Haryana News: आठ महीने से बिना वेतन काम कर रहे जिला परिषद कार्यालयों के कर्मचारी व अधिकारी
Haryana News: 150 से अधिक अधिकारियों का आठ माह से वेतन लटका
Haryana News: हरियाणा की पंचायत व्यवस्था को जमीनी स्तर पर सशक्त बनाने में दिन-रात जुटे जिला परिषद कार्यालयों के 150 से अधिक अधिकारी और कर्मचारी आज आर्थिक संकट और प्रशासनिक लापरवाही के शिकंजे में फंसे हैं। आठ महीने से बिना वेतन लगातार काम करने वाले इन कर्मचारियों के लिए इस बार की दिवाली बेरंग और दर्दभरी साबित हुई।
जहां बाकी विभागों में कर्मचारियों को दिवाली बोनस और वेतन समय पर मिला, वहीं इन कर्मियों को वेतन की एक पाई तक नहीं दी गई। प्रोजेक्ट ऑफिसर, असिस्टेंट सीईओ और कंसलटेंट जैसे अहम पदों पर तैनात ये अधिकारी पंचायती राज से जुड़ी योजनाओं की निगरानी, रिपोर्टिंग और विकास कार्यों की मॉनिटरिंग का जिम्मा संभालते हैं। लेकिन विडंबना यह है कि गांवों के विकास की योजना लिखने वाले अपने जीवन की लड़ाई खुद लड़ रहे हैं।
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इनकी नियुक्ति पहले ठेकेदारों के माध्यम से हुई थी। फरवरी में विभाग ने ठेकेदार को यह कहते हुए हटा दिया कि सभी कर्मचारियों को हरियाणा राज्य कौशल रोजगार निगम (एचकेआरएनएल) के अधीन लाया जाएगा। लेकिन आठ महीने बीत जाने के बाद भी न तो इन्हें निगम में शामिल किया गया, न पुरानी व्यवस्था बहाल की गई। नतीजा यह हुआ कि न ठेका रहा और न ही स्थायित्व मिल पाया। कर्मचारी अब ‘काम करो, वेतन भूल जाओ’ जैसी स्थिति में फंसे हैं।
असुरक्षा और अपमान का माहौल
इनमें से अधिकतर अधिकारी पिछले चार से पांच वर्षों से लगातार सेवा दे रहे हैं। पंचायतों की योजनाओं, मनरेगा और ग्रामीण विकास परियोजनाओं की ज़मीनी मॉनिटरिंग में इनका योगदान अमूल्य रहा है। फिर भी आज यही लोग अस्तित्व के संकट से गुजर रहे हैं। एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा – ‘हम गांवों के विकास के लिए रात-दिन मेहनत करते हैं, लेकिन हमारी खुद की रोज़ी पर ताला लटका है।’
मुख्यमंत्री और मंत्री तक लगा चुके गुहार
वेतन और नियमितीकरण की मांग को लेकर ये कर्मचारी विकास एवं पंचायत मंत्री कृष्ण लाल पंवार, मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और तत्कालीन निदेशक डीके बेहरा से मुलाकात कर चुके हैं। हर बार आश्वासन मिला कि जल्द समाधान होगा, लेकिन अब तक न कोई आदेश जारी हुआ, न भुगतान हुआ। अब कर्मचारी नए निदेशक अशोक कुमार मीणा से मिलने की योजना बना रहे हैं। यह उम्मीद लिए कि शायद इस बार फाइलें नहीं, फैसले चलें।

