिटाने को चुनौती मानते हुए समझाने की कोशिश पर मिला है। इन तीन अर्थशास्त्रियों ने अपने शोध द्वारा यह बताने का प्रयास किया है कि क्यों कोई देश अपने विकास में सफल व असफल होता है। इन अर्थशास्त्रियों का शोध प्रजातंत्र को मज़बूत बनाने पर बल देता है।

उनका मानना है कि जिन देशों ने अपने संस्थाओं का प्रजातांत्रिक तरीके से विकास व संचालन किया, उनका विकास टिकाऊ व प्रभावी रहा है। इसका उदाहरण देते उन्होंने बताया कि जैसे मैक्सिको कभी अमेरिका व कनाडा के मुकाबले बहुत ही विकसित देश था परंतु आज के दिन अमेरिका व कनाडा उससे बहुत विकसित देश बन गए हैं क्योंकि उन्होंने अपने देशों में संस्थाओं का प्रजातांत्रिक तरीक़े से विकास किया व बुनियादी अनुसंधान तथा प्रायोगिक एवं तकनीकी शोध का समन्वय रखते हुए शोध पर निवेश किया। पूरी दुनिया में औपनिवेशिक शासन का अध्ययन करने के बाद पाया कि उपनिवशकों ने उपनिवेशों का दो तरह से दोहन किया। जहां आबादी कम थी वहां कालोनियां बसाई गई (जैसे की यूरोपीय व अमेरिका जैसे देश) तथा संस्थाओं को अधिक समावेशी बनाया गया। लेकिन जहां आबादी ज्यादा थी (एशियन व अन्य कम विकसित देश) वहां के संसाधनों व निवासियों का शोषण किया गया। जैसे कि अंग्रेजों ने भारत व अन्य अविकसित देशों के संसाधनों का दोहन कर अपनी कालोनियों (देशों) को विकसित व पोषण किया। अगर उनके शोध के आधार पर भारत की आर्थिक व भौतिक स्थिति का मूल्यांकन करें तो पाएंगे कि तेहरवीं शताब्दी तक भारत एक विकसित देश था। अठारहवीं व उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक दुनिया की कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का क्रमश: 32 व 26 प्रतिशत तक भारत देता था। लेकिन अब यह घटकर 2.3 प्रतिशत ही रह गया है। कुछ अर्थशास्त्रियों ने इस आधार को कमजोर भी माना है।

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