हरियाणा का ‘जिला मॉडल 2.0’ लागू : अब हर सड़क, नाली और पुल के पीछे होगी पक्की प्लानिंग
प्रदेश की नायब सरकार ने जिला स्तर पर विकास को लेकर नया अध्याय खोल दिया है। अब तक विकास योजनाओं पर खर्च होने वाला बजट कई दिशाओं में बिखर जाता था, लेकिन वित्त वर्ष 2025-26 से पूरी व्यवस्था बदलने वाली है। राज्य ने एक ‘जिला मॉडल 2.0’ तैयार किया है, जिसमें पहली बार अलग-अलग सेक्टरों के लिए तय प्रतिशत, स्पष्ट सीमाएं और कड़ी निगरानी की व्यवस्था लागू की जा रही है।
यह बदलाव केवल पॉलिसी नहीं, बल्कि गांव और कस्बों की वास्तविक तस्वीर बदलने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। इन्फ्रास्ट्रक्चर को प्राथमिकता देते हुए सरकार ने नई पॉलिसी में बजट का 60 प्रतिशत हिस्सा बुनियादी ढांचे पर खर्च करने का निर्णय लिया है। अब जिलों की योजना राशि का 60 प्रतिशत सिर्फ उन कार्यों में लगेगा जिनका जनता रोज उपयोग करती है। इनमें गलियां, नालियां, पेयजल लाइनों का विकास, सिंचाई ढांचा, सड़कें, पुल, स्वास्थ्य केंद्र, ऊर्जा से जुड़े प्रोजेक्ट और पशुधन व बागवानी योजनाएं शामिल हैं।
सरकार का तर्क है कि जब तक बुनियादी ढांचा मजबूत नहीं होगा, बाकी विकास अधूरा ही रहेगा। लंबे समय से शिकायत थी कि जिलों में विकास कार्यों का चयन बिना ठोस ढांचे के होता रहा। कई बार पंचायतें अपनी पसंद से काम चुन लेती थीं, तो कई परियोजनाएं डीडीएमसी स्तर पर मंजूर हो जाती थीं, भले वे योजना के मूल उद्देश्य से बाहर हों।
इसी वजह से कई जरूरी कार्य अधर में लटके और बजट का बिखराव बढ़ता गया। नई व्यवस्था में यह स्थिति बदल दी गई है। पहली बार सरकार ने स्पष्ट सूची जारी की है कि कौन से कार्य स्वीकार्य हैं और कौन से नहीं। अब किसी भी स्तर पर मनमानी मंजूरियों का रास्ता बंद होगा।
सिर्फ जरूरत के हिसाब से मिलेगी मंजूरी
सरकार के अनुसार, अब जिला योजनाओं का फोकस जरूरत पर रहेगा, न कि दबाव पर। जनप्रतिनिधियों के दबाव में भी काम नहीं होंगे, बल्कि जनता की वास्तविक जरूरतों के आधार पर निर्णय लिए जाएंगे। फंड का आवंटन इस तरह तय किया गया है कि हर जिला अपनी प्राथमिकता के अनुसार योजना चुने। पिछड़े इलाकों को पहले लाभ मिले। तात्कालिक और महत्वपूर्ण कार्यों को तुरंत स्वीकृति मिले, जबकि कम जरूरी योजनाएं बाद में आएं। सरकार का कहना है कि एक समान फार्मूला सभी जिलों पर लागू नहीं हो सकता, इसलिए हर जिले की वास्तविक आवश्यकताओं के अनुसार सेक्टर-वार सीमा तय की गई है।
शिक्षा, महिला और बाल विकास को तय हिस्सा
नई योजना में तीन ऐसे क्षेत्र शामिल किए गए हैं जिन्हें पहले अपेक्षाकृत कम फंड मिलता था। इनमें सामुदायिक भवन, स्कूल–कॉलेज और आंगनवाड़ी व बाल पोषण से जुड़ी सुविधाएं शामिल हैं। नए नियम के अनुसार, इन्हें अब 10-10 प्रतिशत फंड तय रूप से मिलेगा। इससे उन इलाकों को राहत मिलेगी जो लंबे समय से शिक्षा और सामुदायिक सुविधाओं की कमी झेल रहे थे।
जिला योजना में निजी एजेंसियों की एंट्री बंद
नीति का यह निर्णय सबसे प्रभावशाली माना जा रहा है। अब जिला योजना के तहत किसी भी प्रोजेक्ट में निजी एजेंसियां सीधे शामिल नहीं होंगी। सभी कार्य डीडीएमसी की निगरानी में सरकारी विभागों के माध्यम से ही होंगे। डीडीएमसी में मंत्री अध्यक्ष, उपायुक्त उपाध्यक्ष होते हैं, जबकि सांसद, विधायक, महापौर और जनप्रतिनिधि सदस्य के रूप में शामिल होते हैं। सरकार का मानना है कि इससे जवाबदेही बढ़ेगी और निजी हितों की संभावनाएं खत्म होंगी।
फाइल से फील्ड तक ट्रैकिंग
मुख्य सचिव अनुराग रस्तोगी के अनुसार, निगरानी की कमजोर कड़ी अब समाप्त की जा रही है। नया ढांचा इस तरह तैयार किया गया है कि हर प्रोजेक्ट की शुरुआत, स्वीकृति, लागत और प्रगति ऑनलाइन ट्रैक होगी। डीडीएमसी को नियमित रिपोर्ट देनी होगी। गलत मंजूरियों या लापरवाही पर जिम्मेदारी तय होगी। सरकार इसे ‘स्मार्ट निगरानी तंत्र’ बता रही है।
जिला दर जिला बदलेगी तस्वीर
पहली बार प्राथमिकता आधारित विकास योजनाओं को लागू किया जा रहा है। अब यह नहीं देखा जाएगा कि कौन किसकी परियोजना आगे बढ़ा रहा है, बल्कि यह देखा जाएगा कि जनता के लिए कौन सा काम जरूरी है। फंड का बिखराव रुकेगा और प्रभाव बढ़ेगा। बजट तय ढांचे में चलेगा, जिससे अधूरे काम रुकेंगे नहीं। गांव और कस्बों की बुनियाद मजबूत होगी और सड़क, पानी, नालियों, पुलों तथा स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं पहले से तेज़ी से सुधरेंगी। अब विकास का केंद्र वे इलाके होंगे जिन्हें लंबे समय से नज़रअंदाज किया जाता रहा।
