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हुड्डा ने जीती टिकट की जंग, अब प्रचार में दिखेगा दम

कांग्रेस ने मजबूत चेहरों के साथ साधा हरियाणा में जातिगत संतुलन

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दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू

चंडीगढ़, 26 अप्रैल

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हरियाणा के पूर्व सीएम और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने साबित कर दिया है कि पार्टी हाईकमान में उनकी मजबूत पकड़ भी है और जलवा अभी भी कायम है। बेशक, टिकटों के फैसले में पार्टी की आंतरिक खींतचान और गुटबाजी के चलते देरी हुई, लेकिन आठ में से सात संसदीय क्षेत्रों में अपनी पसंद के नेताओं को टिकट दिलवा कर हुड्डा ने पहली ‘जंग’ जीत ली है। प्रत्याशियों के ऐलान के साथ ही अब हुड्डा की अगली ‘परीक्षा’ भी शुरू हो गई है।

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यह परीक्षा होगी चुनावी मैनेजमेंट और कांग्रेस प्रत्याशियों की जीत सुनिश्चित करवाना। पार्टी हाईकमान ने न केवल एक तरह से हुड्डा को ‘फ्री-हैंड’ दिया है, बल्कि उन पर पूरा भरोसा भी जताया है। मजबूत चेहरों के साथ हुड्डा ने टिकट आवंटन में जातिगत संतुलन भी साधने की कोशिश की है। इतना ही नहीं, प्रत्याशियों के चयन के जरिये उन्होंने प्रदेश में कांग्रेस में ही अपने विरोधियों द्वारा कथित तौर पर किए जा रहे प्रचार को भी तोड़ने की कोशिश की है।

साथ ही, विरोधियों को तगड़ा झटका भी दिया है। एंटी हुड्डा खेमा – एसआरके यानी कुमारी सैलजा, रणदीप सिंह सुरजेवाला और किरण चौधरी की ‘तिकड़ी’ भी उनकी ‘मैनेजमेंट’ के सामने फीकी पड़ती नज़र आई है। जिस तरह के प्रत्याशी कांग्रेस ने मैदान में उतारे हैं, उससे स्पष्ट है कि पार्टी पूरी मजबूती के साथ लोकसभा चुनाव लड़ेगी। लोकसभा चुनावों के बहाने कांग्रेस ने अक्तूबर में होने वाले हरियाणा विधानसभा के आमचुनावों का रुख भी स्पष्ट कर दिया है।

प्रदेश में लम्बे समय के बाद यह पहला मौका है जब कांग्रेस ने टिकट आवंटन में सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले को अपनाया है। पिछले तीन यानी 2009, 2014 व 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने राज्य की 10 सीटों में से चार पर जाट प्रत्याशियों को टिकट दिए थे। इस बार केवल दो यानी रोहतक से दीपेंद्र सिंह हुड्डा और हिसार से जयप्रकाश ‘जेपी’ को ही जाट कोटे से टिकट मिला है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित अंबाला और सिरसा को छोड़कर बाकी जगह दूसरी जातियों को साधने की कोशिश की है। 2009 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने भिवानी-महेंद्रगढ़ से श्रुति चौधरी, हिसार से जयप्रकाश ‘जेपी’, रोहतक से दीपेंद्र सिंह हुड्डा और सोनीपत से जितेंद्र सिंह मलिक को जाट कोटे से टिकट दिया था। हिसार में हजकां के चौ़ भजनलाल के मुकाबले जयप्रकाश ‘जेपी’ चुनाव हार गए थे, लेकिन बाकी तीनों जगहों पर जाट प्रत्याशी जीते थे। 2014 के चुनावों में कांग्रेस ने रोहतक से दीपेंद्र हुड्डा, भिवानी-महेंद्रगढ़ से श्रुति चौधरी, सोनीपत से जगबीर सिंह मलिक और हिसार से पूर्व वित्त मंत्री प्रो़ संपत सिंह को टिकट दिया था।

इन चुनावों में अकेले दीपेंद्र हुड्डा ही चुनाव जीत सके थे। 2019 के लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस ने चार जाट चेहरों पर दांव लगाया था। चारों ही चुनाव हारे। इनमें सोनीपत से भूपेंद्र सिंह हुड्डा, रोहतक से दीपेंद्र हुड्डा, कुरुक्षेत्र से निर्मल सिंह और भिवानी-महेंद्रगढ़ से श्रुति चौधरी शामिल रहे। इस बार जाट बाहुल्य कहे जाने वाले सोनीपत लोकसभा क्षेत्र में भी इस बार कांग्रेस ने भाजपा के ब्राह्मण उम्मीदवार मोहनलाल बड़ौली के मुकाबले ब्राह्मण कोटे से ही सतपाल ब्रह्मचारी को टिकट देकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है।

माना जा रहा है कि दूसरी जातियों को साधने के लिए ही कांग्रेस ने यह फार्मूला अपनाया है। कुरुक्षेत्र में भाजपा के वैश्य प्रत्याशी नवीन जिंदल के सामने पहले से ही इंडिया गठबंधन के सुशील गुप्ता चुनाव लड़ रहे हैं। भिवानी-महेंद्रगढ़ में लम्बे समय के बाद जाट धर्मबीर सिंह के मुकाबले गैर-जाट यानी राव दान सिंह को टिकट देकर समीकरण बदलने की कोशिश की है। करनाल में पंजाबी वोट बैंक को साधने के लिए भाजपा के हेवीवेट मनोहर लाल के मुकाबले कांग्रेस ने भी इसी जाति के दिव्यांशु बुद्धिराजा को मैदान में उतार दिया है। इसी तरह से फरीदाबाद में गुर्जर कार्ड खेला है। भाजपा के केपी गुर्जर के मुकाबले कांग्रेस ने पूर्व मंत्री महेंद्र प्रताप सिंह को गुर्जर कोटे से टिकट दिया है।

बीरेंद्र सिंह के साथ फिर ट्रेजडी

हरियाणा के ‘ट्रेजडी किंग’ कहे जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. बीरेंद्र सिंह के साथ एक बार फिर ट्रेजडी हो गई है। बीरेंद्र सिंह करीब दस वर्षों तक भाजपा में सक्रिय रहे। 2019 में उनके आईएएस बेटे बृजेंद्र सिंह ने वीआरएस लेकर हिसार से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। बृजेंद्र सिंह सिटिंग सांसद होते हुए भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए। कुछ दिनों बाद उनके पिता बीरेंद्र सिंह तथा माता व पूर्व विधायक प्रेमलता भी कांग्रेस में शामिल हो गईं। बीरेंद्र सिंह परिवार की कांग्रेस में एंट्री भी सीधे राहुल गांधी के माध्यम से हुई। इसके बाद भी बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह का हिसार से टिकट कट गया।

किरण को भी दिया झटका

हुड्डा खेमा इस बार भूतपूर्व सीएम चौ़ बंसीलाल की पुत्रवधू और कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री किरण चौधरी को भी झटका देने में कामयाब रहा। 2009 में भिवानी-महेंद्रगढ़ से सांसद रहीं श्रुति चौधरी की टिकट एसआरके खेमा तमाम कोशिशों के बाद भी नहीं बचा सका। हुड्डा ने अपने करीबी दोस्त राव दान सिंह को टिकट दिलवा कर अपना प्रभाव दिखा दिया। श्रुति की टिकट कटने के पीछे बड़ा कारण उनका लगातार दो लोकसभा चुनाव हारना रहा। 2014 में श्रुति भाजपा के धर्मबीर सिंह के मुकाबले चुनाव हारी ही नहीं बल्कि तीसरे स्थान पर रही। वहीं 2019 में भी धर्मबीर सिंह ने श्रुति चौधरी को 4 लाख 44 हजार 463 मतों के अंतर से शिकस्त दी।

करनाल वाले पंडित जी भी टिकट मांगते रह गए

करनाल सीट से लगातार चार बार – 1980, 1984, 1989 और 1991 में सांसद बनने का रिकार्ड बनाने वाले पंडित चिरंजी लाल शर्मा के बेटे और पूर्व स्पीकर कुलदीप शर्मा को भी टिकट आवंटन में झटका लगा है। वे करनाल से अपने बेटे चाणक्य पंडित के लिए टिकट मांग रहे थे। बाद में खुद उनके चुनाव लड़ने की चर्चा चली लेकिन टिकट नहीं मिली। बताते हैं कि 2019 में कुलदीप की करनाल से हार टिकट कटने की बड़ी वजह रही। 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के संजय भाटिया ने कुलदीप शर्मा को 6 लाख 56 हजार 142 मतों के अंतर से शिकस्त दी थी। यह देशभर में दूसरी सबसे बड़ी हार थी।

करण दलाल के आड़े आया नीतिगत फैसला

दिल्ली से जुड़े कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि फरीदाबाद में पूर्व मंत्री करण सिंह दलाल की टिकट कटने के पीछे नीतिगत फैसला बड़ा कारण रहा। दरअसल, पार्टी नेतृत्व ने एक गुर्जर को चुनाव लड़वाने का निर्णय लिया हुआ था। ऐसे में पूर्व मंत्री महेंद्र प्रताप सिंह की टिकट की राह आसान हो गईं। हालांकि दोनों ही नेता - करण दलाल और महेंद्र प्रताप की टिकट के लिए हुड्डा खेमा ही वकालत कर रहा था। बताते हैं कि फरीदाबाद के स्थानीय नेता भी महेंद्र प्रताप को टिकट दिए जाने की वकालत कर रहे थे। महेंद्र प्रताप सिंह पांच बार विधायक रहे और वे दो बार कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं।

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