नवीन पांचाल/हप्र
गुरुग्राम, 8 अगस्त
हरियाणा के सबसे अमीर नगर निगम गुरुग्राम का खजाना तेजी से खाली हो रहा है। अधिकारी न तो उधार दी रकम वसूल पा रहे हैं और न ही बेवजह के भारी भरकम खर्चें रोकने के प्रयास कर रहे हैं। गुरुग्राम के पैसे से कभी प्रदेशभर की नगर पालिका, परिषद और निगमों के हिस्से के बिजली बिल का भुगतान किया जा रहा है तो कभी दूसरे निगमों के खर्चें थोपे जा रहे हैं। नौबत यहां तक आ गई है कि 8 महीने बाद अपने कर्मचारियों को सेलरी देने के लिए निगम के पास पैसा नहीं बचेगा। अरबों रुपयों की जमापूंजी के साथ फरीदाबाद के बाद हरियाणा में गुरुग्राम को दूसरा नगर निगम बनने का गौरव प्राप्त है, लेकिन एमसीजी के भारी भरकम खजाने को मनमाने तरीके से खुर्द-बुर्द किया जा रहा है। वर्ष 2010 में निगम चुनावों से पहले एमसीजी ने 100 करोड़ फरीदाबाद निगम की माली हालत को देखते हुए उधार दिए थे। इसके कुछ ही समय बाद दोबारा 50 करोड़ रुपए कथित तौर पर ‘उधार’ दे दिए। अब 11 साल बीतने के बाद भी उधार दी गई रकम मिलने की उम्मीद नहीं दिख रही। इस बारे एमसीजी ने कोई ठोस पहल भी नहीं की।
इसी तरह वर्ष 2017 में यहां के समग्र विकास के लिए गुरुग्राम महानगर विकास प्राधिकरण (जीएमडीए) का गठन किया गया। जीएमडीए को एमसीजी द्वारा अभी तक 791 करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं। निगम सदन की जानकारी में लाए बिना भारी भरकम राशि के खर्च के बारे जानकारी लेने के लिए कई बार प्रयास किए, लेकिन निगम कमिश्नर मुकेश कुमार आहूजा ने कोई जवाब नहीं दिया। गुरुग्राम की जनता की कमाई से हरियाणाभर के शहरी क्षेत्र रात के समय दूधिया रोशनी से चमकते हैं। दरअसल, बिजली निगमों को हरियाणा की सभी पालिकाओं, परिषदों और निगमों से करीब 118 करोड़ रुपए का बकाया बिजली बिल के रूप में लेना था, जबकि दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम को प्रॉपर्टी टैक्स, सेस सहित दूसरी मदों में 113 करोड़ रुपए एमसीजी को देने थे। प्रदेश सरकार ने गुपचुप तरीके से गुरुग्राम के 113 करोड़ रुपये प्रदेशभर की सभी अर्बन लोकल बॉडीज के बिजली बिल में एडजेस्ट कर दिए। साथ ही शेष 5 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान भी एमसीजी के खाते से किया गया है। इसी साल मई महीने में 118 करोड़ रुपए की राशि एमसीजी के हाथ से निकल गई, लेकिन अफसरों ने चुने हुए प्रतिनिधियों या उन शहर वासियों को कानोंकान इसकी भनक नहीं लगने दी।
सेलरी देने के पड़ सकते हैं लाले
वर्ष 2008 में नगर निगम के गठन से अभी तक तीन सीमा विस्तार हुए हैं। निगम के दायरे में उन गांवों को शामिल किया जिनका खजाना जमीन अधिग्रहण समेत अनेक आय के कारण मालामाल था। ग्राम पंचायतों के खातों में जमा अरबों रुपयों की एफडी के अलावा हजारों एकड़ जमीन व दूसरी संपत्तियां नगर निगम को हस्तांतरित हो गई, लेकिन बेहताशा खर्चे और मनमाने तरीके से उधारी के कारण निगम के गठन के सिर्फ 13 सालों में निगम का खजाना रसातल में पहुंचने को है। एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, ‘अगर स्थिति यही रही तो सिर्फ 8 महीने बाद हमें अपने करीब 4 हजार कर्मियों को दी जाने वाली लगभग 22 करोड़ रुपए महीने की सेलरी के लिए उधार मांगना पड़ेगा।’ फरीदाबाद व गुरुग्राम से ठोस कचरा एकत्रित और इसके निस्तारण का ठेका इकोग्रीन एनर्जी को दे रखा है। सरकार के आदेश पर फरीदाबाद के हिस्से का करीब 20 करोड़ रुपए प्रति महीना टिपिंग फीस का भुगतान उक्त कंपनी को एमसीजी गुरुग्राम ने किया। बताया जाता है कि अब तक करीब 80 करोड़ रुपए इस मद में एमसीजी द्वारा दिए जा चुके हैं।
‘यह गंभीर विषय है कि निगम का खजाना तेजी से खाली हो रहा है। दूसरे जिलों के निकायों का 118 करोड़ रुपए का बिजली बिल गुरुग्राम से क्यों भरवाया गया, इसके बारे में मुख्यमंत्री के साथ बैठक में चर्चा की जाएगी। इस तरह के समायोजनों से पहले सदन की सहमति भी लेनी चाहिए, क्योंकि यह पैसा इस शहर के लोगों की खून-पसीने की कमाई से जोड़ा हुआ है। उधार दिए हुए पैसे की वापसी के प्रयास भी तेज किए जाने की जरूरत है।’
-राव इंद्रजीत, केंद्रीय राज्यमंत्री
‘अफसरों ने सदन को इस बात की जानकारी नहीं दी कि दूसरे जिलों के 118 करोड़ रुपए बिजली बिल का भुगतान एमसीजी के खाते से किया गया है। इससे गुरुग्राम के उन लोगों को क्या लाभ होगा जो अनेक प्रकार के टैक्स अपनी आय से चुकाते हैं। इस संबंध में अधिकारियों से बात की जाएगी तथा यह विषय हाउस की बैठक में रखा जाएगा। इतने बड़े भुगतान के बावजूद बिजलीकर्मी ट्यूबवेल आदि के मामूली बकायों पर भी नगर निगम के बिजली कनेक्शन काट देते हैं। नगर निगम के पैसे को वापस लाने के पूरे प्रयास करेंगे।’
-सुनीता यादव, डिप्टी मेयर एमसीजी
‘लोगों की जेब से सोचे समझे तरीके से की गई लूट है। हैरानी की बात यह है कि बेलगाम अफसरों ने इसकी भनक सदन तक को नहीं लगने दी। पार्षदों को सदन की प्रत्येक बैठक में अफसरों से आय-व्यय का हिसाब मांगना चाहिए। लोग उन नेताओं को भी सबक सिखाएंगे जिनकी जिम्मेदारी इस लूट को रोकने की है।’
-कैप्टन अजय सिंह यादव, पूर्व मंत्री
‘जिन लोगों को इस शहर की जनता ने अपनी आवाज बुलंद करने के लिए नुमाइंदा चुनकर भेजा था, वे मुंह में दही जमाए बैठे हैं। इस तरह से शहर के लोगों की खून पसीने की कमाई को लुटने नहीं दिया जाएगा। कुर्सी के लालच में जिम्मेदार और शहर के रखवाले बेशक न बोलें, लेकिन इन्हें लोगों के बीच जाने पर इस अंधी लूट के मामले में जवाब देना ही पड़ेगा।’
-पंकज डावर, प्रदेशाध्यक्ष व्यापर सेल-कांग्रेस