हुड्डा चौथी बार संभालेंगे नेता विपक्ष की जिम्मेदारी
हरियाणा की सियासत में भूपेंद्र सिंह हुड्डा एक बार फिर प्रमुख सूत्रधार बन गए हैं। दो बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हुड्डा अब विधानसभा में चौथी बार विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी संभालेंगे। कांग्रेस हाईकमान ने लगभग एक साल के लंबे इंतजार के बाद उन्हें यह पद सौंपा, जिसके बाद विधानसभा सचिवालय ने शुक्रवार को आधिकारिक अधिसूचना जारी कर दी।
पिछले साल 17 अक्तूबर को हरियाणा में भाजपा सरकार का गठन हुआ था। तब से अब तक तीन विधानसभा सत्र बिना किसी विपक्ष के नेता के संपन्न हो गए। कांग्रेस के भीतर लगातार खींचतान और इंतजार के बाद आखिरकार हुड्डा को विधायक दल का नेता चुना गया। 30 सितंबर को कांग्रेस के सात विधायक स्पीकर हरविंद्र कल्याण से मिले और पार्टी अध्यक्ष राव नरेंद्र की चिट्ठी सौंपी। इसी आधार पर हुड्डा को विपक्ष का नेता मान्यता मिली।
सबसे बड़ा विपक्षी दल
90 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के पास 48 विधायक और तीन निर्दलीय हैं, जबकि कांग्रेस के 37 विधायक हैं। इनेलो के दो विधायक अलग हैं। संख्या के हिसाब से कांग्रेस सबसे बड़ा विपक्षी दल है, इसलिए कांग्रेस विधायक दल का नेता नेता प्रतिपक्ष घोषित किया गया।
कैबिनेट मंत्री जैसी सुविधाएं
हरियाणा में विपक्ष के नेता का पद केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि वैधानिक है। 1975 के विधानसभा (सदस्यों का वेतन, भत्ते और पेंशन) अधिनियम की धारा 2 (डी) और 4 में इस पद की परिभाषा और विशेषाधिकार साफ-साफ दर्ज हैं। विपक्ष के नेता को कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिलता है। चंडीगढ़ सेक्टर-7 में 70 नंबर कोठी उनके आवास के रूप में बनी रहेगी। विधानसभा परिसर में अलग कार्यालय, स्टाफ और सरकारी वाहन उपलब्ध होंगे। उनके वेतन और भत्तों पर लगने वाला इनकम टैक्स भी सरकारी खजाने से अदा होता है। हुड्डा रोहतक जिले की गढ़ी-सांपला किलोई विधानसभा सीट से छठी बार विधायक चुने गए हैं। विपक्ष का नेता बनने का उनका यह चौथा मौका है।
हुड्डा बनाम चौटाला: पुराना मुकाबला
हरियाणा की राजनीति लंबे समय से दो बड़े चेहरों—भूपेंद्र सिंह हुड्डा और ओम प्रकाश चौटाला—के इर्द-गिर्द घूमती रही है। चौटाला दो बार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे, जबकि अब हुड्डा यह रिकॉर्ड चार बार तक पहुंचा चुके हैं। विपक्ष के नेता का पद न केवल प्रदेश की राजनीति में बल्कि राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भी अहम माना जाता है।