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सिरसा लोकसभा सीट पर हो रही कुमारी सैलजा की ‘विरासत’ और मोदी के ‘करिश्मे’ की परीक्षा!

ग्राउंड रिपोर्ट डेरों की धरती पर अनुयायियों के वोट बैंक बनेंगे निर्णायक

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दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू

सिरसा, 17 मई

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डेरों की धरती और पंजाब व राजस्थान की सीमाओं से सटी सिरसा लोकसभा सीट पर विरासत और सियासत के बीच कांटे की टक्कर है। इस चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा की ‘विरासत’ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘करिश्मे’ की भी परीक्षा होगी। सैलजा प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। वहीं भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ रहे डॉ़ अशोक तंवर भी कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं। आम आदमी पार्टी से उन्होंने भाजपा में एंट्री की है।

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भाजपा ने यहां की मौजूदा सांसद सुनीता दुग्गल का टिकट काटकर अशोक तंवर पर भरोसा जताया है। चुनाव के शुरुआती दौर में तंवर पूरी तरह से ‘भंवर’ में फंस गए थे। उन्हें भाजपा कैडर का ही सहयोग नहीं मिल रहा था। सीएम नायब सिंह सैनी और पूर्व सीएम मनोहर लाल ने जब यहां मोर्चाबंदी की तो संगठन एक्टिव हुआ और भाजपाइयों ने चुनाव की कमान अपने हाथों में ली। सूत्रों का कहना है कि अब संघ (आरएसएस) भी पूरी तरह से एक्टिव हो चुका है।

सिरसा के चौटाला गांव में शुक्रवार को दोपहर के समय चुनावी गपशप में व्यस्त ग्रामीण।

संघ का काम करने का अपना तरीका है। संघ ग्राउंड पर काम करता है और वोटरों को घर से निकाल कर मतदान केंद्र तक पहुंचाने में उसकी अहम भूमिका मानी जाती है। सिरसा सीट पर अब कुमारी सैलजा और अशोक तंवर के बीच कांटे की टक्कर बनी हुई है। केंद्र की मोदी सरकार की नीतियों के अलावा हरियाणा में मनोहर सरकार के समय में लिए गए फैसलों व नीतियों को भी लोगों तक पहुंचाया जा रहा है। भाजपा नौकरियों को सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बना रही है। गांवों में भी नौकरियों का मामला चर्चाओं में बना हुआ है। वहीं हेवीवेट कुमारी सैलजा का सिरसा सीट पर अपना प्रभाव है। यह लोकसभा क्षेत्र उनके लिए अपने घर जैसा है, ऐसा इसलिए क्योंकि उनके स्व़ पिता चौ़ दलबीर सिंह चार बार सिरसा से लोकसभा सांसद रहे। वे केंद्र में मंत्री भी बने। वहीं खुद सैलजा भी दो बार सिरसा से सांसद रह चुकी हैं। वे दो बार अंबाला लोकसभा क्षेत्र का भी संसद में प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। डॉ़ मनमोहन सिंह की सरकार में लगातार दस वर्षों तक मंत्री रहीं कुमारी सैलजा कांग्रेस के दिग्गज और गांधी परिवार के नजदीकियों में शामिल हैं।

ऐसे में सैलजा के सामने सिरसा में अपनी ‘विरासत’ को बचाने की चुनौती है। वहीं भाजपा को भी मोदी के ‘करिश्मे’ से बड़ी उम्मीद है। यह वही क्षेत्र है, जिसमें 2014 में भी भाजपा अपना खाता नहीं खोल पाई थी। यह चुनाव भाजपा ने कुलदीप बिश्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) के साथ गठबंधन में लड़ा था। इनेलो के चरणजीत सिंह रोड़ी ने कांग्रेस के डॉ़ अशोक तंवर और हजकां के डॉ़ सुशील इंदौरा को चुनाव में शिकस्त दी थी।

2019 के चुनाव में भाजपा ने अपनी चुनावी चाल बदली। इन्कम टैक्स अधिकारी रहीं सुनीता दुग्गल को सिरसा से लोकसभा चुनाव लड़वाया। वीआरएस लेकर राजनीति में आईं सुनीता दुग्गल ने कांग्रेस के डॉ़ अशोक तंवर को बड़े अंतर से शिकस्त दी। बदले हुए राजनीतिक हालात में सुनीता दुग्गल का टिकट कट गया और 2019 में उनके मुकाबले चुनाव लड़ने वाले डॉ़ अशोक तंवर अब भाजपा के उम्मीदवार बन गए। 2019 में मोदी के नाम की सुनामी चली थी। इसी के चलते भाजपा ने राज्य में लोकसभा की सभी दस सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार भी मोदी के करिश्मे से भाजपा को बड़ी उम्मीद है।

ये नेता निभाएंगे निर्णायक भूमिका : भाजपा ने सिरसा सीट पर गहन चुनावी रणनीति तय की है। सीएम नायब सिंह सैनी व पूर्व सीएम मनोहर लाल के अलावा पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की सिरसा पर पूरी नजर है। ऐलनाबाद हलके में एक्टिव समाजसेवी कप्तान मीनू बैनीवाल को भाजपा ज्वाॅइन करवाया जा चुका है। चुनावी मैनेजमेंट में माहिर मीनू बैनीवाल अपनी रणनीति पर काम शुरू कर चुके हैं। ऐलनाबाद में उनके द्वारा की गई विजय संकल्प रैली प्रदेशभर में हुई सभी रैलियों पर भारी पड़ती नजर आई। सिरसा के हलोपा विधायक गोपाल कांडा व रानियां-ऐलनाबाद में एक्टिव उनके छोटे भाई गोबिंद कांडा भी खुलकर भाजपा के साथ आ चुके हैं। नरवाना में जजपा विधायक रामनिवास सुरजाखेड़ा मदद कर रहे हैं। वहीं टोहाना में देवेंद्र बबली से उम्मीद है।

श्रद्धालुओं के वोट बैंक पर नजर

सिरसा लोकसभा क्षेत्र में सबसे अधिक डेरे हैं। डेरा सच्चा सौदा, राधा स्वामी सिकंदरपुर, डेरा जगमालवाली, डेरा बाबा भूमणशाह, नामधारी डेरा सहित कई ऐसे डेरे हैं, जिनके साथ बड़ी संख्या में अनुयायी जुड़े हैं। 2014 के लोकसभा और फिर विधानसभा चुनावों में भाजपा के कई केंद्रीय नेता भी इन डेरों के मठाधीशों के सामने नतमस्तक हुए थे। 2019 के चुनावों में भी डेरों के प्रभाव को माना गया। इस बार के चुनावों में डेरों की क्या भूमिका रहेगी, इस पर काफी कुछ निर्भर करेगा। डेरा सच्चा सौदा की तो राजनीतिक विंग तक एक्टिव हुआ करती थी। दोनों ही पार्टियों के नेता अब भी डेरों में नतमस्तक हो रहे हैं।

खुलकर नहीं बोल रहे मतदाता

सिरसा लोकसभा सीट पर दो सबसे बड़े शहर – सिरसा व फतेहाबाद ही हैं। हालांकि डबवाली, ऐलनाबाद, कालांवाली, टोहाना, ऐलनाबाद व रतिया जैसे कस्बे व मंडियां भी शामिल हैं। शहरी वोटर आमतौर पर चुप ही रहता है लेकिन इस बार ग्रामीण मतदाता भी मौन है। केवल वही बोल रहे हैं, जो मुखर हैं। चौटाला गांव के मदनलाल, डूंगर सिंह, ओमप्रकाश ने कहा – ग्रामीण खुलकर नहीं बोल रहे हैं। जो जिस पार्टी से जुड़ा है, उसी की बात करता है। डबवाली शहर के बलबीर व करमजीत सिंह ने कहा, रुक्का दो ही पार्टियों का है। वे कहते हैं – किसानों की नाराजगी भी है। पन्नीवाला के मोहित व सुनील ने कहा, -बेरोजगारी और महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा है। तेजाखेड़ा के मान सिंह और ओमप्रकाश बीपीएल कार्ड कटने से दुखी हैं।

चौटाला परिवार का रहा गढ़

सिरसा सीट को चौटाला परिवार का गढ़ माना जाता रहा है। हालांकि इस बार के लोकसभा चुनावों में इस परिवार से जुड़ी दोनों ही पार्टियों – इनेलो व जजपा में अस्तित्व बचाने की लड़ाई देखने को मिल रही है। दोनों ही पार्टियों ने अपने प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे हुए हैं लेकिन मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में ही दिख रहा है। 2019 के विधानसभा चुनावों में सिरसा जिला में भाजपा खाता भी नहीं खोल पाई थी। ऐलनाबाद से इनेलो के अभय चौटाला, डबवाली से कांग्रेस के अमित सिहाग व कालांवाली से शीशपाल केहरवाला, रानियां से निर्दलीय रणजीत सिंह व सिरसा से हलोपा के गोपाल कांडा विधायक बने। वहीं फतेहाबाद से भाजपा के दूड़ाराम और रतिया से लक्ष्मण नापा तथा टोहाना से जजपा के देवेंद्र सिंह बबली विधायक बने थे। इसी तरह नरवाना से जजपा के रामनिवास सुरजाखेड़ा विधायक हैं।

तंवर के पीछे भाजपा

अशोक तंवर 2009 में सिरसा से कांग्रेस टिकट पर पहली बार सांसद बने थे। यह वह चुनाव था, जिसमें कांग्रेस ने हिसार छोड़कर नौ लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। 2014 और 2019 का चुनाव भी तंवर ने सिरसा से लड़ा लेकिन वे जीत हासिल नहीं कर सके। 2019 के विधानसभा चुनावों से पहले टिकट आवंटन के दौरान उनकी कांग्रेस से बिगड़ गई और उन्होंने पार्टी को अलविदा कह दिया। इसके बाद उन्होंने खुद का मोर्चा बनाया। फिर वे टीएमसी में भी रहे और लम्बे समय तक आम आदमी पार्टी में एक्टिव रहे। बाद में भाजपा ज्वाइन कर ली। भाजपा का सिस्टम बेशक, तंवर के लिए नया है लेकिन पूरा काडर उनके लिए चुनाव लड़ रहा है।

ऐसे हेवीवेट हैं सैलजा

कुमारी सैलजा के हेवीवेट होने के कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण तो यह कि यह उनके परिवार की परंपरागत सीट रही है। उनके पिता चौ. दलबीर सिंह 1967, 1971, 1980 और 1984 में सिरसा से सांसद रहे। इसके बाद लगातार दो बार – 1991 और 1996 में सैलजा यहां से संसद पहुंचीं। सैलजा कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं में शामिल हैं। वे मुख्यमंत्री पद की भी दौड़ में शामिल हैं। गांधी परिवार के साथ उनकी नजदीकियां भी हैं। सैलजा की एक खासियत यह भी है कि वे काफी सॉफ्ट-स्पोकन हैं। बेशक, सिरसा पार्लियामेंट सीट पर हुड्डा खेमे के कई नेता हैं लेकिन सैलजा के पास खुद की भी टीम है। वहीं हुड्डा खेमे के नेता भी सैलजा के साथ चुनाव प्रचार में नजर आते हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि आमचुनाव के चार महीनों बाद विस चुनाव होने हैं। इन चुनावों में टिकट आवंटन में सैलजा की पसंद-नापसंद काफी अहम रहेगी।

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