सुनो नहरों की पुकार...हमें बचा लो, आस्था के नाम पर न करो दूषित
विवेक शर्मा/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 28 जून
वो बहती हैं... चुपचाप। लेकिन अब वो कुछ कह रही हैं कि ‘हमें आस्था के नाम पर कचरे से मत ढको। हमने कभी खेतों को प्यासा नहीं छोड़ा, तुम हमें क्यों गंदा छोड़ जाते हो? हमने कभी किसी किसान को निराश नहीं किया, फिर तुम हमें क्यों गंदगी में डुबो देते हो?’ रोहतक की जेएनएल और बीएसबी नहरों के किनारे कुछ लोग हर रोज खड़े दिखाई देते हैं। हाथ में बैनर, चेहरे पर दृढ़ संकल्प। कोई मंच नहीं, कोई माइक नहीं... लेकिन संदेश साफ-ये नहर है, नाली नहीं।
शुक्रवार शाम ‘सुनो नहरों की पुकार’ के संरक्षक डॉ. जसमेर सिंह के नेतृत्व में पर्यावरण जागरूकता के लिए एक साइकिल यात्रा रोहतक से चंडीगढ़ रवाना हुई। शनिवार सुबह करीब साढ़े 5 बजे यह दल 225 किलोमीटर की दूरी तय कर सुखना लेक पहुंचा। यह यात्रा उद्योगपति और सामाजिक कार्यकर्ता राजेश जैन के जन्मदिन पर समर्पित की गई, जिन्होंने अपने दिन को प्रकृति को अर्पित करने की प्रेरणा दी। इस आंदोलन के प्रमुख चेहरे हैं जाट कॉलेज रोहतक के सहायक प्रोफेसर डॉ. जसमेर सिंह, जो मानते हैं ‘पानी को बचाना सिर्फ काम नहीं, इबादत है।’ उनके साथ हैं ऐसे साथी, जो तन-मन से इस मुहिम में लगे हैं स्वास्थ्यकर्मी और साइकिलिस्ट मुकेश नैनकवाल, सेवानिवृत्त चीफ ड्राफ्ट्समैन ईश्वर सिंह, बिजली विभाग से रिटायर्ड जेई एवं एथलीट रणबीर सिंह और छात्र अजय सिंह हुड्डा। पिछले तीन सालों से बिना किसी फंडिंग के, इनका काम सिर्फ कर्म और करुणा पर टिका है। शुरू में ताने भी मिले-’कोई और काम नहीं?’ लेकिन अब वही लोग कहते हैं कि आप सही कर रहे हो। इस तरह यह कांरवां धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
समाधान हैं, सिर्फ नीयत चाहिए
हर साल नवरात्र, गणेश चतुर्थी, दशहरा जैसे पर्वों के बाद नहरें आस्था के बोझ तले दब जाती हैं। मूर्तियां, फूल, सिंदूर, चुनरी, प्लास्टिक थैलियां और न जाने क्या-क्या इनमें बहा दिया जाता है। लोग मानते हैं कि श्रद्धा पूरी हुई, लेकिन जल कराहता है। डॉ. जसमेर कहते हैं कि श्रद्धा तब तक पवित्र है, जब तक वह पानी को अपवित्र न करे। अब तक नहरों से 100 से ज्यादा धार्मिक ग्रंथ निकाले जा चुके हैं। इनमें श्रीमद्भागवत गीता भी शमिल है। साथ ही 5 से 6 आत्महत्या की कोशिशों को भी रोका गया है। ईश्वर सिंह कहते हैं कि हमने अपने पोतों को भी इस मुहिम से जोड़ा है। नहर के किनारे खड़े होकर जो सुकून मिलता है, वो किसी पूजा से कम नहीं।
व्यवहारिक रास्ते भी दिखाए
पूजा सामग्री को घर में गड्ढे में डालकर खाद बनाई जा सकती है।
प्लास्टर की मूर्तियों को पीसकर धार्मिक स्थलों के लिये ‘ईंटें’ बनाई जा रही हैं।
विसर्जन के लिए जींद के गातोली धाम जैसे स्थलों का उपयोग हो सकता है।
कॉलेजों में नुक्कड़ नाटक कर युवाओं को जोड़ा जा रहा है।
प्रशासन साथ पर नियमों का पालन अब भी अधूरा
डॉ. जसमेर के प्रयासों पर डीसी रोहतक ने विसर्जन स्थल निर्धारित किए हैं। सिंचाई विभाग के एक्सईएन रामनिवास भी सहयोग कर रहे हैं। पर हकीकत यह है कि रोहतक के 10 पुलों से अब भी खुले में पूजा सामग्री बहाई जाती है। टीम की मांग है कि यमुना की तरह नहरों के पुलों पर ग्रिल लगाई जाए। दिल्ली बाइपास नहर के आसपास रोज 1200 से 1500 बंदर पानी पीते हैं। गंदे पानी से उनमें खुजली और संक्रमण फैल रहा है। उन्होंने बताया कि अभियान को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने के लिये सीएम नायब सैनी और शिक्षा मंत्री महिपाल ढांडा को पत्र लिखेंगे।