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Haryana: सरकार का शहरी विस्तार, बरवाला को मिला नगर परिषद का दर्जा

Haryana News: पालिका को अपग्रेड करने का नोटिफिकेशन जारी
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Haryana News: हरियाणा सरकार ने शहरीकरण की दिशा में एक और बड़ा कदम बढ़ाते हुए हिसार जिले की बरवाला नगरपालिका का दर्जा नगर परिषद में बदल दिया है। शहरी स्थानीय निकाय विभाग के आयुक्त एवं सचिव विकास गुप्ता की ओर से जारी नोटिफिकेशन के साथ ही बरवाला हरियाणा की 25वीं नगर परिषद बन गई है।

इस नोटिफिकेशन ने अब एक संवैधानिक और कानूनी बहस को जन्म दे दिया है। चूंकि क्योंकि बरवाला में मौजूदा निकाय का कार्यकाल अभी करीब पौने दो साल शेष है। बीते छह वर्षों में हरियाणा सरकार ने राज्य के कई इलाकों की शहरी पहचान बदली है। पहले अंबाला शहर और कैंट को अलग-अलग कर सदर क्षेत्र को नई नगर परिषद बनाया गया। फिर कालका-पिंजौर को एक संयुक्त परिषद में बदला गया।

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इसके बाद झज्जर, नूंह, पटौदी-हेली मंडी, समालखा, और अब बरवाला को अपग्रेड कर दिया गया। राजनीतिक हलकों में इसे लोकल डेवलपमेंट को शहरी रूप देने की कवायद माना जा रहा है। वहीं कानूनी विशेषज्ञ इसे लोकतांत्रिक अधिकारों पर चोट बता रहे हैं। बरवाला और समालखा - दोनों जगहों पर जून 2022 में नगरपालिका स्तर पर आम चुनाव कराए गए थे।

राज्य निर्वाचन आयोग ने 4 जुलाई, 2022 को निर्वाचित अध्यक्षों और सभी वार्ड सदस्यों की अधिसूचना गजट में प्रकाशित की थी। इस हिसाब से दोनों निकायों का कार्यकाल जुलाई 2027 तक है। अब सवाल उठता है कि जब मौजूदा निकाय का पांच वर्षीय कार्यकाल बाकी है, तो उसे बीच में नगर परिषद घोषित करना क्या संवैधानिक रूप से सही है।

दर्जा बढ़ाने से निकाय स्वतः भंग नहीं होता

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट और नगर निकाय मामलों के जानकार हेमंत कुमार ने कहा कि यह फैसला कानूनी कसौटी पर चुनौती झेल सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि हरियाणा नगरपालिका कानून, 1973 की धारा 12 और संविधान के अनुच्छेद 243यू (1) के तहत किसी भी निर्वाचित निकाय का कार्यकाल पांच साल का होता है। दर्जा बढ़ाने से वह स्वतः भंग नहीं होता। अगर ऐसा किया गया तो यह पूरी तरह अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक होगा।

एक साल में चुनाव की बाध्यता, टकराव तय

नगर परिषद बनने के बाद कानूनन राज्य निर्वाचन आयोग को एक वर्ष के भीतर नई परिषद के लिए चुनाव कराना जरूरी है। इसके तहत समालखा में अगस्त 2026 और बरवाला में अक्टूबर 2026 तक चुनाव करवाए जाने अनिवार्य हैं। लेकिन अगर ऐसा हुआ, तो मौजूदा निर्वाचित निकायों का कार्यकाल समय से पहले समाप्त हो जाएगा। हेमंत कुमार का कहना है कि ऐसी स्थिति में वर्तमान अध्यक्ष और पार्षद अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

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