दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
लुदेसर (ऐलनाबाद), 22 अक्तूबर
ऐलनाबाद उपचुनाव को लेकर चल रहे प्रचार के बीच राजनीतिक दलों में आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। इस हलके के उपचुनाव से पूरे प्रदेश की राजनीति गरमाई हुई है। इसकी तपिश ऐलनाबाद के लुदेसर गांव तक भी पहुंची है। भारत-चीन तथा भारत-पाकिस्तान के युद्ध में ही नहीं बल्कि आजादी की लड़ाई में भी दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाला लुदेसर गांव अब अपनों में ही ‘फंसा’ नजर आ रहा है।
इस गांव ने एक समय ऐसा भी देखा है, जब गांव के हर घर में फौजी थे। समय के पहिये के साथ सैनिकों की संख्या कम होती चली गई। सैनिकों का गढ़ कहे जाने वाले इस गांव के युवाओं में आज भी अपने पूर्वजों जैसा ही जोश और देश सेवा का जज्बा है, लेकिन मौके कम हो गए हैं। सेना में खुली भर्ती कम होने की वजह से युवाओं को कम मौका मिल रहा है। प्रदेश का शायद, यह पहला ऐसा गांव है, जिसमें अंग्रेजों द्वारा स्थापित किया गया ‘शहीद स्मारक’ मौजूद है।
इतना ही नहीं, इस स्मारक पर अंग्रेज अफसर आया भी करते थे। कुछ समय तक आर्मी और नौसेना के वरिष्ठ अधिकारी भी 15 अगस्त और 26 जनवरी को यहां होने वाले कार्यक्रम में शामिल होते रहे हैं। इस गांव में कई स्वतंत्रता सेनानी भी रहे हैं। यहां के पांच लोग तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में भी रहे। देश के लिए शहादत देने में सदैव आगे रहे यहां के सैनिकों के बूते ही इस गांव की पूरे एरिया में सबसे अलग पहचान है।
गांव के 150 से अधिक बेटे शहादत दे चुके हैं। सिरसा से 25 और राजस्थान के हनुमानगढ़ से महज 17 किलोमीटर दूर बसे इस गांव में बने शहीद स्मारक का निर्माण अंग्रेजों द्वारा करवाया गया। प्रथम विश्व युद्ध में अपने सैनिकों के योगदान को पुरस्कृत करते हुए तत्कालीन ब्रिटिश भारतीय सेना ने उनके बलिदान की स्मृति में गांव के बीच में यह स्मारक बनवाया। स्मारक पर लगाए पत्थर पर खुदाई करके लिखा गया है कि 1914-1919 की ‘दी ग्रेट वार’ में गांव के 41 सैनिकों ने भाग लिया। इस लड़ाई में दो जवान शहीद हुए।
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद बनाए गए इस स्मारक पर हिंदी में एक शिलालेख है। इस पर लिखा गया है कि द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) में गांव के 101 पुरुषों ने भाग लिया था। इनमें से 11 शहीद हो गए थे। अधिकांश ग्रामीण कृषि से जुड़े हैं और युवा सेना में भर्ती होना चाहते हैं। गांव के बुजुर्गों ने अफसोस जताया कि खुली भर्ती नहीं होने की वजह से गांव के सेवारत पुरुषों की संख्या में भारी गिरावट आई है।
चुनावी रंग में रंगा पूरा गांव
ऐलनाबाद के बाकी गांवों की तरह, लुदेसर भी चुनावी रंग में रंगा है। गांव के लोग बड़ी दुविधा में भी फंसे हैं। इनेलो प्रत्याशी अभय चौटाला के समर्थकों की यहां कमी नहीं है। कांग्रेस प्रत्याशी पवन सिंह बैनीवाल की भी गांव में पैठ मानी जाती है। भाजपा-जजपा प्रत्याशी गोविंद कांडा भी यहां से वोट हासिल करेंगे लेकिन मतदाताओं के सामने दुविधा यह है कि उनके ही गांव के दो युवा भी चुनावी रण में डटे हैं। चरण सिंह नामक युवा ‘राइट-टू-रिकॉल’ पार्टी के प्रत्याशी हैं। वहीं भरत सिंह गाट निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं। भरत सिंह ने 2019 के आमचुनाव में भी ऐलनाबाद से चुनाव लड़ा था।
भाईचारे की मिसाल कायम
गांव के लोगों में आपसी भाईचार भी गजब का है। पंचायत के चुनावों में ग्रामीणों की कोशिश सर्वसम्मति से ही चयन करने की रहती है। 10 वार्डों वाली पंचायत में पिछली बार गांव की सरपंच से लेकर सभी पंचों का चयन सर्वसम्मति से हुआ। गांव के लोगों ने मिलकर पढ़ी-लिखी योगेश कुमारी को गांव की सरपंच चुना। उनके साथ पंचों की टीम का भी फैसला गांव के लोगों ने पंचायत करके किया। ऐसे में गांव में चुनाव की नौबत ही नहीं आई।
आजादी की जंग में भी रही भागीदारी
आजादी के बाद हुए युद्धों में भी यहां के सैनिकों की भागीदारी रही। 42 सैनिकों ने 1962 के भारत-चीन युद्ध में भाग लिया था। वहीं 1965 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में गांव के 36 लोगों ने भाग लिया था। इसमें नायब रिसालदार विजय सिंह शहीए हुए। नेताजी बोस की इंडियन नेशनल आर्मी में बाला राम, मामन राम, बद्री राम, तुलसी राम व राम कृष्ण शामिल थे। ग्राम पंचायत ने स्वतंत्रता सेनानी स्व़ बालाराम की याद में यहां प्रतीकात्मक टैंक (पैटन टैंक) स्थापित करने की मांग की। यह मांग रक्षा मंत्रालय तक पहुंचा, लेकिन तकनीकी कारणों के चलते इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया गया। वर्तमान में भी गांव के लोगों की यही मांग है। गांव के जगतपाल जाखड़ व योगेंद्र गाट का कहना है कि गांव के लोगों में इस बात को लेकर नाराजगी है कि देश के लिए बलिदान देने वालों की याद में एक टैंक स्थापित करने की मांग भी सरकार ने पूरी नहीं की। अगर सरकार यहां टैंक स्थापित करती तो इससे गांव के युवाओं में सेना में भर्ती होने के प्रति रुझान और भी बढ़ता।