गुरुग्राम और हिसार में भी स्थापित होंगी प्राकृतिक तथा जैविक मंडियां
प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सीएम ने की कई घोषणाएं
कुमार मुकेश/हप्र
हिसार, 5 जून
हरियाणा में प्राकृतिक खेती को व्यापक स्तर पर बढ़ावा देने और किसानों को प्राकृतिक खेती के प्रति जागरूक करने के लिए मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने घोषणा करते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती तथा जैविक खेती से उत्पादित फल, सब्जियों के लिए हिसार में भी प्राकृतिक खेती तथा जैविक मंडी की स्थापना की जाएगी। साथ ही, प्राकृतिक तथा जैविक खेती से गेहूं, धान, दालों आदि उत्पादों के लिए प्राकृतिक तथा जैविक मंडी की स्थापना गुरुग्राम में की जाएगी। इसके अलावा, प्राकृतिक तथा जैविक खेती के उपज के उचित मूल्य निर्धारण के लिए हरियाणा किसान कल्याण प्राधिकरण के तहत समिति का गठन होगा।
मुख्यमंत्री बृहस्पतिवार को चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आयोजित प्राकृतिक खेती सम्मेलन को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने घोषणा करते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती से प्राप्त उत्पादों की ब्रांडिंग और पैकेजिंग के लिए प्रति किसान 20 हजार रुपये प्रदान किए जाएंगे। प्राकृतिक और जैविक खेती की उपज की जांच हेतु प्रयोगशालाएं भी स्थापित की जाएंगी। ये प्रयोगशालाएं किसानों की फसल की निशुल्क जांच करेंगी। उन्होंने यह भी घोषणा की कि खंड पूंडरी, जिला कैथल में कृषि विभाग की 53 एकड़ भूमि प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को नीलामी के आधार पर पट्टे पर दी जाएगी।
प्रत्येक पंचायत में पंचायती भूमि में से 10 प्रतिशत भूमि या कम से कम एक एकड़ भूमि प्राकृतिक खेती के लिए आरक्षित की जाएगी। यह भूमि केवल भूमिहीन किसानों को नीलामी के माध्यम से दी जाएगी। उन्होंने कहा कि सरकारी और पंचायती जमीन पर जो भी किसान प्राकृतिक खेती करेगा, उन किसानों को भी प्राकृतिक खेती योजना के तहत वित्तीय प्रोत्साहन के रूप में कच्चे माल के भंडारण और संस्करण के लिये चार ड्रम की खरीद के लिए 3 हजार रुपये प्रति किसान दिया जाएगा। इस अवसर पर कैबिनेट मंत्री रणबीर गंगवा, विधायक सावित्री जिंदल, विनोद भ्याना, रणधीर पनिहार, पूर्व मंत्री डॉ. कमल गुप्ता सहित बड़ी संख्या में किसान, कृषि वैज्ञानिक व अन्य उपस्थित रहे।
प्राकृतिक खेती समय की मांग
कार्यक्रम में गुजरात के राज्यपाल एवं प्राकृतिक खेती के प्रबल समर्थक आचार्य देवव्रत ने कहा कि देश को टिकाऊ कृषि की ओर अग्रसर करने के लिए प्राकृतिक खेती को अपनाना अब समय की मांग बन चुकी है। उन्होंने रासायनिक खेती के दुष्परिणामों का जिक्र करते हुए कहा कि अत्यधिक रासायनिक खाद और कीटनाशकों के प्रयोग से न केवल मिट्टी की उर्वरता नष्ट हो रही है, बल्कि इसके कारण स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ रहा है जिससे कैंसर, शुगर और हार्ट अटैक जैसी बीमारियों की संख्या भी बढ़ रही है। उन्होंने स्वयं प्राकृतिक खेती को अपनाने के कई प्रयास किए और इसके परिणाम अत्यंत सकारात्मक रहे। प्राकृतिक खेती न केवल स्वास्थ्यवर्धक फसल उत्पादन का माध्यम है, बल्कि यह मृदा की उर्वरता को बनाए रखती है, जल संरक्षण में सहायक होती है और उत्पादन की लागत को भी काफी हद तक कम कर देती है। उन्होंने कहा कि इससे न केवल किसानों की आय में वृद्धि होती है, बल्कि उपभोक्ताओं को भी सुरक्षित और पोषणयुक्त भोजन मिलता है।