हरियाणा की संस्कृति को मंच के माध्यम से प्रचारित और प्रसारित करने वाले दरियाव सिंह मलिक के बुधवार को हुए निधन से हरियाणा के कला जगत में शोक की लहर दौड़ गयी। हंसते-हंसते हंसी का सैलाब छोड़ गये दरियाव जी एक विरासत के रूप में। दैनिक ट्रिब्यून डॉ. महासिंह पूनिया की कलम के माध्यम से उस महान कलाकार को शब्दांजलि अर्पित कर रहा है।
– संपादक
हरियाणा के जाने-माने हास्य कलाकार, दरियाव सिंह मलिक ने अपनी पूरी जिंदगी मंच से लोगों को हंसते-हंसाते हुए काट दी। उन्होंने सबको बता दिया कि जिंदगी का सफर हंसते-हंसते भी जिया जा सकता है…? दरियाव सिंह मलिक 85 साल की उम्र में हम सबको सदा-सदा के लिए अलविदा कह गए। उन्होंने अपने जीवन में हरियाणवी फिल्म, नाटक एवं मंच के माध्यम से एक ऐसी छाप छोड़ी कि वे लोकजीवन में हास्य का पर्याय बन गए। अपने जीवन में उन्होंने हरियाणवी संस्कृति के लोक रंगों को मंच से आत्मसात कर इतने सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया कि जब भी उनको मंच पर बुलाने के लिए आवाज दी जाती, दर्शकों की तालियां उनके प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति करती थीं।
वास्तव में दरियाव सिंह मलिक ने अपने जीवन के मूल मंत्र ‘हंसते-हंसते कट जाए रस्ते जिंदगी यूं ही चलती रहे’ को आत्मसात् कर पूरा जीवन इसी भाव को समर्पित कर दिया। पिछले 30 वर्षों में उनको अनेक बार मंच पर बुलाने का मौका मिला, उनसे रूबरू होने का मौका मिला, उनके चुटकुले, लोरियां सुनने का मौका मिला, उनके गीत एवं रागिनी सुनने का मौका भी मिला।
हरियाणवी लहजे के धनी दरियाव सिंह मलिक सदैव कहा करते थे कि ‘जाट का और आर्ट का कभी मेल नहीं हो सकता’, किंतु उन्होंने अपने जीवन में इस मिथ को तोड़कर यह सिद्ध कर दिखाया की आर्ट व कला समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है, उसका जाति विशेष से कोई सरोकार नहीं है। जब भी दरियाव सिंह मलिक को उनकी उम्र के बारे में पूछते थे तो सदैव कहा करते थे …आदमी और घोड़ा कभी बूढ़े नहीं होते बशर्ते उनको खुराक बराबर मिलती रहे। दरियाव सिंह मलिक का जन्म पानीपत जिला के उगरा खेड़ी गांव में हुआ। सन् 1965 में उन्होंने हरियाणा के लोक संपर्क (तत्कालीन पंजाब) विभाग में नौकरी की शुरुआत की। वास्तव में दरियाव सिंह मलिक जन्मजात प्रतिभा से संपन्न थे। उन्होंने लोक संपर्क विभाग में रहते हुए 11वां बच्चा, ज़हर की घूंट, भाईचारा, बंटवारा आदि नाटकों के माध्यम से गांवों में जा-जाकर सामाजिक बुराइयों के खिलाफ सरकार की मुहिम में हिस्सेदार बन महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
दरियाव सिंह मलिक हरियाणवी संस्कृति के पुरोधा देवीशंकर प्रभाकर के संपर्क में आए, और ‘चंद्रावल’ फिल्म में अभिनय किया। हास्य अभिनेता के रूप में दरियाव सिंह मलिक एवं नसीब सिंह कुंडू रूंडा एवं खुंडा के नाम से खूब लोकप्रिय हुए। उन्होंने 15 साल तक आॅल इंडिया रेडियो पर गायक के रूप में भूमिका निभाई। वहीं उन्होंने लाडो बसंती, फूल बदन, बैरी, जर जोरू और जमीन, छोरी सपेले की, नयी रोशनी, मेरे डैडी की मारुति आदि फिल्मों के माध्यम से अपने अभिनय का खूब लोहा मनवाया। दरियाव सिंह मलिक सन् 1995 में लोक संपर्क विभाग से सेवानिवृत्त हुए। सन् 1986 में उनको हरियाणा के हास्य अभिनेता के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सन् 2004 में उनको हरियाणा गौरव अवार्ड प्राप्त हुआ। सन् 2006 में उनको तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने राष्ट्रीय संगीत अकादमी के नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया। दरियाव सिंह मलिक आज हमारे बीच में नहीं रहे, किंतु अपनी अभिनय की दुनिया से वह जीवन को हंसते-हंसते कैसे जीना है का मूल मंत्र देकर चले गए।
उन्होंने अपने जीवन में फिल्मों एवं मंच के माध्यम से हरियाणवी हास्य को जिस तरीके से प्रस्तुत किया, वह अद्भुत है, अनूठा है, निराला है।
– अनूप लाठर, पूर्व निदेशक सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
हरियाणवी फिल्मों में उन्होंने जो कमाल किया उसका कोई सानी नहीं है। ‘चंद्रावल’ के माध्यम से रूंडा एवं खुंडा का जो चरित्र प्रस्तुत किया गया है, उसका श्रेय दरियाव सिंह मलिक हो जाता है।
– यशपाल शर्मा, कलाकार मुंबई से
दरियाव सिंह मलिक का हरियाणा की संस्कृति को जो योगदान है उसको किसी भी सूरत में भुलाया नहीं जा सकता।
– प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा कुलपति, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र