हरेंद्र रापड़िया/निस
सोनीपत, 9 दिसंबर
कुंडली-सिंघु बॉर्डर पर 26 नवंबर-2020 से चला आ रहा किसान आंदोलन आखिरकार मंजिल तक पहुंच गया। 11 दिसंबर को सुबह से किसान विजय यात्रा निकालते हुए धरनास्थलों से घरों के लिए रवाना होना शुरू हो जाएंगे। बृहस्पतिवार को एसकेएम की घोषणा के साथ ही खासकर युवा तंबुओं, झोपड़ियों, पंडालों को समेटने में जुट गए। गर्मी-सर्दी और बारिश से बचने के लिए कड़ी मेहनत से बनाए गए आशियाने युवाओं के जोश के आगे ज्यादा देर टिक नहीं पाए और देखते ही देखते जमींनदोज हो गए। ट्रैक्टर-ट्रालियों और ट्रकों में सामान भरने का सिलसिला देर रात तक जारी रहा।
ऐतिहासिक जीत पर किसानों ने फतेह यात्रा निकालने का निर्णय लिया है। हालांकि, शुक्रवार को किसान जश्न नहीं मनाएंगें, क्योंकि हेलीकॉप्टर हादसे में शहीद हुए सीडीएस बिपिन रावत का शुक्रवार को अंतिम संस्कार होना है। 11 दिसंबर को सुबह से किसान जलूस के रूप में रवाना होंगे। खास बात यह है कि पहले हरियाणा के किसानों को रवाना किया जाएगा, जबकि इसके बाद पंजाब के किसान रवाना होंगे।
जयकारों से गूंजा बॉर्डर
बॉर्डर पर जैसे ही किसानों की बैठक खत्म हुई और आंदोलन वापसी का ऐलान किया गया, वैसे ही किसान झूम उठे। कुंडली बॉर्डर किसानों के जयकारों से गूंज उठा। किसानों ने किसान एकता के जयकारे लगाए। किसानों नेताओं ने किसानों के पंडालों के बीच पहुंचकर धरनारत बुजुर्ग किसानों व महिलाओं का आभार जताया। एक-दूसरे को लंगर भी वितरित किया और मुंह मीठा करवाया।
आए थे तो डंडे बरस रहे थे, अब बरस रहे हैं फूल
किसानोंं की आंखों में जीत की खुशी साफ झलक रही थी। एसकेएम नेता बलबीर राजेवाल व अन्य किसानों ने कहा कि जब वे अपने हक को लेकर लड़ाई लड़ने के लिए यहां तक पहुंचे थे तो उन पर खूब लाठियां, डंडे, पानी की बौछारें, आंसू गैस के गोले बरसाकर उनको तितर-बितर करने का प्रयास किया गया था, लेकिन वे घबराए नहीं और अपने साथी किसानों के बुलंद हौसलों के साथ डटे रहे। यही कारण है कि सरकार को झुकना पड़ा और आज जब हम जीत चुके हैं तो, फूल बरस रहे हैं। आंदोलन ने सिद्ध कर दिया है कि एकजुट होकर लड़ने का संकल्प लिया जाए तो हर जीत मुमकिन है।
खुशी के साथ छलका दर्द, बोले, सालभर में बहुत कुछ खोया भी
आंदोलन में बहुत से ऐसे किसान हैं, जिन्होंने एक साल के दौरान बहुत कुछ खोया भी। गुरदासपुर से पहुंचे किसान गुरविंद्र सिंह ने बताया कि जब वे यहां कुंडली में धरने पर बैठे थे तो गांव में उनके पिता को लकवा हो गया। उनकी देखरेख के लिए गुरविंद्र का 15 साल का बेटा ही रह गया था। इस बीच बहुत से लोगों ने कहा कि वह अपने पिता को संभाल ले, लेकिन उसके लिए किसानों के हक लड़ाई में शामिल रहना भी उतना ही जरूरी थी। ऐसे में उसके किशोर बेटे ने साथ निभाया और अपने दादा की सेवा करता रहा। अब जबकि आंदोलन खत्म हो गया है तो वह खुद जाकर अपने पिता की सेवा करेंगे। दूसरे किसान चरणजीत ने बताया कि उनकी माता का देहांत इस दौरान हो गया, लेकिन धरने पर व्यस्त होने के कारण वह ज्यादा दिन घर नहीं पाया और उसे एक-दो दिन में ही वापस आना पड़ा।