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Haryana: इस मंदिर में हिंदू-मुस्लिम दोनों की है आस्था, मिट्टी का घोड़ा चढ़ाने से पूरी होती है मन्नत

Haryana News: पिहोवा में दुलो दरगाही शाह मंदिर: आस्था और इतिहास का संगम
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पिहोवा, 26 मार्च (सुभाष पौलसत्य/निस)

Haryana News: हरियाणा के तीर्थ स्थल पिहोवा में स्थित दुलो दरगाही शाह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था और इतिहास की अनूठी मिसाल है। यह मंदिर न केवल धार्मिक मान्यता रखता है, बल्कि इसके गर्भ में कई रहस्यमयी और ऐतिहासिक पहलू भी समाए हुए हैं।

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ब्राह्मण पुरोहित से संत तक की गाथा

यह मंदिर पंडित दुर्गा सहाय की स्मृति से जुड़ा है, जो जींद रियासत के राज पुरोहित थे। इतिहासकार विनोद पंचोली के अनुसार, सन् 1814 में जींद रियासत में आपसी रंजिश के चलते राजकुमार प्रताप सिंह ने अपनी मां रानी शोभा राय की हत्या कर दी और सत्ता हथिया ली। पंडित दुर्गा सहाय, जो रानी के समर्थक थे, उन्हें राज्य से निष्कासित कर दिया गया।

पिहोवा में सरस्वती नदी के तट पर बसे

राज्य से निष्कासन के बाद पंडित दुर्गा सहाय ने पिहोवा के सरस्वती नदी तट पर अपना आश्रम बना लिया, लेकिन कुछ समय बाद जींद के राजा के सैनिकों ने उन्हें तंग करना शुरू कर दिया। मंदिर के सामने जो डेरा उदासीन की हवेली है वहां कैथल रियासत की अदालत लगती थी। एक दिन पंडित दुर्गा सहाय के आश्रम से उठता धुंआ समेध सिंह आनरेरी मजिस्ट्रेट की अदालत में पहुंच गया, जिससे मजिस्ट्रेट साहब ने इन्हे बुला कर बहुत बुरा भला कहा। जिससे परेशान होकर सिद्ध ब्राह्मण ने अपने शरीर पर नील लगाकर व नीले वस्त्र धारण कर कुएं में छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली व जींद के राजा को वंश नाश का शाप दे दिया। वहीं यह भी बताते है कि इन्होंने इस कारण आत्महत्या की, क्योंकि जींद के राजा इनकी बेटी का रिश्ता चाहते थे।

हिंदू और मुस्लिम दोनों पूजते हैं मंदिर को

कहा जाता है कि पंडित दुर्गा सहाय ने अपने अंतिम क्षणों में जींद राजवंश के नाश का श्राप दिया। उनकी मृत्यु के बाद हिंदू समुदाय ने उन्हें 'दुर्गा सहाय' के रूप में पूजना शुरू किया, जबकि मुस्लिम समाज उन्हें 'दुलो दरगाही शाह' के रूप में मानने लगा। यहां चांदी और मिट्टी के घोड़े चढ़ाने की परंपरा है, जिसे श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी होने पर अर्पित करते हैं।

पिहोवा मेले में उमड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़

हर साल 27 से 29 मार्च तक पिहोवा मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु आते हैं और मिट्टी के घोड़े चढ़ाकर मन्नतें मांगते हैं। यह स्थान हिंदू-मुस्लिम एकता और आस्था का प्रतीक बन चुका है।

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