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‘मैं मरा कोन्या, जिंदा सूं’...

साबित करने में लग गये 13 साल
रेवाड़ी के गांव खेड़ा मुरार के दाताराम अपना दुखड़ा सुनाते हुए। -हप्र
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तरुण जैन/ हप्र

रेवाड़ी, 1 दिसंबर

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‘मैं मरा कोन्या, जिंदा सूं’ चिल्ला-चिल्ला कर कहते हुए एक बुजुर्ग को स्वयं को जिंदा साबित करने में 13 साल का वक्त लग गया। वह उस समय रो पड़ा, जब सहकारिता मंत्री डाॅ. बनवारी लाल ने उसे जिंदा होने का प्रमाण सौंपा।

‘करे कोई भरे कोई’ वाली कहावत गांव खेड़ा मुरार के बुजुर्ग दाताराम पर सौ फीसदी खरी उतरती है। हुआ यह कि गांव खेड़ा मुरार के अलग-अलग मोहल्लों में दो दाताराम हैं। संयोग से दोनों के पिता का नाम भी बिहारी लाल है। एक दाताराम सेना में कार्यरत था और 2010 में उसकी मौत हो गई थी। लेकिन, प्रशासन ने रिकार्ड में दूसरे दाताराम को मृत घोषित कर दिया। पेंशन कटने के बाद जब वह फिर अपनी पेंशन बनवाने के लिए कार्यालय पहुंचा तो उसे बताया गया कि वह तो मर चुका है। बुजुर्ग ने कार्यालय के अधिकारियों व कर्मचारियों को खूब समझाया कि जिस दाताराम की मौत हुई है, वह मैं नहीं, सेना में कार्य करने वाला दाताराम है। वह प्रशासन की गलती ठीक करवाने लिए रेवाड़ी व बावल के कार्यालयों, जिला उपायुक्त व अन्य उच्चाधिकारियों से गुहार लगाता रहा। लेकिन सुनवाई नहीं हुई। आखिर में उसे उस समय राहत मिली, जब गांव खेड़ा मुरार में ही बृहस्पतिवार को ‘विकसित भारत संकल्प यात्रा- जनसंवाद’ के दौरान मंत्री डाॅ. बनवारी लाल ने उसे जिंदा होना का प्रमाण पत्र जारी किया।

पेंशन के लिए जंग अभी बाकी : बुजुर्ग दाताराम ने कहा कि उसे खुशी है कि प्रशासनिक रिकार्ड के अनुसार 13 साल बाद वह जिंदा हुआ है। लेकिन पेंशन बनवाने के लिए उसे अब भी भटकना पड़ेगा, मंत्री को उसकी पेंशन बनवाकर पिछले सालों की पेंशन भी दिलवानी चाहिए।

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