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छात्रसंघ महासचिव अभिषेक डागर से मिले हुड्डा, एंटी-प्रोटेस्ट एफिडेविट पर बोले- लोकतंत्र की हत्या है यह आदेश

विश्वविद्यालयों का भगवाकरण और छात्रों की आवाज पर ताले नहीं लगने देंगे : दीपेंद्र
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रोहतक से कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने पंजाब विश्वविद्यालय में छात्रों के अधिकारों पर हो रहे कथित हमलों को लेकर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि उनसे एफिडेविट मांगना लोकतंत्र का गला घोंटने जैसा है। विश्वविद्यालयों का भगवाकरण और छात्र आवाजों को कुचलना किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सोमवार को को हुड्डा पंजाब यूनिवर्सिटी कैंपस पहुंचे, जहां उन्होंने छात्रसंघ महासचिव अभिषेक डागर से मुलाकात की, जो पिछले छह दिनों से भूख हड़ताल पर हैं। डागर और उनके साथियों ने विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा छात्रों पर थोपे गए एंटी-प्रोटेस्ट एफिडेविट और छात्र विरोधी नीतियों के खिलाफ धरना शुरू किया हुआ है।

दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा छात्रों से एंटी-प्रोटेस्ट एफिडेविट लेना एक अलोकतांत्रिक और दमनकारी कदम है। उन्होंने कहा कि यह एफिडेविट छात्रों की आजादी और अभिव्यक्ति की ताकत को छीनने की कोशिश है। ये आदेश छात्रों का गला घोंटने के समान है। देश के विश्वविद्यालयों में जिस तरह लोकतांत्रिक माहौल को समाप्त करने की कोशिशें हो रही हैं, वे खतरनाक संकेत हैं। उन्होंने कहा कि सीनेट भंग करना, छात्रों की चुनी हुई आवाजों को नकारना और एसओपी के नाम पर विरोध पर रोक लगाना, ये सब एक विचारधारा विशेष के विस्तार का हिस्सा प्रतीत होता है।

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दिल्ली तक जाएगी पीयू की आवाज

दीपेंद्र हुड्डा ने चेतावनी दी कि अगर प्रशासन ने यह रवैया नहीं बदला तो वह स्वयं इस मुद्दे को लोकसभा के शीतकालीन सत्र में उठाएंगे। छात्रों की आवाज चंडीगढ़ तक नहीं रुकेगी, अब यह दिल्ली तक जाएगी। संसद में इसकी गूंज पूरे देश को सुनाई देगी। लोकतंत्र का आधार असहमति को सुनना है, उसे दबाना नहीं। जब छात्र अपने अधिकारों की बात करते हैं तो उन्हें देशद्रोही या उपद्रवी बताना संविधान की आत्मा के खिलाफ है।

वीसी से मुलाकात कर दी बातचीत की सलाह

रोहतक सांसद ने पंजाब यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर प्रो. रेणु विग से भी मुलाकात कर स्थिति पर चर्चा की। संवाद ही एकमात्र रास्ता है जिससे यह गतिरोध खत्म हो सकता है। वाइस चांसलर ने छात्रों से बातचीत करने और लीगल ओपिनियन लेकर सकारात्मक समाधान निकालने का आश्वासन दिया है। आज जब युवा संविधान की रक्षा के लिए डटे हुए हैं, तो पूरे देश को उनके साहस का साथ देना चाहिए।

संविधान की मूल भावना को बचाना छात्रों का धर्म है और उन्हें डराकर या भूखा रखकर नहीं झुकाया जा सकता। ये वही पीढ़ी है जो लोकतंत्र की आत्मा को जीवित रखेगी।

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