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रोहतक से आईएनएलडी की नई दस्तक

ताऊ देवीलाल जयंती पर अभय का पावर शो, हुड्डा गढ़ से भरी हुंकार

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रोहतक में बृहस्पतिवार को आयोजित सम्मान दिवस समारोह में इनेलो नेता अभय चौटाला एवं पंजाब के पूर्व डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल। -ट्रिन्यू
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रोहतक की नई अनाज मंडी में गुरुवार का दिन हरियाणा की राजनीति के लिए किसी नए आगाज़ जैसा था। ताऊ देवीलाल की 112वीं जयंती पर आयोजित समान दिवस समारोह केवल परंपरा नहीं रहा, यह आईएनएलडी के लिए नई दस्तक साबित हुआ। भीड़ का जोश, नेताओं की हुंकार और नारेबाजी में गूंजते “भय के खिलाफ अभय” ने साफ़ कर दिया कि चौधरी देवीलाल की विरासत अभी खत्म नहीं हुई है।

अभय सिंह चौटाला ने यहां से न सिर्फ़ अपनी नई सियासी पारी का ऐलान किया बल्कि यह भी जताया कि अगर हरियाणा में भाजपा के खिलाफ कोई असली विकल्प है तो वह आईएनएलडी ही है। 25 सितंबर 2018 को गोहाना की रैली में जोश का केंद्र दुष्यंत चौटाला हुआ करते थे। उस समय युवाओं ने उन्हें भावी मुख्यमंत्री तक घोषित कर दिया था। लेकिन पारिवारिक बिखराव और राजनीतिक समझौतों ने आईएनएलडी को कमजोर कर दिया।

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2019 का चुनाव आईएनएलडी के लिए सुनहरा अवसर था, लेकिन परिवार के टूटने का असर पार्टी पर पड़ा। छह साल बाद, उसी देशवाली जाट बेल्ट में भीड़ का रुख अब पूरी तरह अभय चौटाला की ओर दिखा। संकेत साफ़ है – समीकरण बदल रहे हैं। रैली के मंच पर नेताओं ने एक सुर में अभय चौटाला को सीएम फेस के तौर पर पेश किया।

पंजाब के पूर्व डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल, जम्मू-कश्मीर के पूर्व डिप्टी सीएम सुरिंदर चौधरी, तेलंगाना की पूर्व सांसद कविता, हरियाणा के वरिष्ठ नेता प्रो. संपत सिंह और राजस्थान के बलवान पूनिया सहित तमाम बड़े चेहरे अभय के समर्थन में खड़े दिखे। यह राजनीतिक संदेश साफ़ था – आईएनएलडी अब सिर्फ़ “विरासत” पर खड़ी पार्टी नहीं बल्कि सत्ता तक पहुंचने की दावेदार है।

किसानों और बुजुर्गों पर बड़ा दांव

हरियाणा के ग्रामीण समाज में चौधरी देवीलाल आज भी याद किए जाते हैं। वजह साफ़ है – उन्होंने ही राज्य में बुढ़ापा पेंशन योजना की शुरुआत की थी। आज भी बुजुर्ग उन्हें दुआएं देते हैं।अभय ने इसी भावनात्मक जुड़ाव को साधते हुए रैली में ऐलान किया कि अगर आईएनएलडी की सरकार बनी तो पेंशन डबल की जाएगी। सिर्फ़ इतना ही नहीं, उन्होंने किसानों और गरीब तबके के लिए मुफ्त बिजली देने का वादा किया। यह घोषणाएं स्पष्ट रूप से एक बड़े राजनीतिक समीकरण की ओर इशारा करती हैं – बुजुर्ग + किसान + गरीब। अगर यह गठजोड़ टिकाऊ रूप लेता है तो आईएनएलडी को ग्रामीण हरियाणा में नई ताक़त मिल सकती है।

“भय के खिलाफ अभय” – लॉ एंड ऑर्डर पर सीधा वार

इस रैली की धुरी रहा लॉ एंड ऑर्डर का मुद्दा। नेताओं ने बार-बार बिगड़ती कानून व्यवस्था पर हमला बोला और जनता से नारे लगवाए – “भय के खिलाफ अभय।” यह रणनीति साफ़ थी – भाजपा सरकार के खिलाफ नाराज़गी को हवा देकर खुद को जनता के भरोसेमंद विकल्प के तौर पर खड़ा करना।

रोहतक – देवीलाल की कर्मभूमि और हुड्डा का गढ़

रोहतक का राजनीतिक महत्व किसी से छिपा नहीं। यही वह ज़मीन है जहां देवीलाल को “ताऊ” की उपाधि मिली और यहीं से उन्होंने संसद तक का सफ़र तय किया। लेकिन 2004 के बाद यह बेल्ट भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गढ़ बन गया। लगातार तीन चुनावों तक कांग्रेस ने इसी इलाक़े से अपनी ताक़त निकाली।अब कांग्रेस की लगातार हार और आंतरिक गुटबाज़ी ने इस गढ़ की नींव हिलाई है। ऐसे समय में अभय चौटाला का हुड्डा के गढ़ से शक्ति प्रदर्शन करना अपने आप में बड़ा दांव है।

जेजेपी पर सीधा हमला, पुराने वर्करों को बुलावा

अभय ने अपने भाषण में अपने ही भतीजे दुष्यंत चौटाला और जेजेपी को निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि सत्ता की लालच में जननायक की विचारधारा को बेच दिया गया। यह हमला सिर्फ़ राजनीतिक नहीं बल्कि पुराने कार्यकर्ताओं को वापसी का बुलावा था। संदेश साफ़ था – “भटके हुए अब घर लौट आएं।”

कांग्रेस और भाजपा – दोनों पर सीधी चुनौती

रैली का टोन जेजेपी तक सीमित नहीं रहा। अभय ने हुड्डा और दीपेंद्र पर हमला बोलते हुए कांग्रेस को सीधी चुनौती दी। साथ ही भाजपा सरकार को कानून-व्यवस्था और किसानों के मुद्दे पर घेरा। उन्होंने यह बताने और लोगों में विश्वास बनाने के लिए भीड़ से ही हामी भरवाई की कि 2019 में जेजेपी और 2024 में हुड्डा की वजह से बीजेपी की सरकार बनी। यानी रोहतक की सियासी पिच पर अभय ने भाजपा विरोधी वोट बैंक को अपनी ओर खींचने की कोशिश थी।

भीड़ ने दी नई ऊर्जा

रैली में जुटी भीड़ और उसका उत्साह इस बात का संकेत था कि चौटाला परिवार का प्रभाव पूरी तरह खत्म नहीं हुआ। लोग ताऊ देवीलाल की यादों से भावुक हुए, और अभय की घोषणाओं से उत्साहित भी। यह जोश आईएनएलडी को नई ऊर्जा देता है लेकिन हरियाणा की राजनीति का अनुभव यही कहता है कि भीड़ जुटाना आसान है, वोट में बदलना कठिन।

असली चुनौती – चार साल तक टेम्पो बनाए रखना

रैली की सफलता के बावजूद असली परीक्षा अब शुरू होती है। विधानसभा चुनाव में अभी चार साल का वक्त है। आईएनएलडी के सामने चुनौतियां साफ़ हैं। संगठन को ज़मीनी स्तर पर मजबूत करना। पुराने कार्यकर्ताओं की घर वापसी सुनिश्चित करना।बुजुर्ग–किसान–गरीब गठजोड़ को स्थायी वोट बैंक में बदलना।भाजपा और कांग्रेस, दोनों के खिलाफ धारदार विपक्ष की भूमिका निभाना। अगर यह टेम्पो बनाए रखा गया तो आईएनएलडी वाकई भाजपा का मुख्य विकल्प बनकर उभर सकती है।

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