सिर्फ बातचीत की कोशिश से नहीं बनता ‘लज्जा भंग’ का केस : हाईकोर्ट
यह मामला रोहतक पीजीआई की लाइब्रेरी से जुड़ा है। शिकायतकर्ता महिला डॉक्टर के अनुसार, आरोपी उसके पास बैठा और ‘हेय’ कहकर बातचीत शुरू करने की कोशिश की। जब उसने बार-बार कहा कि वह बात नहीं करना चाहती, तो आरोपी तुरंत वहां से चला गया। महिला ने अपने बयान में स्वीकार किया कि न तो कोई जोर-जबरदस्ती हुई और न ही किसी प्रकार का बल प्रयोग।
जस्टिस कीर्ति सिंह की एकल पीठ ने कहा कि घटना शिकायतकर्ता को असहज या परेशान करने वाली जरूर हो सकती है, लेकिन इसे ‘लज्जा भंग’ नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सिर्फ बातचीत की कोशिश से यह साबित नहीं होता कि महिला की शालीनता या गरिमा को गंभीर आघात पहुंचा है। अभियोजन रिकॉर्ड में भी कहीं यह उल्लेख नहीं था कि आरोपी ने आपराधिक बल का इस्तेमाल किया।
सुप्रीम कोर्ट का हवाला और निर्णय
याचिकाकर्ता की ओर से यह भी दलील दी गई कि इस तरह की परिस्थितियों में मुकदमे की कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि धारा 354 तभी लागू हो सकती है जब आरोपी ने महिला के खिलाफ बल प्रयोग किया हो और उसकी मर्यादा भंग करने का इरादा हो। सभी तथ्यों और गवाही पर गौर करने के बाद हाईकोर्ट ने रोहतक पीजीआई पुलिस थाने में दर्ज केस को रद्द कर दिया। साथ ही चार्ज फ्रेमिंग आदेश और आगे की सभी कार्यवाहियां भी समाप्त कर दीं।