जनप्रतिनिधियों का सम्मान नहीं तो बैठकों का क्या मतलब!
विधायक शैली चौधरी ने पाया कि उनकी कुर्सी एक पार्षद के बाद लगाई गई थी, जो न सिर्फ प्रोटोकॉल के खिलाफ था, बल्कि जनप्रतिनिधि के ‘मान-सम्मान’ से समझौते जैसा था। विधायक ने विस्तृत शिकायत स्पीकर को भेजी और कहा कि बैठक में उनका स्थान जानबूझकर गलत रखा गया। उन्होंने संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग भी की। शिकायत को गंभीरता से लेते हुए स्पीकर ने तत्काल अंबाला के उपायुक्त अजय तोमर को विधानसभा में तलब किया।
स्पीकर की फटकार, डीसी ने जताया खेद
अंबाला के उपायुक्त स्पीकर के सामने पेश हुए और स्पष्ट किया कि बैठक में प्रोटोकॉल का पालन न हो पाना एक त्रुटि थी। उन्होंने खेद व्यक्त करते हुए आश्वासन दिया कि भविष्य में ऐसा दोबारा नहीं होगा। सूत्रों के अनुसार, स्पीकर ने कहा कि दिशा, जिला विकास और अन्य सरकारी बैठकों में विधायकों और सांसदों की गरिमा सर्वोपरि है, और इसके लिए प्रशासनिक अधिकारियों को बेहद संवेदनशील रहना चाहिए।
प्रदेश के सभी जिलों को भेजा गया मैसेज
अंबाला के डीसी को चेतावनी देकर छोड़ते हुए स्पीकर ने अन्य जिलों के अधिकारियों को भी संदेश भेजा है कि जनप्रतिनिधियों के सम्मान का ध्यान रखें, प्रोटोकॉल कोई औपचारिकता नहीं बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था की बुनियादी मर्यादा है। इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि सरकारी बैठकों में ‘कुर्सी’ सिर्फ लकड़ी और लोहे का बना फर्नीचर नहीं, बल्कि व्यवस्था के प्रति सम्मान का प्रतीक भी है। और अंबाला की दिशा बैठक में यही प्रतीक जब थोड़ा डगमगा गया, तो संदेश पूरे प्रदेश में गूंज गया।
