अजय मल्होत्रा/हप्र
भिवानी, 9 जनवरी
जिले का खानक और डाडम खनन क्षेत्र अरावली श्रृंखलाओं के तहत आता है। इस क्षेत्र में खनन का काम काफी लंबे समय से चल रहा है, लेकिन खनन क्षेत्र चर्चाओं में 1980 के बाद आना शुरू हुआ। शुरुआती दौर में तोशाम क्षेत्र के साथ लगते गांव के लोग डाडम और खानक में छोटी-छोटी खाने बनाकर पत्थर निकालते थे। जिसे वे अलग-अलग क्रशर मालिकों को बेचते थे। धीरे-धीरे यहां क्रशरों की संख्या बढ़ने लगी और कई ठेकेदार ही ग्रामीणों की जगह छोटी-छोटी खदानों के मालिक बन बैठे। इस ठेकेदारों ने थोड़े दामों में ग्रामीणों से तैयार की गई खदाने या तो किराए पर ले ली या फिर खरीद ली। पिछले 4 दशक से यहां ‘लालच’ की इतनी खुदाई हुई की पहाड़ों का सीना छलनी हो गया।
ठेकेदारों की कमाई बढ़ती देख नेताओं का भी हस्तक्षेप बढ़ने लगा तथा विभिन्न खदानों के लेकर विवाद खड़े होने लगे। इसी दौरान बड़े स्तर पर खदानों में ब्लास्टिंग भी शुरू हो गई जो बिना नियमों के होती रही। जिसका नुकसान क्षेत्र के पर्यावरण और घरों को भी होने लगा। मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक युवा ने जनहित याचिका दायर की। इसके बाद पर्यावरण विभाग सक्रिय हुआ और 1990 के दशक में क्षेत्र में पहाड़ों पर अरावली प्रोजेक्ट के तहत पौधरोपण किया गया। पौधरोपण कागजों में ज्यादा और धरातल पर कम हुआ। इसमें करोड़ों रुपए का घोटाला भी सामने आया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने खनन को सुचारू रूप से चलाने की इजाजत दे दी। इसके बाद सरकार ने यहां एक बड़ा क्रशर जोन बनाया। काफी संख्या में यहां क्रशर भी लगे।
2005 में सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
वर्ष 2005 में एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट और पर्यावरण मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद खनन पर रोक लग गई, लेकिन राजनीतिक संरक्षण में बार-बार खनन खुलता रहा और बंद होता रहा। कांग्रेस के शासनकाल में यह सिलसिला वर्ष 2005 से 2014 तक जारी रहा। जब कभी खनन का मौका मिला तो ठेकेदारों ने मनमर्जी से नियमों के ताक पर रखकर खुदाई की। इस दौरान क्षेत्र में पत्थर की आपूर्ति के लिए राजस्थान से भी खूब पत्थर यहां आया, जिसे रोड़ी व क्रशर में बदलकर दिल्ली एनसीआर में भेजा गया।
15 हजार परिवार जुड़े हैं खनन से
2014 में खनन बंद होने से क्षेत्र के लगभग 15 हजार परिवारों पर इसका सीधा असर पड़ा। हजारों युवा बेरोजगार हो गए और इनके घरों में दो वक्त की रोटी के भी लाले पड़ गए। प्रभावित परिवारों ने खनन को शुरू करने का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। 2014 के विधानसभा चुनाव में तो खनन को राजनीतिक दलों ने मुद्दा भी बनाया। प्रदेश में सत्ता में आई भाजपा सरकार पर भी फिर से खनन शुरू करने का दबाव पड़ा। जनसंगठनों व क्षेत्र की आवाज पर सीएम ने खनन कार्य शुरू करवाने के लिए अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट में याचिका डालने को कहा। सुप्रीम कोर्ट व एनजीटी द्वारा अनुमति मिलने के बाद एक बार फिर से 2016 में डाडम खनन क्षेत्र में एक निजी कंपनी को खनन का ठेका दिया गया।
300 मीटर तक छलनी किया गया जंगल
हरियाणा के भिवानी जिले के डाडम क्षेत्र में खनन ठेकेदारों ने 300 वर्ग मीटर तक जंगल का सीना छलनी कर दिया है। यह क्षेत्र अरावली की पहाड़ियों में पड़ता है। लीज क्षेत्र से बाहर भी वर्तमान ठेकेदार ने 0.8 हेक्टेयर क्षेत्र में अवैध खनन किया है। नया ठेकेदार पुराने समकक्ष की खनन नीति पर ही काम करता रहा। उसने अपनी खनन नीति बनाई ही नहीं। यह खुलासे एनजीटी की हरियाणा निगरानी समिति के चेयरमैन व डाडम में अवैध व अवैज्ञानिक खनन की शिकायतों की जांच के लिए गठित आठ सदस्यीय संयुक्त समिति के चेयरमैन जस्टिस प्रीतम पाल की अंतरिम रिपोर्ट से हुए हैं। उन्होंने यह रिपोर्ट 13 अक्तूबर 2021 को एनजीटी को सौंपी है। कमेटी ने अगस्त और अक्तूबर माह में दो बार डाडम क्षेत्र का दौरा किया है। उसके आधार पर रिपोर्ट में जिक्र है कि हरसेक हिसार की अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार सतह से 78 मीटर नीचे तक ही खनन किया जा सकता था, लेकिन ठेकेदार ने 109 मीटर तक किया है। कहीं 200-250 मीटर खुदाई भी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार खनन से भूजल खादान में नहीं निकला है। खादान की दरारों में रिसाव से पानी आया है। चूंकि, आसपास के जलस्रोतों का जल स्तर 9 से 18 मीटर के बीच है।
खानक में भी हो सकता है डाडम जैसा हादसा
एक जनवरी 2022 को डाडम में पहाड़ की एक बड़ी शिला दरक गई ओर पांच खनन मजदूर इसके नीचे दब गए। मामला एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया। विभिन्न राजनेता जिनके खुद के शासनकाल में खनन क्षेत्र में जमकर पत्थरों की लूट हुई थी, वे भी उच्च स्तरीय जांच की मांग करने लगे हैं। हादसे के बाद क्षेत्र के 3 दर्जन गांवों के लोगों को अपनी रोजी रोटी की भी चिंता सताने लगी है।
पर्यावरणविदों के अनुसार खानक में भी दो दशक से जमकर खनन कार्य हो रहा है। डाडम जैसा हादसा यहां होने से इनकार नहीं किया जा सकता। पर्यावरणविद एवं सामाजिक कार्यकर्ता कैप्टन पवन अंचल का कहना है कि जनता के हितों को ध्यान में रखकर खनन नीति बननी चाहिए। उन्होंने कहा कि जब तक खनन को लेकर राजनीतिक लोगों की भूख खत्म नहीं होगी तब तक डाडम जैसे हादसे आम बात है।
ठेका लेने के लिए चली गोलियां
खानदारों और ठेकेदारों ने अधिकारियों व राजनेताओं के संरक्षण में नियमों को ताक पर रखकर खनन किया। इस पर नकेल डालने के लिए 1996 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल ने खानक व डाडम की खानें खानदारों व ठेकेदारों से मुक्त करवाकर सरकारी स्तर पर लीज पर देने का फैसला लिया। यह फैसला ठेकेदारों और खानदारों को मंजूर नहीं हुआ और खानक में बड़ा आंदोलन शुरू हो गया। इस दौरान गांव पिंजोखरा में एक क्रशर भी फूंका गया और अंतत सरकार को अपना फैसला 1997 में वापस लेना पड़ा। वर्ष 2001 में तत्कालीन ओम प्रकाश चौटाला सरकार ने एक बार फिर से खानों को लीज पर देने का फैसला ले लिया, जिसका फिर से विभिन्न मजदूर संगठनों ने विरोध किया। असल में ये संगठन तो मुखौटा थे, लेकिन इसके पीछे कई ठेकेदार व नेता थे जो कि पत्थर को सोना व चांदी के रूप में बेच रहे थे। सरकार के फैसले से उनकों काफी नुकसान हो रहा था। इस आंदोलन के दौरान आगजनी भी हुई और गोलियां भी चली, लेकिन सरकार नहीं मानी और खानों को बड़े ठेकेदारों को लीज पर दे दिया गया। यहीं से शुरू हो गया खानों के अंधाधुंध खनन का सिलसिला। इन्हीं दिनों दिल्ली में मेट्रो का काम भी तेजी पकड़ गया। खानक का नीला पत्थर मजबूत होने के चलते मेट्रो निर्माण में इस्तेमाल होने लगा। हजारों ट्रक नीला पत्थर प्रतिदिन मेट्रो व दिल्ली एनसीआर में जाने लगे। जानकारों के अनुसार खुदाई के दौरान खनन नियमों की खुली अवहेलना हुई।
‘निजी कंपनी को पहुंचाया फायदा’
खानक में भी एचएसआईडीसी ने खनन शुरू किया। मजेदार बात तो यह है कि निजी कंपनी ने तो बड़े स्तर पर खनन शुरू कर दिया, लेकिन एचएसआईडीसी द्वारा खनन कार्य ज्यादा तेज नहीं किया जा सका। निजी कंपनी पर डाडम में भारी भरकम मशीनों के साथ पहाड़ों को अच्छी तरह से छांग दिया गया। सरकार पर आरोप भी लगे कि निजी कंपनी को नियमों को ताक पर रखकर खनन की छूट है, जबकि खुद की सरकारी कंपनी के काम में अड़ंगा लगाया जा रहा है। एचएसआईडीसी द्वारा कम खनन के कारण निजी कंपनी का पत्थर ऊंचे दामों पर बिका, जिसका सीधा सीधा नुकसान उपभोक्ताओं को हुआ। निजी कंपनी को नियमों को ताक पर रखकर फायदा पहुंचाने के आरोपों के चलते मामला एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने निजी कंपनी की लीज को रद्द कर दिया गया था।
सांसद ने सिस्टम को लेकर उठाए सवाल
सांसद धर्मबीर सिंह ने खनन सिस्टम पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि संभवत: खनन माफिया की गड़बड़ से पहाड़ दरकते हैं। उन्होंने कहा कि पिछले 40 वर्षों में समय समय पर अवैध व गलत ढंग से खनन होता रहा है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से 800 फुट तक गहरी अवैध खुदाई हुई है उसकी जांच करवाई जाएगी। उन्होंने मुख्यमंत्री से उक्त मामले की उच्च स्तरीय जांच करवाने की मांग की है ताकि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो सके।
नियमानुसार होना चाहिए खनन
कांग्रेस नेता किरण चौधरी ने कहा कि वे लंबे समय से खनन को लेकर सवाल उठाती रही हैं और विधानसभा में भी यह मुद्दा कई बार उठाया है। उन्होंने कहा कि नियमानुसार खनन होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि मामले की जांच हो, क्योंकि खनन से तोशाम क्षेत्र के हजारों लोगों का रोजगार जुड़ा है। किरण चौधरी ने कहा कि सरकार को खनन कार्य में पारदर्शिता लानी चाहिए ताकि प्रदेश के लाेगों का भला हो सके।
राजनीति की भेंट चढ़ रहा काम
क्रशर एसोसिएशन के अध्यक्ष मास्टर सतबीर रतेरा ने बताया कि डाडम खनन कार्य अब इस दुर्घटना के बाद राजनीति की भेंट चढ़ रहा है। ऐसे में यहां पर स्थित 392 खनन इकाइयों में से अधिकतर बंद हो गई है। कुछ के अधिग्रहण होने के चलते बैंक द्वारा तालाबंदी की जा चुकी है। इससे पहाड़ में खनन कार्य न होने से क्रेशर मालिक, ट्रक मालिक व मजदूर प्रभावित हुए हैं। इस क्षेत्र से राज्य सरकार को खनन की एवज में प्रतिवर्ष लगभग 130 करोड़ रुपए रेवेन्यू जाता है, जो बंद हो चुका है।
ठोस-पारदर्शी नीति की जरूरत
मजदूर एवं किसानसभा नेता ओम प्रकाश का कहना है कि वे पिछले लगभग 30 वर्षों से खनन को लेकर ठोस व पारदर्शी नीति बनाने की मांग करते रहे हैं। खनन नीति बनाने के साथ-साथ मजदूरों व क्षेत्र के लोगों की सुरक्षा सर्वोपरि है। उन्होंने कहा कि जब तक राजनीतिक लोग खनन क्षेत्र को सोने के अंडे देने वाली मुर्गी देना समझना बंद नहीं करेंगे तब तक यह हादसे जारी रहेंगे। उन्होंने कहा कि सरकार अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए ठोस कदम उठाए।