सोनीपत, 25 फरवरी (हप्र)
कृषि कानूनों को रद्द कराकर एमएसपी पर गारंटी देने की मांग को लेकर तीन महीने से दिल्ली को चारों ओर से घेरे बैठे किसान संगठनों ने साफ कर दिया है कि पहले नामंजूर किए जा चुके प्रस्ताव पर वह दोबारा वार्ता नहीं करेंगे। किसानों के साथ अगर सरकार वार्ता चाहती है, तो नया प्रस्ताव भेजे। यानि डेढ़ साल स्थगन का केंद्र का प्रस्ताव किसानों को मंजूर नहीं है। सरकार इसके अलावा कुछ सोच रही है, तो ही किसान बातचीत के लिए जा सकते हैं।
उधर, किसान संयुक्त मोर्चा ने ट्रांसपोर्टर और व्यापारियों के 26 को आहूत भारत बंद का समर्थन कर दिया है। मोर्चा का कहना है कि सभी जगह किसान संगठन इसमें शांतिपूर्ण तरीके से भागीदारी कर सरकार को बताएंगे कि यह जनांदोलन है। संयुक्त मोर्चा ने कहा कि 26 को ही युवा किसान दिवस का आयोजन किया जा रहा है और इसके साथ-साथ वेबीनार का भी आयोजन होगा।
गौरतलब है कि सरकार व किसानों के बीच एक महीने से ज्यादा से समय से संवाद का रास्ता बंद है। इस बीच कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने पुराने प्रस्ताव पर बातचीत के लिए तैयार होने की बात कही, तो किसान नेताओं ने साफ कर दिया कि जिस प्रस्ताव को वह पहले नामंजूर कर चुके है, उस पर बातचीत करने का कोई मतलब नहीं होता है। अगर सरकार नया प्रस्ताव भेजती है, तो किसान संगठन बातचीत के लिए तैयार है। इसके साथ ही किसान नेताओं ने यह साफ किया कि वह कभी बातचीत का रास्ता बंद करने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन सरकार ही बातचीत नहीं करना चाहती है।
किसान नेताओं ने कहा कि सरकार ने उनको पहले डेढ़ साल तक कानूनों को स्थगित करने के साथ ही कमेटी बनाने का प्रस्ताव दिया था। इस प्रस्ताव को वह एक महीने पहले नामंजूर कर चुके है। ऐसे में उसी प्रस्ताव को दोबारा देने का कोई मतलब ही नहीं है। अगर उसमें कुछ बदलाव करके सरकार प्रस्ताव देती है, तो किसान संगठनों के नेता बातचीत जरूर करेंगे।
इस अवसर पर किसान नेताओं ने यह भी कहा कि सरकार के केवल बयान से काम नहीं चलेगा, बल्कि उनको बातचीत के लिए पहले की तरह प्रस्ताव देना होगा। संयुक्त मोर्चा के सदस्य एवं वरिष्ठ किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल, डा. दर्शनपाल, अभिमन्यु कोहाड, शमशेर सिंह दहिया और राजेंद्र सिंह दादूवाल का कहना है कि सरकार बार-बार एक ही बात कहती है कि पुराने प्रस्ताव पर बातचीत के लिए तैयार है। लेकिन जिस प्रस्ताव को किसान एक महीने पहले ही नामंजूर कर चुके है, उस पर किस तरह से बातचीत की जाएगी।
सरकार को बाचतीत करनी है, तो उससे आगे का प्रस्ताव भेजे और वह भी पहले की तरह भेजा जाए। इसके बाद ही उस पर बातचीत करेंगे। यह जरूर है कि सरकार अब मानने लगी कि किसानों की काफी भीड़ है और इसलिए ही खुद कहते है कि भीड़ एकत्र करने से कानून नहीं बदले जाते। जबकि पहले सरकार ही कहती थी कि चंद किसान ही विरोध कर रहे है।