अरविंद शर्मा/निस
जगाधरी, 1 अगस्त
आजकल गायों में रहस्यमय बीमारी फैली हुई है। इसमें गायों के शरीर में चकते बनकर फूट रहे हैं। बीमारी ने पशुपालकों की नींद उड़ाई हुई है।
परेशान पशुपालकों ने प्रशासन से मदद की गुहार लगाई है। पशुपालन विभाग के अधिकारी इसे वायरल संक्रमण रोग बताते हुए एहतियात बरतने की सलाह दे रहे हैं।
पशुपालक एवं किसान संघ के पदाधिकारी रामबीर सिंह चौहान, शिव कुमार, बनी सिंह, नंदन मुरारी, सतपाल सिंह, प्रदीप सिंह, कूड़ाराम, सुखबीर सिंह आदि ने बताया कि ज्यादातर गायें इस रोग की चपेट में आई हुई हैं। पिछले 10 दिनों के अंदर यह ज्यादा फैला है।
रामबीर सिंह चौहान का कहना है कि इसकी चपेट में अमेरिकन नस्ल की गायें ज्यादा हैं। उनका कहना है कि गायों के शरीर पर चकते पड़कर ये फुंसी का रूप ले रहे हैं। बड़े फफोले भी बन रहे हैं। ये फूट कर जख्म बन रहे हैं। पशुपालकों का कहना है कि इससे पशुओं की खुराक कम हो गई हैं।
कमजोरी तेजी से गायों को चपेट में ले रही है। उनका कहना है कि दुधारू गायें ज्यादा इस रोग की चपेट में हैं। बीमारी के साथ गायों को तेज बुखार भी हो रहा है।
यह बोले पशु चिकित्सक
पशुपालन विभाग के पूर्व चिकित्सक डा. संत भारद्वाज का कहना है कि यह वायरस इन्फेक्शन विषाणु है। इसमें गाय को 104 से 105 तक बुखार होता है। इसके साथ एलर्जी शुरू होती है। उनका कहना है कि पहले भी यह बहुत कम होती थी, लेकिन इस बार बहुत ज्यादा गायें इससे ग्रस्त हैं। उनका कहना है कि इससे ग्रस्त गाय के जख्म पर बैठी मक्खी यदि दूसरी गाय पर बैठ जाए तो उसके भी बीमार होने का खतरा रहता है। डा. संत का कहना है कि बीमार गाय को एंटीबाइटिक टीके लगवाएं, एलर्जी को खत्म करने के लिए एविल दवाई दी जाती है। जख्म सुखाने के लिए भी दवाई जाती है। इसमें सबसे ज्यादा ध्यान बुखार उतारने पर रहता है। डा. संत का कहना है कि हो सके तो बीमार गाय को दूसरी गायों से अलग रखें। इनकों सही खुराक दें। 10 से 15 दिन के अंदर रिकवरी होती है। उनका कहना है कि समय पर सही इलाज ने मिलने पर पशु की जान जाने का खतरा भी बढ़ जाता है।
एडवाइजरी की गई है जारी : उपनिदेशक
पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डा. प्रेम सिंह का कहना है कि यह लंपी स्किन रोग है। इसे लेकर विभाग ने एडवाइजरी जारी की हुई है। उनका कहना है कि इस बीमारी से मृत्यु दर बहुत कम है। डा. प्रेम सिंह ने पशुपालकों से बीमार पशुओं (गायों) का ध्यान रखने की सलाह दी है। उनका कहना है कि रोग के लक्षण दिखते ही पशु चिकित्सक से संपर्क कर इलाज शुरू कराएं।