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जीवनीशक्ति बढ़ा प्रदूषण से करें मुकाबला : लालजी महाराज

योग गुरु लाल जी महाराज का कहना है कि राष्ट्रीय राजधानी समेत देश के अन्य शहरों में व्याप्त घातक प्रदूषण का मुकाबला अपनी जीवनी शक्ति को बढ़ाकर किया जाना चाहिए। वैसे हमारे शरीर में हर प्रदूषण से मुकाबले की कुदरती...
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योग गुरु लाल जी महाराज का कहना है कि राष्ट्रीय राजधानी समेत देश के अन्य शहरों में व्याप्त घातक प्रदूषण का मुकाबला अपनी जीवनी शक्ति को बढ़ाकर किया जाना चाहिए। वैसे हमारे शरीर में हर प्रदूषण से मुकाबले की कुदरती क्षमता होती है, लेकिन गलत खानपान व जीवनशैली की विसंगतियों ने इसे बाधित किया है। वहीं प्रदूषण के घातक स्तर के बीच योग करते समय अतिरिक्त सावधानी रखने की जरूरत है। अन्यथा अधिक गलत ढंग से प्राणायाम करना हमारे लिए घातक साबित हो सकता है।

योगगुरु लाल जी महाराज का मानना है कि दिल्ली आदि में वायु गुणवत्ता सूचकांक घातक स्तर तक जा पहुंचा है। ऐसे में हमें डीप ब्रीदिंग से बचना चाहिए, इससे नुकसान ज्यादा होने की आशंका बढ़ जाती है। वे बताते हैं कि कुदरत ने हमारी नाक की संरचना ऐसी की है, जो हमें प्रदूषण से बचाती है। इसके भीतर घुंघराले बाल व म्यूकस मेम्ब्रेन, जिसे श्लेष्मा झिल्ली या म्यूकोसा भी कहते हैं, विजातीय पदार्थों को शरीर में प्रवेश करने से रोकते हैं। जो मुंह, नाक, गले आदि को सुरक्षा कवच देता है। यह सुरक्षात्मक तरल पदार्थ इन अंगों को प्रदूषण व रोगजनक कारकों से बचाता है।

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योग से मानव कल्याण की पहल करने वाले परिवार के 140 साल के इतिहास में चौथी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाले योग गुरु लालजी महाराज पिछले सात दशक से योग के जरिये मानव कल्याण के अभियान में जुटे हैं। उनका मानना है कि हमारे फेफड़ों में प्रदूषण से लड़ने की पर्याप्त क्षमता होती है, लेकिन हमारी शारीरिक निष्क्रियता के कारण इनकी प्रदूषण रोधक क्षमता कम हो जाती है। उनका मानना है कि प्रदूषित इलाकों में कूलर की नमी प्रदूषण को रोकने में सहायक है, जबकि एअर प्यूरिफायर उतना कारगर नहीं रहता।

योग गुरु का मानना है कि कपालभाति की तीन विधियां प्रदूषण से बचाने में सहायक होती हैं। इसमें वातक्रम, व्युत्क्रम व शीतक्रम कपालभाति बेहद कारगर साबित हो सकती है। इसके अलावा जल नेति भी रामबाण साबित हो सकती है। उनका मानना है कि नाक में बादामरोगन व घी डालने से भी प्रदूषण से बचाव होता है। वहीं वे जीवनी शक्ति बढ़ाने के लिये विटमिन सी के उपभोग करने पर बल देते हैं। जिसमें नींबू व आंवला बेहद उपयोगी हो सकता है।

वे मानते हैं कि आज इंसान के प्रकृति से दूर होने और अध्यात्म पर अविश्वास से उसके दुखों में इजाफा हुआ है। प्रकृति के अनुकूल जीवन से हवा शुद्ध होती है तो आध्यात्मिक दृष्टि से हमें मानसिक शांति मिलती है।

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