कुरुक्षेत्र, 2 सितंबर (हप्र)
सनातन वैदिक कालीन भारत की संस्कृति, संस्कार, जीवन मूल्य, परंपराएं एवं जीवनशैली को आत्मसात करके ही वर्तमान समय में भारत का संपूर्ण विकास होगा। भारत की सांस्कृतिक विविधता एवं परंपराएं सभी को एकता के सूत्र में संगठित करती हैं।
भारत संसार का सबसे प्राचीन, सबसे संपन्न एवं प्रगतिशील सनातन राष्ट्र है। ये विचार प्रसिद्ध चिंतक, विचारक एवं दार्शनिक एवं राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के प्रणेता केएन गोविंदाचार्य ने मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा आश्रम परिसर में आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में प्रकृति एवं पर्यावरण केंद्रित विकास की भूमिका विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए।
आश्रम में पहुंचने पर केएन गोविंदाचार्य तथा अन्य का स्वागत किया गया। गोविन्दाचार्य ने आश्रम परिसर में वृक्षारोपण किया एवं कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों को अपने जीवन में प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण के प्रति दायित्व का संकल्प करवाया।
राष्ट्रीय संगोष्ठी का विधिवत शुभारंभ केएन गोविन्दाचार्य, मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र, डॉ. हिम्मत सिन्हा एवं आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बलदेव धीमान ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलन, भारतमाता एवं योगेश्वर श्रीकृष्ण के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पार्चन से किया।
केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि प्राचीनकाल से ही भारतवर्ष में राजसत्ता पर धर्मसत्ता का अंकुश रहा है और धर्मसत्ता ने सदैव संपूर्ण समाज को धर्म, संस्कृति एवं अध्यात्म के प्रति जागरूक रखने का कार्य किया है। कोई भी देश अपनी सभ्यता, संस्कृति एवं संस्कारों से श्रेष्ठ बनता है। श्रीकृष्ण आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बलदेव धीमान ने आयुर्वेद के महत्व के बारे में विस्तार से बताया। मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने अपने विचार रखे।
कार्यक्रम में श्री ब्राह्मण एवं तीर्थोद्धार के मुख्य सलाहकार जयनारायण शर्मा, राष्ट्रीय प्रोद्योगिकी संस्थान कुरुक्षेत्र के प्रोफेसर डॉ. सुरेंद्र मोहन गुप्ता तथा कई अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।