अनिल शर्मा/निस
रोहतक, 19 अप्रैल
पीजीआई में हैपेटाइटिस बी से ग्रस्ति करीब 400 गर्भवती महिलाओं में रिसर्च किया गया, जिसमें चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। जिन गर्भवती महिलाओं में हैपेटाईटिस वायरस की मात्रा अधिक पाई जाती है, उनमें यह 70 प्रतिशत तक नवजात में जा सकता है और जिनमें कम होती है उनमें 3 से 43 प्रतिशत तक भी समानता होती है। एक बार यह वायरस नवजात में आता है तो 90 प्रतिशत बच्चों में पूरी उम्र रहता है। शोध के दौरान ही चिकित्सकों ने बीमारी से निजात का हल भी निकला और बताया कि गर्भवतियों का टेस्ट कराने पर हैपेटाइटिस बी मिलता है और कीटाणु की मात्रा ज्यादा मिलती है तो उसको गर्भावस्था में सातवें महीने से काले पीलिये की दवाई शुरू कर दी जाती है। ऐसी माताओं के नवजात शिशु के पैदा होने के 24 घंटे के अंदर हैपेटाइटिस बी इम्युनोग्लोबिन एवं वैक्सीन का टीका लगाया जाता है और उसके उपरांत वैक्सीन का पूरा कोर्स दिया जाता है, जोकि जांच में खुलासा हुआ कि कोर्स के बाद नवजात में वायरस नहीं मिला।
पिछले दिनों ने पीजीआई में प्रसूति विभाग व माइक्रोबॉयोलोजी विभाग के साथ मिलकर हैपेटाइटिस बी से ग्रस्ति करीब 400 गर्भवती महिलाओं पर शोध किया। पीजीआई के गैस्ट्रोएंट्रोलोजी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रवीण मल्होत्रा ने बताया कि रिसर्च में पाया गया कि 50 महिलाओं के अंदर कीटाणु की मात्रा ज्यादा होने के चलते उन्हें सातवें माह की गर्भावस्था से हैपेटाइटिस बी की दवाइयां शुरू कर नवजात शिशु को पैदा होते ही इम्यूनो ग्लोबिन एवं वैक्सीन का पूरा कोर्स करवाया गया। मां से बच्चे में हैपेटाइटिस बी के जाने की पुष्टि तब की जाती है, अगर बच्चे के एक वर्ष के होने पर उसमें हैपेटाइटिस बी पाया जाए। अब तक 100 बच्चे एक वर्ष के हो गए हैं और किसी में भी हैपेटाइटिस वायरस नहीं पाया गया। रिसर्च में ज्यादातर गर्भवती महिलाएं 20 से 30 वर्ष की हैं जो ग्रामीण इलाके से हैं।
80 प्रतिशत की हुई नॉर्मल डिलीवरी
वहीं 80 प्रतिशत महिलाओं की नॉर्मल डिलीवरी हुई और 20 प्रतिशत की सिजेरियन जोकि काले पीलिये रहित महिलाओं के मुकाबले समानांतर है। उन्होंने बताया कि मानकों के तहत हर मां ने अपने नवजात को लगभग छह माह तक स्तनपान करवाया है। चिकित्कों का कहना है कि रिसर्च यह साबित करती है कि हैपेटाइटिस बी से ग्रस्ति महिलाओं की नवजात को स्तनपान करने की प्रथा बिल्कुल ठीक है व सुरक्षित है तथा सिर्फ काले पीलिये की वजह से सिजेरियन डिलीवरी करवाने का कोई औचित्य नहीं है। डॉ. प्रवीण मल्होत्रा ने बताया कि इस रिसर्च के शुरूआती निष्कर्ष उत्साहजनक हैं और हैपेटाइटिस बी को काबू करने में काफी लाभदायक साबित हो सकते हैं क्योंकि 50 प्रतिशत में हैपेटाइटिस बी का कारण मां से बच्चे में वायरस जाना होता है।