जेल की दीवारों के भीतर जागी नयी उम्मीद
इस अभियान के तहत विश्वविद्यालय के मूल्यांकन एवं प्रमाणन विभाग ने जेलों में जाकर बंदियों की स्किल परीक्षा ली और उन्हें प्रमाणपत्र प्रदान किए। यह प्रमाणपत्र केवल एक दस्तावेज नहीं, बल्कि उन बंदियों के लिए ‘नयी शुरुआत’ का भरोसा है, जो अपना बीता समय पीछे छोड़कर आगे बढ़ना चाहते हैं।
विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. दिनेश कुमार कहते हैं कि कौशल इंसान को नयी रोशनी दिखाता है। यह किसी को भी फिर से खड़ा होने की ताकत दे सकता है। हमें खुशी है कि विश्वविद्यालय इस परिवर्तनकारी पहल का हिस्सा बना।
17 जेलों में चला सबसे बड़ा स्किल अभियान
कौशल विकास विभाग ने बंदियों की रुचि और योग्यता के अनुसार आठ जॉब रोल चुने और सितंबर-अक्तूबर में विश्वविद्यालय की टीमों ने सभी 17 जेलों में जाकर मूल्यांकन किया। सबसे ज्यादा 163 बंदियों ने असिस्टेंट इलेक्ट्रीशियन, 152 ने कारपेंटरी की परीक्षा पास की। 84 बंदियों ने वेल्डिंग एंड फेब्रिकेशन, 67 ने डाटा एंट्री ऑपरेटर, 65 ने प्लम्बरिंग, 56 ने असिस्टेंट ब्यूटी थेरेपिस्ट और 58 ने टेलरिंग में कौशल परीक्षा उत्तीर्ण की। इन सभी को श्रीविश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय की ओर से आधिकारिक प्रमाणपत्र दिए गए, जो जेल से बाहर निकलते ही उनके लिए रोजगार का आधार बनेंगे।
कौशल के साथ नैतिक शिक्षा, बदलाव की पूरी प्रक्रिया
संयुक्त निदेशक (मूल्यांकन एवं प्रमाणन) शिखा गुप्ता बताती हैं कि यह सिर्फ स्किल ट्रेनिंग का कार्यक्रम नहीं था। उन्होंने कहा कि हमने हर जेल में जाकर बंदियों की काउंसलिंग की। उन्हें समझाया कि कौशल तभी प्रभावी है जब सोच में भी बदलाव आए। इसलिए उन्हें नैतिक शिक्षा के विभिन्न पहलुओं से भी परिचित करवाया गया।
रिहाई के बाद नई शुरुआत का मजबूत आधार
इस पहल का सबसे बड़ा परिणाम यह है कि अब ये 680 बंदी इलेक्ट्रिकल वर्क, कारपेंटरी, सिलाई, वेल्डिंग, ब्यूटी सर्विसेज, डाटा एंट्री और प्लम्बिंग जैसे कार्य कर सकते हैं। वे चाहे नौकरी करें या छोटा व्यवसाय शुरू करें, दोनों ही स्थितियों में उनके पास एक ‘हुनर’ है जो उन्हें आत्मनिर्भर बनाता है। शिखा गुप्ता के शब्दों में, ‘ये प्रमाणपत्र इन बंदियों के लिए सिर्फ एक कागज़ नहीं, बल्कि जीवन में दूसरा मौका है। मौका है खुद को साबित करने का, परिवार का भरोसा फिर जीतने का और समाज में सम्मान से जीने का।’
