विवेक बंसल/ निस
गुरुग्राम, 19 अप्रैल
गुरुग्राम में बीते 20 सालों की कोशिशों के बावजूद एक बड़ा श्मशान घाट सरकार नहीं बना पाई है। इस सामूहिक और बड़े श्मशान घाट की ज़रूरत सालों से महसूस की जा रही है और दिल्ली और चंडीगढ़ भी इससे सहमत हैं। दो बार जमीन भी निर्धारित की गई लेकिन स्थानीय विरोध के कारण उसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका । वैसे हर सेक्टर और आबादी के बीच पुराने श्मशान घाट हैं लेकिन जिस लिहाज़ से साइबर नगरी की आबादी में बढ़ोतरी हो रही है बड़े श्मशान घाट की ज़रूरत को दरकिनार नहीं किया जा सकता। बड़े श्मशान घाट के न बन पाने का एक प्रमुख कारण यह है कि बिना आबादी वाली जगह का चयन नहीं हो पा रहा है। विभिन्न सेक्टरों और बिल्डरों द्वारा बसाए गए इस शहर में श्मशान घाट का भी प्रावधान किया गया लेकिन सेक्टर वासियों ने विरोध किया तो अंत में गांव के पुराने मुर्दघाटों को ही अपग्रेड और आधुनिक बनाकर काम चलाया जा रहा है।
हाईकोर्ट के आदेश की अनदेखी : हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद 20 वर्ष में भी प्रशासन श्मशान घाट नहीं बना पाया। हुडा द्वारा वर्ष 2001 में फरीदाबाद के आरके चौहान को सेक्टर 28 में प्लॉट नंबर 320 बी अलॉट किया गया था। उनके ठीक सामने श्मशान घाट था और वे इस मुद्दे को लेकर होईकोर्ट गये थे। कोर्ट ने प्रशासन को एक वैकल्पिक श्मशान घाट बनाने का आदेश दिया था। लेकिन आदेशों की फाइल कार्यालयों के चक्कर लगा रही है।
एक बार तो प्रशासनिक अधिकारियों ने ग्रीवेंस कमेटी में मुख्यमंत्री की आंख में धूल झोंकने के लिए एक पुरानी फोटो लगाकर श्मशान घाट का निर्माण दिखाने का प्रयास भी किया लेकन पोल खुल गयी।
गांव वजीराबाद के पूर्व सरपंच सुबे सिंह बोहरा का कहना है कि आबादी बढ़ रही है इसलिए श्मशान घाट का एरिया सिकुड़ता जा रहा है। पार्षद महेश दायमा, पार्षद रमारानी राठी, भाजपा नेता जी एल शर्मा सभी का कहना है कि खुले स्थान का निर्धारण सामूहिक और आधुनिक श्मशान घाट के लिए ज़रूरी है।
सियासी फेर में फंस गया मुर्दघाट ?
कई दिक्कतों के बाद सरकारी मशीनरी द्वारा गांव वजीराबाद में एक बड़ा श्मशान घाट बनाने का फैसला हुआ लेकिन स्थानीय लोगों के भारी विरोध और राजनीति के कारण इस योजना को छोड़ देना पड़ा। गांव घाटा में राजकीय प्रबंधकों ने हिंदू मुस्लिम और ईसाईयों के लिए श्मशान घाट में कब्रिस्तान बनाने के लिए जमीन अलॉट की। बाकी सबका काम चल रहा है लेकिन श्मशान घाट के लिए विरोध हुआ कि आस-पास के इलाके में धुआं बहुत होगा। आखिर में राजनीति के चलते मरघट बनाने का यह प्रस्ताव भी अधूरा पड़ा है। अब इस जगह पर झुग्गी -झोपड़ियां तथा अवैध कब्जे हो गए हैं।