नारनौल, 7 जुलाई (हप्र)
…अगर जिंदा रहना है तो लगान तो देना पड़ेगा। मनीष जोशी के नाटक दास्तान-ए-रोहनात में अंग्रेज पात्र के इस डायलॉग के साथ कोड़े बरसाने से शुरू हुई ब्रिटिश हुकूमत की बर्बरता कोल्हड़ी व रोड रोलर पर जाकर खत्म हुई। आजादी के अमृत महोत्सव के तहत स्थानीय सभागार में आयोजित इस नाटक में नरसंहार की इस अनकही-अनसुनी कहानी ने दर्शकों को भावुक कर दिया। कार्यक्रम का आगाज उपायुक्त डॉ जय कृष्ण आभीर ने दीप जला कर किया।
दास्तान-ए-रोहनात नाटक भिवानी के गांव रोहनात के गुमनाम नायकों पर आधारित है। इसमें ऐसे गुमनाम हीरो को दिखाया गया है जिन्होंने आजादी के लिए कड़ा संघर्ष किया लेकिन इतिहास के पन्नों में उनकी गौरव गाथा को वह स्थान नहीं मिल पाया। ऐसे ही गुमनाम नायकों नोन्दा जाट, बिरड़ा दास व रूप राम खाती और रोहनात गांव के लोगों के आजादी के लिए कड़े संघर्ष को इस नाटक के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। इसमें निर्देशन संगीत नाटक अकादमी सम्मान के उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार से सम्मानित मनीष जोशी ने किया है। नृत्य संरचना नृत्यांगना राखी दुबे ने की है। लेखन यशराज शर्मा और वस्त्र सज्जा और मंच सज्जा सारांश भट्ट ने की।