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न्याय तब मिलेगा जब कानून की पढ़ाई मातृभाषा में हो, नई शिक्षा नीति से यह संभव

अंबेडकर राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं विधि शिक्षा’ पर विशेष व्याख्यान
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सोनीपत स्थित डॉ. बीआर अंबेडकर राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, सोनीपत में विशेष व्याख्यान देते शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी। -हप्र
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सोनीपत, 30 नवंबर (हप्र)

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने चिकित्सा शिक्षा एवं विधि शिक्षा को आसान बनाया है जिससे छात्र इनमें आसानी से शिक्षा प्राप्त कर सके। शिक्षा नीति में स्पष्ट कहा गया है कि व्यावसायिक विकास की शिक्षा समग्र विकास की शिक्षा की अभिन्न अंग बन जायेगी। विधि विश्वविद्यालयों, स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालयों, तकनीकी विश्वविद्यालयों और अन्य विषयों के विश्वविद्यालयों का उद्देश्य अपने आप में समग्र व बहुविषयक विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित करने का होना चाहिए।

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शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी बृहस्पतिवार को डॉ. बीआर अंबेडकर राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, सोनीपत में ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एवं विधि शिक्षा’ विषय पर विशेष व्याख्यान में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। विशिष्ट अतिथि प्रो. हितेंद्र त्यागी रहे। कुलपति प्रो. अर्चना मिश्रा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।

अतुल कोठारी ने कहा कि बच्चों को अपनी मातृभाषा में विधि शिक्षा प्रदान करना शिक्षा नीति से ही संभव है। जब तक जनता को अपनी भारतीय भाषा में न्याय नहीं मिलता है तब तक वह न्याय, न्याय नहीं अन्याय है। इसलिए न्यायालयों में भारतीय भाषाओं में कार्य होना चाहिए। उन्होंने एक मुख्य न्यायाधीश का जिक्र करते हुए कहा कि न्यायालयों का भारतीयकरण होना चाहिए लेकिन न्यायालयों का भारतीयकरण तब होगा जब हमारी विधि शिक्षा का भारतीयकरण होगा। जनता को मालूम ही नहीं है कि क्या न्याय हुआ है, जबकि जनता को मालूम होना चाहिए कि क्या न्याय हुआ है और ये तब संभव होगा जब भारतीय भाषा में न्याय होगा। भारतीय भाषा में न्याय तब मिलेगा जब विधि शिक्षा भारतीय भाषा में होगी। कोठारी ने कहा कि हमारे देश के स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय देश की जनता को शिक्षा देने का कार्य कर रहे है। सभी संस्थान रोजगारपरक शिक्षा देने की कार्य योजना बनाकर उसी अनुरूप विषय व पाठ्यक्रम तैयार करें। इस शिक्षा नीति का उद्देश्य है कि हर नागरिक बौद्धिकता के साथ कार्यवाहक भी बने। किसी भी देश की शिक्षा वहां की संस्कृति व वहां की प्रकृति एवं प्रगति के अनुरूप होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि विशेष रूप से इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति की मुख्य बात जो एक शैक्षणिक दूरियों को समाप्त करने के लाई गई है, वह बहुत ही सराहनीय प्रयास है। कुलपति प्रो. अर्चना मिश्रा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि जब व्यक्ति अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करता है तो वह जल्दी ही प्रगति करता है। यह शिक्षा नीति निश्चित रूप से देश के हर बच्चे को उसकी क्षमता के अनुरूप आगे बढऩे और उसके संपूर्ण सामाजिक एवं शैक्षिक विकास के लिए पर्याप्त प्रावधान से परिपूर्ण है।

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