दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 26 अप्रैल
कांग्रेस हाईकमान हरियाणा में पूर्व सीएम व विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा को लगभग ‘फ्री-हैंड’ देने की तैयारी में है। प्रदेश कांग्रेस में चल रहे विवाद के बीच खबर है कि विधायक दल के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही बने रहेंगे। उनके किसी करीबी को प्रदेशाध्यक्ष बनाया जा सकता है। ऐसे में कुमारी सैलजा की जगह अनुसूचित जाति के ही उदयभान का नाम चर्चा में है।
बताते हैं कि हुड्डा की ओर से ही यह नाम हाईकमान को दिया गया है। उदयभान होडल से विधायक रहे हैं। विगत दिवस हुड्डा अपने पलवल दौरे के दौरान उदयभान के निवास पर भी गए थे। सूत्रों का कहना है कि प्रदेशाध्यक्ष के साथ तीन कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाए जा सकते हैं। जातिगत संतुलन बनाने के लिए कार्यकारी अध्यक्ष ब्राह्मण, गुर्जर, यादव व जाट समाज से हो सकते हैं। इन खबरों को इसलिए भी बल मिल रहा है क्योंकि मंगलवार को हरियाणा मामलों के प्रभारी विवेक बंसल ने पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल से मुलाकात की। बताते हैं कि उन्होंने हरियाणा में बदलाव को लेकर इसी तरह का फार्मूला वेणुगोपाल को दिया है। इससे पहले सोमवार को बंसल ने पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी मुलाकात की थी। माना जा रहा है कि सोनिया के निर्देशों के बाद ही बंसल ने वेणुगोपाल से मुलाकात की।
इतना ही नहीं, बंसल के बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी के विशेष आमंत्रित सदस्य एवं आदमपुर विधायक कुलदीप बिश्नोई ने भी वेणुगोपाल से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद कुलदीप काफी जोश में भी नज़र आए। पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा व मणिपुर विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद पार्टी नेतृत्व काफी दबाव में नजर आ रहा है। इन चुनावों से पहले कांग्रेस नेतृत्व ने हरियाणा में बदलाव से साफतौर पर इनकार कर दिया था लेकिन अब वह इसके लिए राजी हो चुका है।
हाईकमान के निर्देश के बाद विपक्ष के नेता व पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को प्रदेश कांग्रेस की कमान देने की पेशकश हो चुकी है। हुड्डा ने प्रदेशाध्यक्ष बनने के लिए ऐसी शर्त रखी थी कि पूरा दांव ही उलटा पड़ गया। उन्होंने कहा था कि सीएलपी लीडर का फैसला विधायकों पर छोड़ा जाना चाहिए। पार्टी के 31 विधायकों में से 24 हुड्डा के करीबी हैं। ऐसे में विधायकों पर फैसला छोड़ने का भी मतलब यही है कि सीएलपी लीडर हुड्डा की ही पसंद का होगा।
बहरहाल, दिल्ली में बैठकों का दौर जारी है और फैसला निर्णायक मोड़ में पहुंच चुका है। अब देखना यह होगा कि पार्टी नेतृत्व राज्य में जाटों और गैर-जाटों में कैसे संतुलन बनाता है। हाईकमान यह समझ चुका है कि हुड्डा को इग्नोर करना आने वाले दिनों में और महंगा पड़ सकता है। ऐसे में यह तय सा हो चला है कि बदलाव की इस कवायद में हुड्डा के हाथों में बहुत कुछ आने वाला है। यह भी कह सकते हैं कि एक तरह से हुड्डा को ‘फ्री-हैंड’ भी दिया जा सकता है।