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पोक्सो पर हाईकोर्ट की टिप्पणी – नाबालिग की सहमति बेमानी

आरोपियों को राहत देना खतरनाक, बच्चों की सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं
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पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि पोक्सो कानून के तहत आरोपियों को किसी भी तरह की सुरक्षा या राहत देना न केवल कानून के खिलाफ है, बल्कि यह पूरे समाज और विशेषकर स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए बेहद खतरनाक संदेश होगा। अदालत ने कहा कि नाबालिग की सहमति का कोई कानूनी महत्व नहीं है और इसे आधार बनाकर अपराध से छूट नहीं दी जा सकती।

जस्टिस नमित कुमार ने यह टिप्पणी उस समय की, जब उन्होंने एक गंभीर आरोपित की जमानत याचिका खारिज की। आरोपी पर अपनी 15 वर्षीय चचेरी बहन से दुष्कर्म करने, उसका अश्लील वीडियो बनाने और वीडियो के जरिए ब्लैकमेल कर अन्य लोगों से भी शोषण करवाने का आरोप है। यह मामला मई 2023 में सामने आया, जब पंचकूला जिले के रामगढ़ स्थित एक सरकारी स्कूल के शौचालय से नवजात शिशु का शव बरामद हुआ।

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जांच के बाद पता चला कि पीड़िता नाबालिग छात्रा लंबे समय से यौन शोषण की शिकार थी। अदालत ने इस घटना को बेहद विचलित करने वाला करार दिया और कहा कि यह नाबालिग पर बार-बार हुए शोषण का जीवंत उदाहरण है। शुरूआती बयान में पीड़िता ने पुलिस को यह रिश्ता सहमति-आधारित बताया था। लेकिन परिवार और अदालत में सुरक्षित माहौल मिलने पर उसने असली सच्चाई उजागर की।

पीड़िता ने बयान दिया कि आरोपी चचेरे भाई ने जबरन दुष्कर्म किया, वीडियो बनाया और धमकी दी कि यदि उसने सच बताया तो वीडियो वायरल कर देगा। इसके बाद अन्य आरोपितों ने भी उसी वीडियो का इस्तेमाल कर उसे ब्लैकमेल किया और शोषण किया, जिससे वह गर्भवती हो गई। अदालत ने कहा कि इस मामले में पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं और आरोपित का यह तर्क कि संबंध स्वेच्छा से थे, कानूनन टिकाऊ नहीं है।

 

 

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